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जिसका जितना बड़ा कमीशन, वह उतना बड़ा स्मार्ट... जोगीरा सारा रा..

आज शुक्रवार का दिन था। सबका होली खेलने का मूड बन चुका था। सुबह से ही चहल पहल होने लगी थी। होरियारे रात से ही रंग की बाल्टी पिचकारी और एक से एक कलर तैयार किए बैठे थे।

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Sudhakar Shukla
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SOURCE : AI

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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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बरेली। आज शुक्रवार का दिन था। सबका होली खेलने का मूड बन चुका था। सुबह से ही चहल पहल होने लगी थी। होरियारे रात से ही रंग की बाल्टी पिचकारी और एक से एक कलर तैयार किए बैठे थे। कब सुबह हो कि कारगिल की जंग में पिचकारी से धू धाय करें। 

हकीम लुक्का भी होली के रंग में रंगे हुए थे। वह होली पर रंग खेलकर हंसी ठिठोली का मूड पूरी तरह से बना चुके थे। सो, मोटी सी पिचकारी पीठ पर लादी और निकल पड़े सफेदपोश नेताओं के साथ होली खेलने। हकीम की नौकरी कोरोना खा गया। बची खुची कसर महंगाई ने पूरी कर दी। सो, हकीम लुक्का रंग नही खरीद पाए। जेब में पैसे नहीं थे। लुक्का ने सोचा कि थोड़ा बहुत रंग नगर निगम से ले लेंगे। सरकारी हिसाब किताब है। कुछ छूट पर मिल जाएगा। यह सोचते हुए फटे पुराने कपड़ों में जब लुक्का नगर निगम पहुंचे तो देखा कि यहां तो नीचे से लेकर ऊपर तक के साहब बरेली को स्मार्ट बनाने के काम में लगे हैं। दे सड़क। दे नाली। दे लाइट खरीद। दे यूपीपोल विज्ञापन। सब पर खूब काम चल रहा है। लुक्का ने सोचा कि वाकई बरेली स्मार्ट बनने के कगार पर उसी तरह से खड़ा है, जिस तरह से आउटर पर ट्रेन आकर खड़ी हो जाती है। तब तक नगर निगम के कर्मचारियों ने बताया कि जो काम हो रहे हैं, वह इसलिए नहीं हो रहे हैं कि बरेली को स्मार्ट बनाएंगे। यह काम इसलिए चल रहे हैं क्योंकि इनका धड़ाधड़ कमीशन जेब में आ रहा है। पूछने पर अफसर बोले, यही कमीशन खोरी हमे स्मार्ट बनाएगी। जिसका जितना बड़ा कमीशन, वह उतना बड़ा स्मार्ट। हकीम लुक्का को लगा कि नगर निगम ने अगर इतनी तेजी दिखाई है तो बरेली एक महीने के अंदर सिंगापुर की टक्कर का स्मार्ट सिटी बन जाएगा। 

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बुरा न मानो होली है....

नगर निगम में नीले, पीले, हरे, लाल सब तरह के रंगो का स्टॉल लगाए साहब लोग कुर्सियों पर विराजमान थे। इसी बीच लुक्का ने रंग का भाव पूछा तो पता चला एक करोड़ का 40%। यानि कि 40 लाख। सुनकर लुक्का के होश उड़ गए। हकीम लुक्का बोले, सरकारी रंग इतना ज्यादा महंगा, कैसे। तभी निर्माण विभाग के इंजीनियर बोले, नगर निगम में कमीशन बढ़ने से स्मार्ट सिटी का रंग मंहगा हो चुका है। फिर सिंगापुर में कौन सी चीज सस्ती मिल रही है। अगर हम सब बरेली के बाशिंदों को सिंगापुर की तरह स्मार्ट बनना है तो 40% कमीशन देने की आदत डालनी पड़ेगी। फिर 40% कमीशन कोई ज्यादा नहीं है। ऊपर से नीचे तक सबको जाता है। खास बात यह कि  सबके रेट फिक्स हैं। कमीशन में 100% ईमानदारी है। कोई भी अपना कमीशन एक % भी न बढ़ाकर ले सकता है, न घटाकर। जब तक रेट रिवाइज नहीं होते। रेट रिवाइज होने पर एक अप्रैल से कमीशन बढ़ेगा।  हकीम लुक्का की मारे डर के घिग्घी बंध गई। वह बिना रंग खेले ही यहां से निकल लिए। 

भाई साहब, आपका परिचय... क्या शमशान में मिले थे हम दोनों 

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अब हकीम लुक्का सीधे पहुंच गए अस्पताल में। शहर के माननीय डॉक्टर साहब के साथ होली खेलने। डॉक्टर साहब जंगल से जुड़े व्याक्ति हैं। वह आदमी को कम, जानवर को अच्छे से पहचानते हैं। सी, होली के दिन डॉक्टर साहब हकीम लुक्का को पहचानना भूल गए। हाथ जोड़कर बोले, भाई साहब। आपका परिचय। हकीम लुक्का चुप थे। क्योंकि वह डॉक्टर साहब से आए दिन मिलते रहते थे। और डॉक्टर साहब ने उनका ही परिचय पूछ लिया। डॉक्टर साहब फिर बोले, क्या हम आपसे कहीं शमशान में मिले हैं या  दसवां संस्कार में। हकीम लुक्का को तो सांप सूंघ गया। यहां भी डॉक्टर साहब से हकीम लुक्का की होली खेलने की हिम्मत नहीं पड़ी। 

