नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क
राजधानी दिल्ली में पांच फरवरी को होने वाले विधानसभा के चुनावों पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई हैं। चुनाव जीतने के लिए सियासी दल पूरे जीजान से जुटे हैं। सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी लगातार चौथी बार सत्ता में वापसी के लिए जीतोड़ मेहनत रही है तो केंद्र की सत्ता में काबिज भाजपा 27 साल सा वनवास खत्म करने के लिए इस बार पूरी ताकत लगा रही है। वहीं,कभी सत्ता की सिरमौर रही कांग्रेस चुनाव में पिछले दो बार से अपना खाता भी नहीं खोल पाई। इस बार पार्टी अपनी गारंटियों के माध्यम से उम्मीद बांधे हुए है कि शायद सत्ता में वापसी नहीं हो, लेकिन लाज बचाने लायक सीटें तो कम से कम मिल ही जाएं। इस चुनाव में आप, भाजपा और कांग्रेस तीनों ही 'मुफ़्त' की कई योजनाओं के जरिए मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में लगी है।
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मुफ्त योजनाओं से दिल्ली गदगद
इन तीनों ही प्रमुख दलों के लिए लोकलुभावन वादे चुनाव प्रचार का अहम हिस्सा बनते दिख रहे हैं। खास बात यह है कि सभी एक-दूसरे पर इन वादों को लेकर उपहास भी बना रहे हैं। भाजपा ने संकल्प पत्र में दिल्ली की जनता से वादों की झड़ी सी लगी दी है। महिलाओं को लाडली बहन योजनाओं के माध्यम से 2500 रुपये प्रतिमाह देने की घोषणा के साथ ही रसोई गैस सिलेंडर पर 500 रुपये की सब्सिडी और होली-दिवाली पर मुफ्त एलपीजी सिलेंडर देने का वादा कर दिया। साथ ही गर्भवती महिलाओं के लिए 21000 रुपये और 300 यूनिट तक बिजली फ्री देने की घोषणा की है। इस पर आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भाजपा का उपहास उड़ाते हुए कह दिया, कि जो मुफ्त योजनाओं के विरोधी हैं, आज चुनाव जीतने के लिए आप की योजनाओं की कापी कर रहे हैं। वहां कोई राजनीतिक जमीन हासिल करने के लिए कांग्रेस ने 2500 रुपये महिलाओं को 8500 रुपये बेरोजगार युवकों को देने के साथ स्वास्थ्य बीमा के लिए 25 लाख रुपये तक का लाभ देने की लोकलुभावनी घोषणाएं कर दी हैं। हालांकि कभी भाजपा और उसके समर्थक मुफ्तखोरीं को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगाकर फ्री योजनाओं की आलोचना कर चुके हैं।
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मुफ्त योजनाओं का पुराना इतिहास है
अब यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं होगा कि आखिर दिल्ली के वोटरों के सामने किए जा रहे बड़े-बड़े वादों को पूरा करने के लिए राज्य के पास बजट कितना है। इसका कितना आर्थिक बोझ बजट पर पड़ने वाला है। हालांकि देश में कल्याणकारी योजनाएं लंबे समय से चलाई जा रही हैं। देश के कई इलाकों में फैली गरीबी और लोगों की जरूरत के लिए इसे काफी जरूरी भी माना गया है। केंद्र की सरकार देश में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज जैसी योजना के माध्यम से हर माह पांच किलो अनाज दे रही है। उसके लिए चुनाव में यह स्कीम फायदे का सौदा भी रही है। इसी प्रकार किसान सम्मान निधि के माध्यम से प्रतिमाह देश के किसानों को 2000 रुपये की नकद रकम दी जा रही है। इसके अलावा गरीबों के लिए राशन, पीने का स्वच्छ पानी, बेसहारा, विधवा और बुज़ुर्गों के लिए पेंशन, ग़रीबों के लिए चिकित्सा सुविधा जैसी कई योजनाएं शामिल हैं। 1970 के दशक में भारत के दक्षिणी राज्यों में ऐसी कई योजनाएं शुरू की गईं और लोगों को सीधा सरकारी लाभ पहुंचाया गया। इनमें से कई योजनाएं काफी सफल भी रही हैं।
मुफ्त की रेवड़िया चुनाव जीतने का मजबूत आधार
चुनाव विशेषज्ञों की मानें तो उनका मानना है कि 'अगर मुफ़्त की कही जानी वाली इन रेवड़ियों से वोट मिलता है तो इसका सीधा मतलब है कि देश में वो 'गरीबी' मौजूद है जो लोगों को दुःख देती है।' आजकल छोटे शहरों और कस्बों में भी आपको चमकते बाज़ार दिख जाते हैं और उसके पीछे यह ग़रीबी दब जाती है। सरकार इस ग़रीबी को स्वीकार करने से इनकार करती है, लेकिन उसे पता है कि इस पर ध्यान नहीं दिया तो लोगों का ग़ुस्सा फूट सकता है, इसलिए लोगों के खातों में पैसे ट्रांसफर किए जा रहे हैं। ऐसी योजनाएं धीरे-धीरे देश के अन्य राज्यों में भी लागू की गईं, जिनमें बिहार में महिलाओं के लिए साइकिल योजना और दिल्ली में 200 यूनिट तक फ्री बिजली की योजना भी शामिल है। आर्थिक मामलों के जानकार देवेंद्र सिंह कहते हैं, 'मुफ़्त की इन योजनाओं का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि लोग आज के छोटे फायदे के लिए कल का बड़ा नुकसान कर रहे हैं। पहले आने वाली दो-तीन पीढ़ियों को ध्यान में रखकर योजना बनती थी, अब ऐसा नहीं हो रहा है।' देवेंद्र सिंह का कहना है कि यदि दिल्ली की बात करें तो मुफ़्त की योजनाओं की वजह से पहली बार दिल्ली का बजट नुकसान में जा सकता है, जो हमेशा सरप्लस रहता था। अनुमान है कि इस वित्त वर्ष के अंत तक दिल्ली का बजट 6 हजार करोड़ रुपये के नुकसान का होगा।
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