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बिहार चुनाव 2025 : 'विरासत की जंग' में 'पावर गर्ल्स'? क्या है सियासी खेल? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।बिहार में इस बार का विधानसभा चुनाव सिर्फ समीकरणों का नहीं, बल्कि 'विरासत' को आगे बढ़ाने वाली नई पीढ़ी का भी है। आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह, बाहुबली मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला, खेल जगत की श्रेयसी सिंह और छात्र नेता दिव्या गौतम जैसी 'पावर गर्ल्स' ने सियासी रण में उतरकर राज्य की पारंपरिक राजनीति को हिला कर रख दिया है। क्या ये पढ़ी लिखी युवा या यूं कहें कि अपने दम पर पहचान बनाने वाली बेटियां, पिता की विरासत को कामयाबी के शिखर तक पहुंचा पाएंगी?
यह कहानी सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि बिहार के बदलते भविष्य की भी है। बिहार की राजनीति हमेशा से जटिल और पुरुष प्रधान मानी गई है, लेकिन इस बार हवा बदल रही है। विधानसभा चुनाव 2025 में महिला उम्मीदवारों की भागीदारी एक नया अध्याय लिख रही है। इन उम्मीदवारों में सबसे खास वे हैं, जो अपनी पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए मैदान में उतरी हैं। हालांकि, इनमें से ज़्यादातर बेटियां ऐसी हैं जो सिर्फ नाम से नहीं, बल्कि अपनी शिक्षा, अनुभव और ज़मीनी समझ से खुद की एक अलग पहचान भी बना चुकी हैं। वे पिता के नाम को सिर्फ एक लॉन्चपैड मानती हैं, लेकिन उड़ान अपने पंखों से भरना चाहती हैं।
यह सियासी रण इन 'विरासत वाली बेटियों' के लिए सिर्फ एक चुनाव नहीं, बल्कि बिहार के पारंपरिक राजनीतिक ताने-बाने को बदलने का एक बड़ा मौका है। आइए, यंग भारत न्यूज के इस एक्सप्लेनर में जानते हैं कि कौन हैं ये बेटियां और इनके मैदान में उतरने के क्या हैं सियासी मायने।
लता सिंह नीतीश के गढ़ में जनसुराज की नई चुनौती
पूर्व केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी रहे आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह के मैदान में उतरने से नालंदा की अस्थावां सीट हॉट हो गई है। लता सिंह एक वकील भी हैं और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करती हैं। उनकी बहन, आईपीएस अधिकारी लिपि सिंह भी एक चर्चित नाम हैं।
शिक्षा और पहचान: लता सिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली के DPS आरके पुरम से पूरी की और ग्रेजुएशन दिल्ली यूनिवर्सिटी के श्रीराम कॉलेज से किया। उन्होंने DU से ही लॉ की डिग्री भी हासिल की है। उनका शैक्षणिक प्रोफाइल बताता है कि वह सिर्फ 'राजनेता की बेटी' नहीं, बल्कि एक पेशेवर हैं।
सियासी तेवर: वह प्रशांत किशोर की नवगठित 'जन सुराज' पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। यह अपने आप में एक साहसिक कदम है, क्योंकि वह उस क्षेत्र से लड़ रही हैं जो लंबे समय से नीतीश कुमार का गढ़ रहा है। लता सिंह कहती हैं कि नीतीश कुमार का सम्मान आज भी है, लेकिन अब वे पहले जैसे नहीं रहे। उनका मानना है कि जन सुराज के जरिए बिहार को एक नई दिशा देने की ज़रूरत है।
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शिवानी शुक्ला बाहुबली परिवार की 'पढ़ी-लिखी' सियासी वारिस
बिहार की राजनीति में बाहुबल और परिवारवाद एक साथ चलते रहे हैं। वैशाली की लालगंज सीट पर बाहुबली नेता मुन्ना शुक्ला और पूर्व विधायक अन्नू शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला राष्ट्रीय जनता दल RJD की उम्मीदवार बनकर मैदान में हैं।
हायर एजुकेशन का दम: शिवानी ने अपने माता-पिता के पारंपरिक राजनीति से अलग अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने बेंगलुरु से लॉ में ग्रेजुएशन किया है और ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय से पीजी की डिग्री हासिल की है।
तेजस्वी पर भरोसा: शिवानी तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर भरोसा जताते हुए लालगंज से चुनाव लड़ रही हैं। यह वही क्षेत्र है जिसका उनके माता-पिता ने पहले प्रतिनिधित्व किया है।
चुनौती: शिवानी को अपने पारिवारिक पृष्ठभूमि से जुड़ी पुरानी छवि और नई राजनीति की उम्मीदों के बीच संतुलन साधना होगा।