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ऐरा गैरा नाथू खैरा के साथ होली नहीं खेलते... साहब 

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अब अगली बारी थी भारत माता की सेवा वाली गली की। यहां पहुंचकर हकीम लुक्का राजनीति के भीष्म पितामह के गालों पर रंग लगाना चाहते थे। जैसे ही हकीम लुक्का भारत माता की सेवा वाले द्वार पर पहुंचे तो एक सज्जन बाहर ही मिल गए। छूटते ही हकीम लुक्का से बोले, अरे, बिना पूछे अंदर कहां जा रहे हो। जबाव मिला, आज होली है। साहब के साथ रंग खेलेंगे। गेट वाले सज्जन ने तुरंत पलटवार किया। साहब के साथ ऐरा गेरा नत्थू खेरा रंग नही खेलता। साहब के गालों पर उनकी कुछ पुरानी महिला मित्र कबकी रंग लगाकर जा चुकी हैं। जरूरत पड़ने पर यह मित्र दूसरे स्टेट में जाकर भी जब मन चाहे, तब रंग लगाकर बरेली वापस आ जाती हैं। तुम बेकार में बाल्टी पिचकारी लिए फिरते हो। अपनी प्रिय महिला मित्र के साथ रंग खेलने के लिए साहब होली का इन्तजार नहीं करते। उनके साथ तो जैसे और जिस दिन चाहे, उस दिन होली खेल लेते हैं। साहब और महिला मित्र का जब भी मूड बन जाए तो  हर दिन होली और हर रात दिवाली है। हकीम लुक्का के तो काटो खून नहीं। अब यहां भी हकीम की दाल नहीं गली। सो बिना रंग लगाए उल्टे पांव भागना पड़ा। 

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नालायक को क्या कहूं, धक्का लगाने पर भी आगे नहीं बढ़ा....

अब बारी थी रामपुर गार्डन की। यहां एक माद (कोठी) में बूढ़े शेर होली के दिन कुछ मन ही मन में बडबडा रहे थे। तब तक हकीम लुक्का पिचकारी बाल्टी लेकर उनके सामने पहुंच गए। बोले, सर, आप पूरी यूपी का खजाना सम्हाल चुके हैं। फिर आज होली के दिन कोरे बैठे हैं। ये कैसे हो सकता है। थोड़ा रंग गालों पर लगा लो। बूढ़े शेर ने दहाड़ लगाई। बोले, हकीम लुक्का। तुम चुप रही। मै बहुत गुस्से में हूं। बेटे की तरफ़ आंख लाल करके बोले, और इस नालायक को क्या कहूं मैं। चाहता था कि मेरे सामने ही सदन में पहुंच जाए। मगर, धक्का लगाने पर भी आगे नहीं बढ़ा। अब टिकट इतने मोटे आदमी के पास चला गया कि उसे वापस लाने में मशक्कत करनी पड़ रही है। समय रहते जाग गया होता तो कम से कम विधायकी बाहर नहीं जाती। इसीलिए होली में भी बिना रंगे कोरे बैठे हैं। हकीम लुक्का ने जब बुजुर्ग शेर के मुख से उनका दर्द सुना तो रंग लगाने की हिम्मत नही पड़ी। ऐसे ही पिचकारी लेकर बाहर निकल गए। 

विधायक जी ने बरेली में चलवा दी मेट्रो रेल... जोगीरा सारा रा... रा 

पड़ोस में दूसरी कोठी थी। सोचा, लगे हाथ यही रंग लगाकर सगुन कर लें। जैसे ही हकीम लुक्का कोठी के अंदर घुसे तो पता चला कि विधायक जी, मढ़ीनाथ और सुभाषनगर में अपना स्वागत कराने गए हैं। हकीम लुक्का ने जानना चाहा कि विधायक जी ने ऐसी कौन सी उपलब्धि हासिल कर ली कि उनका स्वागत हो रहा है। इस पर विधायक जी के एक कट्टर समर्थक बोल उठे, हकीम लुक्का, तुम्हे पता नहीं है कि भाई साहब, बरेली के इतिहास में ऐसे पहले विधायक बन चुके हैं जिन्होंने विधानसभा के अंदर बरेली में मेट्रो रेल चलाने और सुभाषनगर रेल लाइन पर पुलिया निर्माण का मुद्दा उठाया है। इससे पहले आज तक किसी विधायक ने ऐसा मुद्दा नहीं उठाया। न हीं आगे भविष्य में कोई उठा पाएगा। इस इतिहास को रचने के लिए विधायक जी का सम्मान बरेली की जनता कर रही है। इसलिए यह रंग खेलने का समय नहीं है।  सम्मान प्राप्त करने का समय है। विधायक जी ने इतिहास रच दिया है। न भूतो, न भविष्य। अर्थात ऐसा विधायक न भूतकाल में कभी हुआ,  न भविष्य में कभी होगा। जोगिरा सारा रा सारा रा....। फिलहाल राजनीति का यह हाल देख करके हकीम लुक्का बिना किसी को रंग लगाए ऐसे ही वापस चले गए और बोले 

राजनीति के खेल में मची है रेलमपेल, नेता मालामाल हैं, जनता हो गई फेल....

 जोगीरा सा रा रा..।

बुरा न मानो होली है..।

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