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Photograph: (file)
दिल्ली में मतगणना का काम जारी है, लेकिन जिस तरह के रुझान और परिणाम अब तक सामने आए हैं। इस बार दिल्ली की जनता ने अपना फैसला सुना दिया है। भाजपा लगभग 27 वर्ष बाद भारी बहुमत से दिल्ली की सत्ता में वापसी कर रही है, जबकि एक दशक से एकतरफा जीत हासिल कर रही आम आदमी पार्टी को चुनाव में जोरदार झटका लगा है। वर्ष 2015 में 67 और वर्ष 2020 में 62 सीटें जीत हासिल कर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने वाली 'आप' इस बार औंधे मुंह गिरी है और 62 सीटों से 23 सीटों तक पहुंच गई है। चुनाव में आप का सबसे बड़ा चेहरा और राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और दूसरे नंबर के नेता मनीष सिसोदिया समेत कई दिग्गजों को हार का मुंह देखना पड़ा है। उधर,00आम आदमी पार्टी के मुखिया केजरीवाल नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव हार चुके हैं। नतीजे सामने आने के बाद अरविंद केजरीवाल का पहला बयान सामने आया है। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को बधाई दी है।
हार के बाद केजरीवाल ने क्या कहा?
अरविंद केजरीवाल ने वीडियो जारी कर कहा कि जनता का जो भी फैसला है, उसे हम पूरी विनम्रता के साथ स्वीकार करते हैं। केजरीवाल ने कहा, "मैं भाजपा को बधाई देता हूं। मैं उम्मीद करता हूं कि जिस उम्मीद के साथ भाजपा को दिल्ली की जनता ने बहुमत दिया है, उन्हें भाजपा पूरा करेगी और खरी उतरेगी। हमने 10 साल में जो काम किए हैं, लोगों की जिंदगी में राहत पहुंचाने की कोशिश की है, अब जो जनता ने हमें निर्णय दिया है। हम न केवल एक कंस्ट्रक्टिव विपक्ष का रोल निभाएंगे, बल्कि जन, हम राजनीति को एक जरिया मानते हैं, जिससे जनता की सेवा की जा सके। हमें आगे भी जनता के सुख-दुख में काम आना है। मैं आम आदमी पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं को बधाई देना चाहता हूं, उन्होंने बहुत अच्छे से चुनाव लड़ा, चुनाव के दौरान बहुत कुछ सहा, इसके लिए मैं आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।"
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 8, 2025
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आइए आप की हार के कारणों पर डालते हैं एक नजर...
1. भ्रष्टाचार के आरोप और कानूनी जंग
ईमानदारी का तमगा लेकर राजनीति के मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी का दामन विधानसभा चुनाव आते-आते पूरी तरह से दागदार हो गया। पार्टी के शीर्ष नेताओं, विशेषकर अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन, राज्यसभा सदस्य संजय सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और उनकी गिरफ्तारी ने पार्टी की छवि को भारी नुकसान पहुंचाया। कानूनी विवादों ने आप की भ्रष्टाचार विरोधी छवि को काफी कमजोर किया। शराब घोटाले में ई़डी और सीबीआई पार्टी नेताओं के खिलाफ कारवाई कर चुकी है और उन्हें अदालती प्रक्रिया का सामना करना पड़ रहा है।
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2. यमुना प्रदूषण का मामला उलटा पड़ा
दिल्ली चुनाव प्रचार अभियान के दौरान एक रैली के दौरान आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अचानक यमुना के प्रदूषण का मुद्दा उठाकर आरोप लगाया और हरियाणा की ओर से आने वाले पानी की गुणवत्ता पर सवाल उठाया और कहा कि अमोनिया की मात्रा अधिक आने से यमुना का पानी जहरीला हो चुका है। भाजपा ने इस मामले पर पलटवार किया। यह मामला केजरीवाल को ही उलटा पड़ा। चुनाव आयोग, उपराज्यपाल तक यह मामला पहुंचा, लेकिन केजरीवाल इस मामले पर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सक। लिहाजा आप की काफी फजीहत हुई। दिल्ली की सड़कों को पेरिस जैसा बनाने और साफ़ पानी उपलब्ध कराने जैसे जो तीन प्रमुख वादे किए थे, वे भी पूरे नहीं हुए।
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3. शीशमहल का मुद्दा भी आप के खिलाफ रहा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में रैली के दौरान अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री के तौर पर मिलने वाले आवास को शीशमहल बताकर गंभीर आरोप लगाया। राजनीति में आने से पहले अरविंद केजरीवाल ने वीवीआईपी कल्चर के खिलाफ आवाज उठाई थी और कहा था कि वे सरकारी सुविधाओं का उपयोग नहीं करेंगे, लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने न केवल सरकारी बंगले और गाड़ियों का उपयोग किया, बल्कि अपने लिए एक बेहद महंगा मुख्यमंत्री आवास भी बनवाया, जिसे मीडिया ने 'शीशमहल' का नाम दिया। सीएजी रिपोर्ट में भी उनके आवास पर हुए भारी खर्च पर सवाल उठाए गए। इससे उनकी सादगी वाली छवि को बड़ा झटका लगा, और जनता में उनके प्रति अविश्वास बढ़ गया। पीएम मोदी ने भी शीशमहल को लेकर केजरीवाल पर तंज कसा था।