श्रेयसी सिंह खेल से राजनीति तक सफर, एक राष्ट्रीय आइकन
भाजपा की ओर से जमुई से मौजूदा विधायक श्रेयसी सिंह एक ऐसा नाम है जो राजनीति और खेल जगत, दोनों में एक प्रमुख चेहरा बन चुका है। वह सिर्फ एक विधायक नहीं, बल्कि 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक विजेता भी हैं।
विरासत से बड़ी पहचान: श्रेयसी पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी हैं। हालांकि, उनकी अपनी पहचान उनके खेल और उनकी राष्ट्रीय उपलब्धियों से बनी है, जो उन्हें अन्य विरासत वाली बेटियों से अलग खड़ा करती है।
अकादमिक और राजनीतिक सफलता: श्रेयसी DPS आरके पुरम और हंसराज कॉलेज की पूर्व छात्रा रही हैं। उनके पास फरीदाबाद से एमबीए की डिग्री भी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने करीब 80000 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी। उन्होंने महागठबंधन के उम्मीदवार को हराकर अपनी राजनीतिक ज़मीन मज़बूत की।
श्रेयसी सिंह पारंपरिक राजनीति से परे महिलाओं की उपलब्धि का प्रतीक बन चुकी हैं। उनका जीतना इस बात का संकेत है कि बिहार में अब युवाओं के लिए खेल, राजनीति और शिक्षा सब आपस में जुड़ रहे हैं।
दिव्या गौतम शिक्षा और सामाजिक सक्रियता की आवाज़
पटना के दीघा से भाकपा-माले CPI-ML की प्रत्याशी दिव्या गौतम की कहानी थोड़ी अलग है। वह सिर्फ एक राजनेता की बेटी नहीं हैं, बल्कि एक मानवाधिकार कार्यकर्ता और शिक्षाविद् भी हैं। उनकी पहचान अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की चचेरी बहन के रूप में भी है, लेकिन उनका असली काम ज़मीनी सक्रियता से जुड़ा है।
शिक्षा और ज़मीन से जुड़ाव: दिव्या टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान TISS से पीजी, यूजीसी नेट क्वालिफ़ायर और बिहार लोक सेवा आयोग BPSC की परीक्षा में सफल रही हैं।
छात्र राजनीति की जड़ें: दिव्या छात्र राजनीति का एक जाना-माना चेहरा रही हैं। वह अपने कॉलेज के दिनों से ही भाकपा माले और उसकी छात्र शाखा आइसा से जुड़ी रही हैं।
दिव्या का मुख्य फोकस: शिक्षा और रोज़गार के मुद्दों को राजनीति के केंद्र में लाना है। वर्षों से उन्होंने मानवाधिकारों और दलितों के मुद्दों पर काम किया है, जो उन्हें एक ज़मीनी और वैचारिक नेता बनाता है।
चुनौती: दीघा विधानसभा क्षेत्र वर्तमान में बीजेपी के पास है और पिछले दो चुनावों से जीत मिली है।
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अन्य महत्वपूर्ण चेहरे कोमल सिंह
इस सूची में एक और नाम मुजफ्फरपुर के गायघाट से जेडीयू उम्मीदवार कोमल सिंह का भी है। वह जेडीयू एमएलसी दिनेश सिंह और वैशाली की सांसद वीणा देवी की बेटी हैं। कोमल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और सिम्बायोसिस, पुणे से एमबीए किया है। टाटा ग्रुप के साथ कॉर्पोरेट अनुभव रखने वाली कोमल ने 2020 में भी चुनाव लड़ा था, लेकिन तब उन्हें शिकस्त मिली थी। उनका दोबारा मैदान में उतरना उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दिखाता है।
बिहार की राजनीति का बदलता चेहरा
ये सभी 'पावर गर्ल्स' बिहार की राजनीति में एक नए ट्रेंड का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये सिर्फ अपने पिता के नाम की बैसाखी पर नहीं खड़ी हैं, बल्कि अपनी उच्च शिक्षा, पेशेवर अनुभव और ज़मीनी समझ के दम पर राजनीति में आई हैं।
पेशेवर बनाम पारंपरिक: वकील, एमबीए, राष्ट्रीय खिलाड़ी और सोशल एक्टिविस्ट- ये सभी पेशेवर पृष्ठभूमि से आती हैं, जो पारंपरिक राजनेताओं से अलग हैं। युवा शक्ति इन सभी का फोकस शिक्षा, रोज़गार और ज़मीनी विकास पर है। नारी शक्ति इनकी भागीदारी बिहार की महिला मतदाताओं के लिए एक प्रेरणा है।
बिहार का सियासी रण: इन बेटियों के लिए एक बड़ी परीक्षा है। क्या ये 'विरासत वाली बेटियां' अपने निजी और पेशेवर अनुभव से बिहार के विकास की दिशा बदल पाएंगी? इसका जवाब चुनाव परिणाम देंगे, लेकिन एक बात तय है - बिहार की राजनीति अब सिर्फ जातीय समीकरणों और बाहुबलियों तक सीमित नहीं रही है, यह अब उच्च शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और युवा ऊर्जा का भी मंच बन गई है।
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