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बरेली। जिला कृषि अधिकारी ऋतुषा तिवारी ने मंगलवार को मीरगंज इलाके में खाद की दुकानों पर अचानक छापा मारा। 11 दुकानें चेक की। सात दुकानों के लायसेंस निलंबित। चार दुकानों से खाद के नमूने भरे। दुकानदारों में अफरा तफरी मच गई। तमाम दुकानदार अपनी दुकानें बंद करके भाग गए।
अचानक छापा मारने का मक़सद क्या था।
यह ख़बर मंगलवार को पूरे दिन कृषि विभाग और सोशल मीडिया में छाई रही। क्या आपको पता है कि रबी सीजन खत्म होने के बाद खाद की दुकानों पर अचानक छापा मारने का मक़सद क्या था। कृषि विभाग के सूत्रों की मानें तो खाद की थोक और फुटकर दुकानों पर सीजन के ढलान के वक्त अचानक छापा मारकर उनसे होने वाली वसूली करना रहता है। तमाम गैर लाइसेंस वाले दुकानदार सीजन खत्म होने के बाद कृषि विभाग के बाबू को तय रकम देने नही आते हैं। ये छापामारी उसी अवैध रकम की वसूली के लिए की जाती है, ताकी खरीफ से पहले हिसाब किताब साफ हो जाए। क्योंकि मार्च/अप्रैल में कृषि विभाग के अफसरों का ट्रांसफर सीजन भी है। मान लीजिए। कही इधर से उधर हो गए तो लाखों की ऊपरी कमाई मारी जायेगी। इसलिए मार्च से पहले ऊपरी कमाई का पूरा हिसाब निपटाना जरूरी है।
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जब खाद की किल्लत थी तो क्यों नहीं हुई छापामारी
किसान यूनियन के एक नेता का कहना है कि जब गेहूं बुवाई के समय एनपीके, डीएपी और यूरिया की भारी किल्लत थी। खाद की कालाबाजारी चल रही थी तो उस वक्त दुकानों पर छापामारी क्यों नहीं हुई। अब जब रबी फसलों में खाद लगाने का सीजन ढलान पर है तो दुकानों पर अचानक छापा मारने का क्या मकसद हो सकता है। न इस समय डीएपी, एनपीके और यूरिया के लिए किसान परेशान हैं, न खाद की कमी है। फिर अचानक खाद की दुकानों पर छापा मारने का ख्याल आया है तो इसके पीछे ज़रूर कोई खास मकसद छुपा है।
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ग्रामीण इलाकों में बाबू की शह पर बिना लाइसेंस चल रही हैं 5000 से ज्यादा दुकानें
कृषि विभाग के ऊपरी कमाई के खेल में किसान तो पूरी तरह फेल हैं। केवल विभागीय स्टाफ ही मौज में है। सूत्रों के अनुसार बरेली के क्यारा, देवचरा, बल्लिया, भमौरा, आलमपुर जफराबाद,आंवला, रामनगर, मझगवां, फतेहगंज पश्चिमी, मीरगंज, शीशगढ़,शाही, शेरगढ़, बहेड़ी, रिछा, नवाबगंज, भोजीपुरा, क्योलाडिया, भुता, फरीदपुर, फतेहगंज पूर्वी, बिथरी समेत अन्य ग्रामीण इलाकों में 5000 से अधिक खाद की थोक और फुटकर दुकानें बिना लाइसेंस लिए नियम विरूद्ध चल रही हैं। प्रत्येक दुकान से थोक और फुटकर के हिसाब से कृषि विभाग की वसूली के रेट तय हैं। रबी और खरीफ सीजन में प्रत्येक थोक दुकान से 10 हजार और फुटकर दुकानों से 5000 रुपए कृषि विभाग के बीस साल से जमे बाबू के जरिए अवैध तरीके से वसूले जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक रबी और खरीफ सीजन में खाद की दुकानों से कृषि विभाग की ऊपरी कमाई करोड़ों रुपए में है। अब जबकि रबी की सीज़न ढलान पर है। बहुत सी दुकानों से ऊपरी कमाई का हिस्सा कृषि विभाग के बाबू और अफसरों तक नहीं पहुंचा है। इसीलिए छापा मारकर इस धनराशि की वसूली का खेल शुरु हो गया है। खाद बीज की दुकानों पर छापामारी की आड़ में उपरी कमाई का खेल फरवरी के अंत या फिर 15 मार्च तक चल सकता है।
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निजी फायदे के मक़सद से सरकारी राजस्व का भारी नुकसान
सूत्रों के अनुसार कृषि विभाग ग्रामीण इलाकों में बिना लाइसेंस खाद बीज की थोक और फुटकर दुकानने चलवाकर रबी और खरीफ सीजन में 50 लाख रुपए के सरकारी राजस्व का नुकसान कर रहा है। क्योंकि अगर ग्रामीण इलाकों में बिना लाइसेंस खाद की दुकानें न चलें तो दुकानदार खाद की बिक्री लाइसेंस लेकर करेंगे। जिसके राजस्व का फायदा कृषि विभाग के बाबू और अफसरों को न होकर सरकार को होगा। मगर, कृषि विभाग के बाबू और अफसरों की रुचि सरकारी राजस्व में बढ़ोतरी न करके अपनी निजी आमदनी बढ़ाना है। इसके चलते लाइसेंस धारक दुकानदारों की बजाय गैर लाइसेंस दुकानों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
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मथुरापुर में एक निजी थोक दुकान पर रबी सीजन में उतरी सरकारी खाद की रैक
कृषि विभाग के सूत्रों का कहना है कि रबी सीजन में जब गेंहू और अन्य फसलों की बुवाई के लिए एनपीके, डीएपी और यूरिया की किसनों को बहुत सख्त जरूरत थी तो सरकारी खाद की बड़ी रैक रामपुर रोड पर सीबीगंज से आगे मथुरापुर में एक प्राइवेट दुकान पर उतरती रही। उसमे कृषि विभाग के बाबू ने लाखों रुपए की ऊपरी कमाई की। उसी ऊपरी कमाई से अफसरों के घर और दफ्तर में दो- दो नए एसी लग गए। साथ ही बाथरूम की टाइल भी नई हो गई। बाबू ने भी ऊपरी कमाई से पहाड़ों की सैर करके खूब मौज ली। किसान एक या दो कट्टा खाद लेने के लिए दर बदर ठोकरें खाते रहे।
इसलिए ट्रांसफर के बाद भी नहीं रिलीव हुआ बाबू
खाद की कालाबाजारी से होने वाली ऊपरी कमाई निर्बाध गति से अफसरों तक पहुंचती रहे। इसीलिए जिला कृषि अधिकारी ऋतुषा तिवारी ने बीस साल से तैनात अपने दफ्तर के बाबू अमित कुमार वर्मा को शासन से ट्रांसफर होने के सात महीने बाद भी रिलीव नही किया। इस मामले में जेडी एग्रीकल्चर राजेश कुमार ने डीएओ से स्पष्टीकरण भी तलब किया था। मगर, इस मामले में जिला कृषि अधिकारी ने रिलीव न करने का कोई न कोई बहाना बनाकर सारी हदें पार कर दी। उन्होनें अपने उच्च अधिकारियों की बात भी नहीं मानी। इस मामले में जिला कृषि अधिकारी से पक्ष जानने के लिए उनके सीयूजी नंबर पर कॉल की गई। यह रिसीव नहीं हुई।