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बरेली,वाईबीएनसंवाददाता
बरेली। श्री त्रिवटी नाथ मंदिर में आयोजित संगीतमयी श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस श्रीमद्भागवताचार्य पूज्य पंडित देवेंद्र उपाध्याय ने भगवान कृष्ण जन्म की कथा सुनाई। इस कथा को सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए कथा व्यास ने कहा कि संसार में भगवान जिसे सुख देना चाहते हैं, उसी को सुख प्राप्त होता है। जिसको भगवान सुखी नहीं रखना चाहते हैं, वह अपना जीवन दुखों में ही जीता है।
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परमात्मा की लीला: वसुदेव के घर जन्म, नंद बाबा के यहाँ बधाई
कथा व्यास ने बताया कि परमात्मा जिसे सुख देना चाहते हैं उसे मिलता है। इसका अर्थ यह है कि जैसे बेटा हुआ बसुदेव जी के घर और बधाई बाजी नंद बाबा के यहां बजी। श्री कृष्ण जन्म के समय 18 श्लोकों में नंदोत्सव मनाया गया l। मानो यह 18 श्लोक 18 पुराणों का प्रतिनिधित्व कर रहे हों। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था । श्रीकृष्ण के जन्म की इसी शुभ घड़ी का उत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा था। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने बुधवार के दिन रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था। अष्टमी तिथि को रात्रिकाल अवतार लेने का प्रमुख कारण उनका चंद्रवंशी होना है। श्रीकृष्ण चंद्रवंशी, चंद्रदेव उनके पूर्वज और बुध चंद्रमा के पुत्र हैं। इसी कारण चंद्रवंश में पुत्रवत जन्म लेने के लिए कृष्ण ने बुधवार का दिन चुना है। कथा में उपस्थित भक्तों ने नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की के सुंदर गीत के साथ वातावरण वृंदावन के समान हो गया।
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कथा व्यास कहते हैं कि बालकृष्ण की बाल लीलाओं में अमृत के समान आनंद सभी ग्वाल बाल तथा ब्रज वासियों को प्राप्त होता है। अपनी लीलाओं के साथ साथ वृंदावन वासियों के सभी दुखों को दूर करते हैं तथा राक्षसों से उनकी सुरक्षा करते हैं। कथा व्यास बताते हैं कि खेल खेल में कालिया नाग का मर्दन करते हैं जिसने यमुना जी के जल को दूषित कर रखा था।
ब्रज की तीन वस्तुएँ: बेणु, धेनु और रेनू की महिमा
भागवताचार्य ने वेणु गीत की महिमा का वर्णन करते हुए कहा जिसे सुनकर ब्रह्म सुख का अनुभव हो वह बेणु है बृज की तीन वस्तु बहुत प्रसिद्ध है बेणु धेनु और रेनू तीनों की अपनी-अपनी महिमा है ।श्री कृष्णा ने देखा कि बृजवासी साल में एक बार इंद्र की पूजा करते हैं जिससे इंद्र का अभिमान बढ़ रहा है तो उन्होंने इंद्र के अभिमान को दूर करने के लिए इंद्र के स्थान पर गिरिराज गोवर्धन की पूजा कराई। इंद्र ने नाराज होकर के सात दिन सात रात ब्रज में जल बरसाया ।भगवान ने गिरिराज पर्वत को अपने बाएं हाथ के ऊपर धारण कर लिया और नाम गिरधारी पड़ा।
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कथा के उपरांत काफी संख्या में उपस्थित भक्तों ने श्रीमद्भागवत की आरती की। उसके बाद प्रसाद वितरण हुआ। आज की कथा में मंदिर कमेटी के प्रताप चंद्र सेठ, मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल,सुभाष मेहरा तथा हरिओम अग्रवाल का मुख्य सहयोग मिला।