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Election in Bihar क्या बिहार में समय से पहले होंगे चुनाव? सियासी रणनीति की पड़ताल

बिहार में विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2025 में  प्रस्तावित हैं, लेकिन क्या यह चुनाव तय समय से पहले हो सकते हैं? बिहार में विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2025 में  प्रस्तावित हैं, लेकिन क्या यह चुनाव तय समय से पहले हो सकते हैं?

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Mukesh Pandit
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पटना, वाईबीएन नेटवर्क।

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बिहार में विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2025 में  प्रस्तावित हैं, लेकिन क्या यह चुनाव तय समय से पहले हो सकते हैं? हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत और केंद्र सरकार के बजट में बिहार के लिए हुई घोषणाओं के बाद इस अटकल को बल मिल रहा है कि एनडीए सरकार राज्य में जल्दी चुनाव कराने की रणनीति पर विचार कर सकती है। भाजपा के लिए दिल्ली की जीत से बिहार तक मोमेंटम बनाए रखना जरूरी है।

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दिल्ली में जीत से भाजपा का मनोबल ऊंचा

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली सफलता से उसका मनोबल ऊंचा है। अगर बिहार में अक्टूबर-नवंबर तक इंतजार किया जाता है, तो यह जीत का मोमेंटम ठंडा पड़ सकता है। यही कारण है कि भाजपा इस लय को बनाए रखने के लिए बिहार में पहले चुनाव कराना चाह सकती है।बजट 2024 में बिहार को मिली सौगातें मोदी सरकार ने इस बार के केंद्रीय बजट में बिहार के लिए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की हैं।

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प्रमुख बिंदु

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•  अगर चुनाव जल्दी कराए जाते हैं, तो भाजपा और एनडीए इन घोषणाओं को चुनावी मुद्दा बनाकर जनता को साध सकते हैं।
•  इनकम टैक्स स्लैब में बड़े बदलाव का फायदा भी चुनाव में उठाया जा सकता है।
•  यदि चुनाव देर से होते हैं, तो इन योजनाओं का प्रभाव कम हो सकता है, इसलिए जल्दी चुनाव कराना भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
   सहयोगी दलों पर दबाव बनाने की रणनीति
   भाजपा के सहयोगी दलों में चिराग पासवान (एलजेपी-आर) और जीतन राम मांझी (हम) जैसे नेता ज्यादा सीटों की मांग कर सकते हैं।
•  अगर चुनाव जल्दी कराए जाते हैं, तो इन नेताओं के पास सीट शेयरिंग पर ज्यादा मोलभाव करने का समय नहीं होगा।
•  भाजपा चाहेगी कि सहयोगी दलों को कम सीटों में ही संतुष्ट कर दिया जाए, ताकि वह खुद अधिक सीटों पर चुनाव लड़ सके।
•  अगर चुनाव तय समय पर होते हैं, तो चिराग पासवान और मांझी की तैयारी बेहतर होगी और वे ज्यादा सीटों पर दावा ठोक सकते हैं।
    बाढ़ के प्रभाव से बचने की रणनीति
बिहार में हर साल बाढ़ एक बड़ी समस्या रहती है।
•    अगर बाढ़ के बाद चुनाव कराए जाते हैं और प्रभावी राहत नहीं दी गई, तो सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ सकती है।
•    जल्दी चुनाव कराकर सरकार इस संभावित असंतोष से बच सकती है।
•    इसके अलावा, बाढ़ के बाद चुनावी तैयारियों में भी अड़चन आ सकती है, जिससे एनडीए सरकार चुनाव प्रबंधन को लेकर अतिरिक्त दबाव में आ सकती है।

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जदयू भी चाहेगा जल्दी चुनाव

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भाजपा के अलावा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भी जल्दी चुनाव चाह सकती है।
•  अगर चुनाव समय पर होते हैं, तो भाजपा को अपनी रणनीति तैयार करने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा।
•  लेकिन अगर चुनाव जल्दी होते हैं, तो भाजपा को नीतीश कुमार के चेहरे के साथ ही चुनाव लड़ना पड़ सकता है, जिससे भाजपा का स्वतंत्र रूप से कैंपेन     करने का अवसर कम हो जाएगा।
• नीतीश कुमार की रणनीति यही हो सकती है कि भाजपा को मजबूर किया जाए कि वह उनके चेहरे पर ही चुनाव लड़े।
   क्या वाकई जल्दी होंगे बिहार चुनाव?
   बिहार की राजनीति को देखते हुए यह तय नहीं है कि चुनाव समय से पहले होंगे या नहीं, लेकिन तेजी से बदलते सियासी घटनाक्रम यह संकेत दे रहे हैं       कि भाजपा और जदयू इस पर गंभीरता से विचार कर सकते हैं।
•  अगर भाजपा को लगेगा कि जल्दी चुनाव कराने से उसे ज्यादा फायदा होगा, तो वह इस दिशा में कदम बढ़ा सकती है।
•  अगर विपक्ष कमजोर दिखा, तो एनडीए सरकार समय से पहले चुनाव की घोषणा कर सकती है।
हालांकि, चुनाव जल्दी कराने का फैसला पूरी तरह राजनीतिक समीकरणों और जमीनी हालात पर निर्भर करेगा। अब देखना यह होगा कि आने वाले महीनों में बिहार की सियासत किस दिशा में आगे बढ़ती है।

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