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बरेली,वाईबीएनसंवाददाता
बरेली। श्री त्रिवटी नाथ मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस श्रीमद्भागवताचार्य पंडित देवेंद्र उपाध्याय ने बताया कि भगवान सदैव अपने भक्तों के अनुकूल रहते हैं। वह उनके विश्वास को अटल करने के लिए भक्त प्रहलाद को खंभे में से नर सिंह रूप धारण करके अवतार लेते है। असुराधिपति हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से प्रहलाद की रक्षा करते हैं। हिरण्यकश्यप का बध करते हैं। भगवान नरसिंह रूप में इतने क्रोध में थे कि किसी देवता की हिम्मत नहीं पड़ी कि सामने आकर के स्तुति करें और उनका क्रोध शांत कर सकें।परन्तु अपने भक्त के आगे उनका क्रोध शांत भी हो जाता है तो वह अपनी गोद में प्रहलाद को बिठा कर अपना लाड़ दुलार भी करते हैं।भगवान अपने भक्तों के निश्छल प्रेम समर्पण के आगे मानो बेबस हो जाते हैं।
संकट में ही क्यों करते हैं भगवान का स्मरण
कथाव्यास उपाध्याय कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होता है, परमात्मा का स्मरण करना। लेकिन हम लोग भगवान का स्मरण नहीं करते और बाकी सब काम करते हैं। स्मरण करते भी है तो जब संकट आता है तब। यदि हमेशा स्मरण करते रहेंगे तो दुख आएगा ही नहीं ।इस प्रसंग को गजेंद्र के चरित्र से जोड़ करके बताया गया। गजराज के पैर को जब ग्राह ने पकड़ लिया। तब उसे भगवान का स्मरण आया और उसने श्री हरि को पुकारा उस की करुण पुकार सुनकर के भगवान गरुड़ पर सवार होकर के आए और ग्राह से गजेंद्र की रक्षा की।
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देवताओं की शरण में भगवान नारायण
कथा व्यास ने भगवान के बामन अवतार के बारे में बताते हुए कहा कि देवताओं के ऊपर जब भी संकट आता है तो भगवान नारायण की शरण में जाते हैं और भगवान उनके संकट दूर कर देते एक बार दैत्यराज बलि के ऊपर उनके गुरु शुक्राचार्य जी की इतनी कृपा हुई कि उन्होंने त्रिलोक को को जीत लिया और त्रिलोकीनाथ कहलाए फिर भगवान उनके द्वार पर ब्राह्मण बालक बामन के रूप में गए और तीन पग भूमि के बहाने तीन लोक वापस ले लिए।
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सूर्यवंश और चंद्रवंश का महत्व
कथाव्यास ने इसका अभिप्राय बताते हुए कहा कि हम मानव को कभी प्रकृति पर अपना आधिपत्य और अधिकार समझने की भूल नहीं करनी चाहिए अपितु जो कर्म हमारे कर्तव्य स्वरूप हैं उनका सदैव पालन करना चाहिए। कथा व्यास भगवान के मत्स्य अवतार जी बारे में बताते हुए कहते हैं कि जब भगवान के भक्त सत्यवत की इच्छा प्रलय देखने की हुई तब भगवान ने मत्स्य रूप धर के उनकी अच्छा पूर्ण की। भागवत आचार्य ने कहा श्रीमद्भागवत में दो विशेष वंशो का वर्णन है। सूर्यवंश और चंद्रवंश ।सूर्यवंश में श्री राम भगवान आते हैं तो चंद्र वंश में श्रीकृष्ण पधारते हैं। रामचरित्र परम पवित्र है जबकि कृष्ण चरित्र महाविचित्र है।कृष्ण चरित्र सुनने से पहले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का चरित्र सुनना अति आवश्यक होता है तभी कृष्ण चरित समझ में आता है।
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राम का दिन में, कृष्ण का रात में जन्म
भगवान श्रीराम ने जो किया ठीक उसका उल्टा श्री कृष्ण ने किया। राम जी ने दिन में जन्म लिया तो कृष्ण जी ने रात में राम जी चार भाई थे कृष्ण जी आठ भाई थे। श्री रामजी सबसे बड़े थे जबकि कृष्ण जी सबसे छोटे ।श्री राम महल से वन को गए परंतु कृष्ण जी वन से महल को गये और द्वारकाधीश कहलाए। श्री राम जी का शत्रु रावण समुद्र के बीच सोने के महल लंका में रहता था और कृष्ण जी स्वयं समुद्र के बीच द्वारकापुरी जोकि सोने की थी उस में रहते थे। भगवान श्री राम की पत्नी सीता का हरण उनके शत्रु रावण ने किया तो श्रीकृष्ण अपने शत्रु शिशुपाल की होने वाली पत्नी रुक्मणी का हरण कर ले गए।
महल से वन बनाम वन से महल का सफर
भगवान श्रीराम ने जो किया ठीक उसका उल्टा श्री कृष्ण ने किया। राम जी ने दिन में जन्म लिया तो कृष्ण जी ने रात में राम जी चार भाई थे कृष्ण जी आठ भाई थे। श्री रामजी सबसे बड़े थे जबकि कृष्ण जी सबसे छोटे ।श्री राम महल से वन को गए परंतु कृष्ण जी वन से महल को गये और द्वारकाधीश कहलाए। श्री राम जी का शत्रु रावण समुद्र के बीच सोने के महल लंका में रहता था और कृष्ण जी स्वयं समुद्र के बीच द्वारकापुरी जोकि सोने की थी उस में रहते थे। भगवान श्री राम की पत्नी सीता का हरण उनके शत्रु रावण ने किया तो श्रीकृष्ण अपने शत्रु शिशुपाल की होने वाली पत्नी रुक्मणी का हरण कर ले गए ।