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Nagar Nigam के निर्माण कार्यों में कमीशन 35% तक पहुंचा, जानिए क्यों

आठ साल पहले जिस बरेली को बदहाल बताकर शहरवासियों को सिंगापुर की तरह स्मार्ट बनाने के ख्वाब दिखाए गए थे। वह तो ख़ैर कबके चकनाचूर हो चुके हैं।

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Sudhakar Shukla
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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बरेली। आठ साल पहले जिस बरेली को बदहाल बताकर शहरवासियों को सिंगापुर की तरह स्मार्ट बनाने के ख्वाब दिखाए गए थे। वह तो ख़ैर कबके चकनाचूर हो चुके हैं। मगर, शहर की बदहाल सड़कों को मरम्मत या निर्माण करने के लिए नगर निगम की ओर से जो काम चलते थे। उन पर कमीशन बढ़कर 35% तक पहुंच चुका है। इसलिए नगर निगम की सड़क, नाली या नाला निर्माण के कार्यों की गुणवत्ता में बड़े स्तर की गिरावट आई है।

मौखिक फरमान, बड़े ठेके चाहिए तो 12% एडवांस लाइए....

स्मार्ट सिटी और नगर निगम के निर्माण कार्यों में कमीशन अब बढ़कर 35% प्रतिशत पहुंच चुका है।  बड़े साहब की तरफ़ से ठेकेदारों को मौखिक फरमान जारी किया गया है कि भले ही निर्माण कार्यों की टेंडर प्रक्रिया ऑनलाइन है लेकिन जिला पंचायत की तर्ज पर अंतिम मुहर उनकी ही लगेगी। इसलिए, किसी भी सड़क, नाला या फिर नाली निर्माण टेंडर लेना है तो टोटल 35% कमीशन देना होगा। इसमें भी 12% एडवांस। टेंडर होने से पहले। ये कम्मीशन बड़े साहब को जाएगा। एडवांस लिए बिना टेंडर की फाइल आगे नहीं बढ़ेगी।

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16% से 35% तक पहुंचा कमीशन, ठेकेदारों की बढ़ी मुश्किलें

नगर निगम के निर्माण कार्यों में पैर से लेकर सिर तक आकंठ भ्रष्ट्राचार  है। इसका जीता जागता नमूना सोशल मीडिया पर वायरल एक ऑडियो है। उस ऑडियो में नाम न प्रकाशित करने की गुजारिश पर एक ठेकेदार का कहना है कि भाई साहब, नगर निगम का अब तो बहुत बुरा हाल हो चुका है। सपा सरकार  के समय 16% कमीशन में काम चल जाता था। मगर, वर्तमान में यह कमीशन बढ़कर 35% तक पहुंच चुका है। बड़े कामों के टेंडर होने से पहले बड़े साहब को 12% कमीशन एडवांस में देना पड़ता है। उसमे भी गारंटी नहीं कि ऑनलाइन टेंडर उनका ही होगा। मान लीजिए। अगर किसी सामान्य ठेकेदार का टेंडर हो गया तब तो 12% वसूल। नही हो पाया तो ठेकेदार को अपनी एडवांस रकम वापस लेने के लिए दसों चक्कर नगर निगम या साहब के ऑफिस के काटने पड़ते हैं। 12% एडवांस देने के बाद टेंडर होने के बाद बाकी बचा 23 परसेंट कमीशन। उसका नगर निगम में नीचे से ऊपर तक हिसाब देना पड़ता है। उसमे भी इंजीनियर से लेकर और कई साहब हैं। इतना सब होने के बाद कम से कम 10% मुनाफा ठेकेदार को भी चाहिए। इसलिए शहर के अंदर सड़क और नाली निर्माण के कार्यों में कुल बजट की 30 से 35 फ़ीसदी रकम भी नहीं लग पा रही है। फिर चाहे वह नगर निगम के मद के काम हों या फिर स्मार्ट सिटी के मद के काम।

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एक या दो बरसात में ही ध्वस्त हो रही हैं सड़कें और नालियां

