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नगर निगम बरेली: स्मार्ट सिटी के नाम पर लूट सके सो लूट...

स्मार्ट सिटी के नाम पर लूट सके सो लूट... अंत समय पछताएगा जब प्राण जाएंगे छूट..। कम से कम नगर निगम में तो यही लंबे समय से यही खेल चल रहा है।

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Sudhakar Shukla
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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बरेली। स्मार्ट सिटी के नाम पर लूट सके सो लूट... अंत समय पछताएगा जब प्राण जाएंगे छूट..। कम से कम नगर निगम में तो यही लंबे समय से यही खेल चल रहा है। बरेली को स्मार्ट बनाने का मकसद तो गया भाड़ में। नगर निगम के अंदर हर कोई इस बात के तीन तिगड़म में लगा रहता है कि किस काम उसको कितना कमीशन मिलेगा।

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नाथनगरी को स्मार्ट सिटी बनाने के नाम पर नगर निगम के निर्माण कार्यों में जिस तरह से खुल्लम-खुल्ला लूट बीते कई वर्षों से मची हुई है। उससे शहर की जनता त्राहि त्राहि कर उठी है। नगर निगम के निर्माण विभाग में नीचे से लेकर ऊपर तक सिर्फ कमीशन का खेल जारी है। फिर चाहे वह नाली, सड़क या फिर नाला निर्माण के टेंडर हों या विज्ञापन एजेंसी को ठेके देने के मामले। नगर निगम के इंजीनियरों से लेकर अफसरों तक चारो तरफ करोड़ों रुपए के कमीशन के लेनदेन की चर्चा पूरे शहर में है। नगर निगम के किसी भी दफ्तर में नजर उठाकर देखो तो पब्लिक कम दिखती है। सर्फ ठेकेदार ही अफसरों से एकांत में मिलकर कमीशन की सेटिंग करते हुए दिखाई देते हैं। अफसर को भी ठेकेदारों से ही अकेले में मिलने में दिलचस्पी है। आम पब्लिक की कोई सुनने वाला नहीं है। ncap के टेंडरो में करोड़ों रुपए के कमीशन के खेल ने पूरी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है।

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एनकैप टेंडरों में गड़बड़ी की खुली पोल

अब Ncap के टेंडरो को ही ले लीजिए। इन टेंडरो में  घपले का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पत्रांक नंबर 11 में जिन छह कामों के 13 करोड़ से अधिक की लागत वाले ऑनलाइन टेंडर नगर निगम की वेबसाइट से 24 ठेकेदारों ने डाउनलोड किया था। उनमें कुछ कामों में 19 या 20 ठेकेदारों ने टेंडर डाऊनलोड किए। लेकिन उन टेंडरो में प्रतिभाग सिर्फ तीन ठेकेदारो ने ही किया। मतलब, ऊपर के इशारे पर पांच बार में जब जब भी टेंडर निकाले तो उसे किसी एक ठेकेदार की ही अलग-अलग फर्म के नाम से डलवाकर पूल कराने की कोशिश की गई। जब तक सबका कमीशन सेट नहीं हो गया। तब तक टेंडर खुला ही नहीं। या फिर किसी ने किसी बहाने की आड़ लेकर टेंडर कैंसिल किए गए। महीनों तक टेंडर की फाइल नगर निगम के इंजीनियरों की टेबल पर इधर से उधर घूमती रही। एक ठेकेदार ने टेंडर न मिलने पर बागी रुख अख्तियार किया तो उसे मनाने का दौर भी चला। सूत्रों के मुताबिक आखिर में इंजीनियर और ठेकेदार के बीच मेंसौदा तय हो गया। 20% एडवांस पहुंचने के बाद उसका टेंडर खुला। जबकि ठेकेदार की बेड पहले डिसक्वालीफाई कर दी गई थी। बाद में उसे क्वालीफाई किया गया।

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अल्पकालीन टेंडर मांगें थे, काम दीर्घकाल में भी शुरु नहीं...

नगर निगम ने ncap योजना के टेंडर अल्पकालीन अवधि के लिए निकाले थे। इसमें 6 कम होने थे। जिनकी लागत 13 करोड़ से ज्यादा थी। कमीशन के खेल में पूरा वित्तीय वर्ष बीतने के बाद भी टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। न ही अब तक काम शुरू हो पाया। जबकि यह काम इसी वित्तीय वर्ष में पूरे होने थे।

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वर्जन

नगर निगम के टेंडरों में जिसने भी गड़बड़ी की है या जिसे भी नियम विद्युत टेंडर मिले हैं। उस पर एफआईआर दर्ज करने के लिए मैंने नगर आयुक्त को पत्र लिखा है। जल्द ही इस मामले में कार्रवाई होगी।

उमेश गौतम, महापौर नगर निगम बरेली

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