4. नेतृत्व में अस्थिरता से डूबी आप की नैय्या
शराब घोटाले में केजरीवाल की गिरफ्तारी और बाद में इस्तीफे के कारण पार्टी के नेतृत्व में अस्थिरता आई। केजरीवाल को जेल जाना पड़ा। उन्होंने जेल जाने पर भी इस्तीफा नहीं दिया। लंबे समय बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिली। उनके अधिकारों पर कोर्ट के आदेश मिलने के कारण केजरीवाल ने इस्तीफा दिया और नए मुख्यमंत्री के रूप में आतिशी को नियुक्त किया। पार्टी ने यह बदलाव शूट नहीं किया और स्वयं केजरीवाल की विश्वसनीयता में काफी कमी आई। पार्टी कार्यकर्ता इस नेतृत्व परिवर्तन से काफी खुश नहीं नजर आए।
5. आंतरिक कलह और इस्तीफे
पार्टी के भीतर आंतरिक विवाद और प्रमुख नेताओं के इस्तीफे, जैसे कैलाश गहलोत और राज कुमार आनंद का पार्टी छोड़ना संगठनात्मक कमजोरी को उजागर करता है। आंदोलन से निकली आप को कैडरयुक्त पार्टी माना जाता था। लेकिन पद और प्रतिष्ठा पाने के फेर में पार्टी दरकती रही। चुनाव के दौरान ही टिकट कटने से नाराज 8 विधायकों ने इस्तीफा सौंपकर भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी।
6. नेताओं की बयानबाजी ले डूबे
इन चुनावों में आदमी पार्टी के नेताओं की बयानबाजी और ड्रामेबाजी को भी दिल्ली की जनता ने एक तरह से खारिज कर दिया। कालकाजी सीट से चुनाव लड़ रहीं मुख्यमंत्री आतिशी अपने प्रतिद्वंद्वी रामबीर सिंह बिधूड़ी के बयान पर प्रेस कांफ्रेंस में रो पड़ी थीं। बिधूड़ी ने उनके पिता पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इस पर उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस की और बयान पर रोते हुए बिधूड़ी पर आरोप लगाया।
7. कांग्रेस ने वोट काटे
बेशक कांग्रेस सीटों के हिसाब से दिल्ली में लगातार तीसरी बार सीट ही हासिल करे, लेकिन उसने पूरी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के वोटों को काटा है, जैसा आप ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ किया। 2013 के बाद कांग्रेस का वोट बैंक आम आदमी पार्टी की शिफ्ट हो गया था, इसलिए कांग्रेस की वापसी से आप को नुकसान हो रहा है। साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सातों सीटों पर हार और पंजाब में केवल तीन सीटों पर जीत ने पार्टी के जनाधार में गिरावट को दिखाया, जिससे मतदाताओं का विश्वास कम हुआ।
8.महिलाओं के लिए 2100 रुपये योजना लागू न करना
दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल ने महिलाओं को हर महीने एक निश्चित राशि देने की योजना की घोषणा की थी, लेकिन इसे लागू नहीं कर पाए. इससे जनता में यह संदेश गया कि अगर वे इस योजना को चुनाव से पहले लागू नहीं कर सके, तो चुनाव जीतने के बाद भी इसे लागू करने में असफल हो सकते हैं. अगर यह योजना एक महीने पहले लागू कर दी गई होती, तो शायद परिणाम कुछ और हो सकते थे।
9.गंदे पानी की सप्लाई और राजधानी की गंदगी
दिल्ली सरकार ने मुफ्त सुविधाओं की शुरुआत करके जनता का समर्थन पाया था, लेकिन मूलभूत सुविधाओं की कमी से जनता परेशान हो गई थी. सबसे बड़ा मुद्दा पानी की सप्लाई का था. गर्मियों में दिल्ली में लोग साफ पानी के लिए परेशान होते रहे, और टैंकर माफिया पूरी तरह हावी हो चुका था. अरविंद केजरीवाल ने 24 घंटे स्वच्छ जल सप्लाई का वादा किया था, लेकिन यह पूरा नहीं हुआ. इसके साथ ही राजधानी की सफाई व्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा गई थी. चूंकि एमसीडी में भी आम आदमी पार्टी की ही सरकार थी, इसलिए पार्टी के पास कोई बहाना नहीं था। इससे जनता में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी।
10, एंटी इंकंबेंसी फेक्टर
वर्ष 2024 आते-आते केजरीवाल को इस चुनाव में एंटी इंकंबेंसी फैक्टर का भी सामना करना पड़ा है। प्रधानमंत्री ने चुनाव की शुरुआत में ही 'शीशमहल' का मुद्दा छेड़कर केजरीवाल के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी। बाद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी शीशमहल को लेकर केजरीवाल पर निशाना साधा। इस मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए केजरीवाल ने यमुना के प्रदूषण का मुद्दा उठाया।