एक पूर्व पार्षद की मानें तो नगर निगम में व्याप्त बेतहाशा भ्रष्टाचार की वजह से वर्तमान में जो भी सड़कें या नालियां बनती हैं। वह एक या दो बरसात में ही ध्वस्त हो जाती हैं। उनके दोबारा मरम्मत या निर्माण के टेंडर होते हैं। फिर वही कमीशन का खेल। चकाचक होकर टूटी सड़क या नाली का दोबारा निर्माण कराया जाता है। बीते कई वर्षों से नगर निगम में यही खेल चल रहा है। इसका नतीजा यह है कि शहर के कुछ इलाकों कमें सड़क और नालियां तो बनती रहती हैं। बाकी तमाम इलाके विकास से बहुत पीछे हैं। करोड़ों रुपए के सरकारी बजट का दुरुपयोग जारी है। साहब की शह पर नगर निगम का एक पूरा सिस्टम बरेली को सिंगापुर की तरह स्मार्ट बनाने के नाम पर करोड़ों रुपए की ऊपरी कमाई करने में लगा है।  कोई पूछने वाला नहीं है।

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आम नागरिक का फोन उठना मुश्किल,  ठेकेदारों के साथ मीटिंग दर मीटिंग

कहने को तो नगर निगम मै आम जनता से जुड़ी सरकार होती है। एक फोन पर जनता की समस्याओं का निराकरण कराया जाना चाहिए। भारत में भी इंदौर का नगर निगम इसका जीता जागता उदाहरण है।  मगर, बरेली नगर निगम में पिछले कुछ वर्षों से  पूरी तरह से कॉरपोरेट कल्चर हावी है। शहर का कोई भी नागरिक गली नुक्कड़ या मोहल्ले की छोटी मोटी समस्याओं जैसे  सफाई, आवारा कुत्तों को पकड़ना, मच्छरों को भगाने के लिए धुआं छिड़काव या अन्य किसी भी समस्या से संबंधित फोन करना चाहे तो उसका फोन नहीं उठता। इन समस्याओं के निस्तारण के लिए आम नागरिक उच्च अधिकारियों या जनप्रतिनिधि से मिलना चाहे तो उसे नाकों चने चबाने पड़ते हैं। वहीं बड़े ठेकेदार, (सब नही)जिनके करोड़ों रुपए के काम चल रहे हैं, अथवा उनको टेंडर लेने हैं। की गोपनीय मीटिंग नगर निगम से लेकर प्राइवेट ऑफिस में भी आधी रात तक चलती रहती है। बड़े साहब के साथ मीटिंग करने या चाय कॉफी पीने का सौभाग्य भी प्रत्येक ठेकेदार या आम नागरिक को नसीब नहीं है। इनमें कुछ चुनिंदा ठेकेदार पार्षद ही शामिल है, जो साहब के आगे पीछे भागते रहते हैं। बाकी ठेकेदारों को ऑफिस या गाड़ी में झांकने तक की इजाजत नहीं है।

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खास ठेकेदार को काम देने के लिए टेंडर प्रक्रिया महीनों से लटकी 

नाम न प्रकाशित करने की गुजारिश पर एक पार्षद ने बताया कि नगर निगम में साहब के आदेश पर एक खास ठेकेदार को ncap के 13 करोड़ के काम देने के लिए तीन बार टेंडर निरस्त किए गए। चौथी बार टेंडर 28 नवंबर 2024 को फिर से निकल गए।  उसमें भी जब उन खास ठेकेदार की बात बनते नहीं देखी तो टेक्निकल बिड खोलकर फाइनेंशियल बिड खोलने की प्रक्रिया रोक दी गई। कमीशन के इस खेल में नगर निगम के बड़े साहब और इंजीनियरों के बीच लंबे समय से खींचतान चल रही है। शहर की बदहाल सड़कों पर आम नागरिक का चाहे जो हाल हो जाए। मगर, नगर निगम में जब तक कमीशन का मसला सेटल नहीं होता है,  तब तक न तो टेंडर प्रक्रिया पूरी होगी। न ही शहर वासियों को गड्ढा मुक्त सड़के नसीब होंगी।

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