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40 साल से तारीख पर तारीख, फैसले के बाद सरकारी दफ्तरों के चक्कर

नयाय पाने को 40 साल का संघर्ष। इंतजार में बीती जिंदगी। जब कोर्ट ने फैसला सुनाया तो सरकारी दफ्तरों के चक्कर। यही है सिस्टम। 40 साल तक अदालतों और दफ्तरों के चक्कर लगाकर थक चुके पंडित देवदत्त मिश्रा।

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Sudhakar Shukla
40 years verdict
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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बरेली। नयाय पाने को 40 साल का संघर्ष। इंतजार में बीती जिंदगी। जब कोर्ट ने फैसला सुनाया तो सरकारी दफ्तरों के चक्कर। यही है सिस्टम। 40 साल तक अदालतों और दफ्तरों के चक्कर लगाकर थक चुके पंडित देवदत्त मिश्रा।

सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते देवदत्त मिश्रा को मिली राहत

चार दशकों से न्याय पाने के लिए सरकारी दफ्तरों और अदालतों चक्कर लगाकर कुछ आस जगी तो अब सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। श्रम विभाग ने दिया 15 दिनों में उनके बकाया भुगतान का आदेश दिया है। शिकायत के बाद उप श्रमायुक्त ने 9,05,768 रुपए की राशि 15 दिनों में चुकाने के आदेश दिए हैं।

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देवदत्त मिश्रा: विभागीय उत्पीड़न और न्याय की अनसुनी कहानी

बिना ठोस कारण नौकरी से हटाए गए देवदत्त मिश्रा 1984 में ग्रामीण अभियंत्रण सेवा से अचानक हटाए गए देवदत्त मिश्रा, अब तक न्याय की आस में भटक रहे हैं। हाईकोर्ट से जीतने के बाद भी वेतन और नौकरी से वंचित इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुनर्नियुक्ति और बकाया वेतन देने का आदेश दिया, लेकिन विभाग ने कोर्ट के आदेश को दिखाया ठेंगा आदेश न मानने पर अधिशासी अभियंता के खिलाफ होगी कार्रवाई निर्धारित समय में भुगतान न होने पर आरसी जारी कर वसूली की जाएगी। सरकारी तंत्र की लापरवाही से मिली सिर्फ तारीखें  
हर बार आदेशों को नजरअंदाज किया गया, जिससे देवदत्त मिश्रा का पूरा जीवन कानूनी लड़ाई में बीत गया। 

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न्याय के इंतजार में बीती पूरी नौकरी

40 साल का संघर्ष- न्याय के इंतजार में बीती पूरी नौकरी देवदत्त मिश्रा-एक कर्मचारी, जिसकी पूरी जिंदगी कोर्ट केस लड़ते-लड़ते बीत गई। बरेली के मढ़ीनाथ निवासी देवदत्त मिश्रा, जो कभी ग्रामीण अभियंत्रण सेवा में कार्यरत थे, आज भी न्याय की आस में भटक रहे हैं। 1984 से लेकर अब तक, उन्होंने अपनी नौकरी बहाल करवाने और वेतन पाने के लिए कोर्ट के दरवाजे खटखटाए, लेकिन विभागीय उत्पीड़न ने उनकी जिंदगी को संघर्ष में बदल दिया।

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कोर्ट के आदेश की अनदेखी, कर्मचारी का शोषण जारी  

देवदत्त मिश्रा को 1984 में बिना किसी ठोस कारण के नौकरी से हटा दिया गया। जब उन्होंने बरेली श्रम न्यायालय में केस दायर किया, तो न्यायालय ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। इस आदेश के बाद, उन्हें दोबारा नौकरी पर तो रखा गया, लेकिन वेतन नहीं दिया गया। कुछ समय बाद, बिना किसी वैध कारण के उन्हें फिर से नौकरी से निकाल दिया गया।

हाईकोर्ट से जीतने के बावजूद भी नहीं मिली राहत  

इस अन्याय के खिलाफ देवदत्त मिश्रा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए आदेश दिया कि उन्हें फिर से नौकरी दी जाए और उनका पूरा लंबित वेतन भुगतान किया जाए। लेकिन विभाग ने इस आदेश की भी अनदेखी कर दी और किसी भी तरह की राहत देने से इंकार कर दिया।

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उप श्रमायुक्त का हस्तक्षेप, 15 दिनों में भुगतान का आदेश  

लगातार मिल रही अन्याय की मार से तंग आकर देवदत्त मिश्रा ने श्रम विभाग में शिकायत दर्ज करवाई। इस पर संज्ञान लेते हुए उप श्रमायुक्त दिव्य प्रताप सिंह ने ग्रामीण अभियंत्रण सेवा के अधिशासी अभियंता को नोटिस जारी किया है। आदेश दिया गया है कि 15 दिनों के भीतर देवदत्त मिश्रा को 9,05,768 रुपए का भुगतान किया जाए। अगर इस अवधि में भुगतान नहीं हुआ, तो अधिशासी अभियंता के खिलाफ आरसी जारी कर वसूली की जाएगी।

कर्मचारी के हक की लड़ाई, जो कभी खत्म नहीं हुई  

देवदत्त मिश्रा के इस संघर्ष ने सरकारी विभागों में कर्मचारियों के साथ होने वाले अन्याय की सच्चाई उजागर कर दी है। 4 दशक से ज्यादा समय तक वे अपने अधिकारों के लिए कोर्ट के चक्कर लगाते रहे, लेकिन विभागीय अधिकारी लगातार उनकी अनदेखी करते रहे। अब सवाल यह है कि क्या 40 साल की लड़ाई के बाद देवदत्त मिश्रा को उनका हक मिलेगा? या फिर यह मामला भी सरकारी फाइलों में कहीं दबकर रह जाएगा?

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