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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
शादी के बाद प्लाट खरीदने के लिए ससुराल से पैसा न मिलने पर पत्नी की हत्या करने वाले पति ,सास व ससुर को अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई। सजा का आदेश विशेष न्यायाधीष रवि कुमार दिवाकर ने किया। घटना थाना आंवला के हाजीपुर गांव की है जिसकी रिपोर्ट मृतका के पिता ओम प्रकाष की ओर से लिखाई। रिपोर्ट में कहा गया कि उसने घटना से 3 साल पहले अपनी बेटी सुमिता की शादी आंवला के पुष्पेंद्र से की थी। इस शादी मे उसने मोटर साईकिल, टीवी, फ्रिज समेत सभी चीजें दी थी। इसके बावजूद उसकी बेटी का पति 200 गज का प्लाट लेने के लिए उसके साथ मारपीट करता था।
12 फरवरी 2024 को उसकी बेटी के पति पुषपेंद्र, ससुर वेदपाल, सास गुडडी, नंद मीरा व देवर लोकेंद्र ने मिलकर उसका गला दबा कर हत्या कर दी। वादी सूचना पर जब अपनी बेटी की ससुराल पहुंचा तो वह लोग झगड़े पर उतारू हो गए। पुलिस ने चारों लोगोे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली। विवेचना के बाद वेदपाल, पुषपेद्र व गुडडी देवी के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र पेष किया। अदालत में अभियोजन की ओर से सरकारी वकील संतोष श्रीवास्तव ने पैरवी करते हुए इस मामले में 8 गवाह पेष किए। कोर्ट ने तीनों अभियुक्तों को दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई। इसके अलावा अदालत ने सभी अभियुक्तों पर ₹45- 45 हजार का जुर्माना भी लगाया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिलाओं को भारत में हिंदु धर्म में लक्ष्मी का दर्जा दिया गया। दहेज के लालच में किसी निर्दोष महिला की हत्या करना भारतीय विधान मे तो अपराध है ही यह हिंदु धर्म में भी पाप है। कोर्ट ने अपनी बात को कहने के लिए कविताओं का भी सहारा लिया। एक रचना को कोट करते हुए कहा कि...
बहु गाय जैसी सीधी -साधी चाहिए
और दहेज की उम्मीद भी रखते हो
संस्कार चाहिए माता सीता जैसे
और कैकयी सा व्यवहार करते हो
दूसरी रचना में कहा कि
बिकता है लड़का ,र्षमिंदा क्युं है लड़की,
औकात लड़के की ही दिखती है,
बाजार में लडकी नहीं बिकती है।
अपने फैसले में अदालत ने कहा कि मृतका के गर्भ में बच्चा पल रहा था अर्थात अभियुक्तगण ने केवल एक र्निदोष महिला की ही हत्या नहीं की गई बल्कि दो हत्यायें एक साथ की है। एक र्निदोष बच्चा इस संसार में आने से पहले ही अलविदा हो गया। कोर्ट ने अलग जगहो पर कविताओं का सहारा लिया है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार विवाह के पवित्र बंधन को निंदनीय रूप दे दिया गया है और विवाह के समय हिंदु धर्म में पति के द्वारा ली गई षपथ नैपथ्य में चली जाती है और सात जन्मों के इस पति पत्नी के बंधन का कोई महत्व नहीं रह जाता है। विवाह के पूर्व और पष्चात या उसके परिवार के सदस्यों के द्वारा दहेज की मांग निरंतर की जाती है।