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परिवार चाहे कुछ कहे, बालिगों को अपनी मर्जी से शादी करने का हक, High Court का बड़ा फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट ने दो बालिगों के अधिकार को मान्यता देते हुए कहा है कि वयस्कों को अपनी मर्जी से शादी करने और शांतिपूर्वक साथ रहने का संवैधानिक अधिकार है, भले ही उनके परिवार इसका विरोध कर रहे हों।

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Ranjana Sharma
Delhi High Court
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्‍क: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि दो बालिगों को अपनी इच्छा से शादी करने का संवैधानिक अधिकार है, भले ही उनके परिवार इस रिश्ते का विरोध कर रहे हों। कोर्ट ने साफ कहा कि यदि दोनों वयस्क अपनी सहमति से साथ रहना चाहते हैं, तो उन्हें अनुच्छेद 21 के तहत शांतिपूर्वक जीवन जीने और सुरक्षा पाने का पूरा हक है। यह टिप्पणी जस्टिस संजीव नरुला की एकल पीठ ने उस समय की जब एक नवविवाहित जोड़े ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सुरक्षा की मांग की। याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि उन्होंने 23 जुलाई को दिल्ली के एक आर्य समाज मंदिर में हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था। लड़की ने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर यह शादी की थी और घर छोड़ दिया था।

कोर्ट ने इस मामलो के बाद लिया संज्ञान

लड़की के घर से जाने के बाद उसके माता-पिता ने थाने में गुमशुदगी और अपहरण की एफआईआर दर्ज करवाई। लेकिन जब पुलिस ने लड़की से पूछताछ की, तो उसने स्पष्ट रूप से कहा कि वह बालिग है और उसने अपनी मर्जी से शादी की है। इसके बाद पुलिस ने शिकायत को बंद कर दिया। हालांकि मामला यहीं नहीं रुका। शादी के बाद लड़की के परिवार वालों ने उस पर मानसिक दबाव डालना शुरू कर दिया और उसे परेशान करने लगे। इस डर और उत्पीड़न को देखते हुए लड़की और उसके पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की और सुरक्षा की मांग की। कोर्ट ने इस मामले में पुलिस को सख्त निर्देश दिए हैं। आदेश में कहा गया है कि संबंधित एसएचओ एक बीट कांस्टेबल को आदेश दे कि वह याचिकाकर्ताओं को कोर्ट के आदेश की जानकारी दे।

निजता, स्वतंत्रता और सुरक्षा की रक्षा करनी चाहिए

नए जोड़े को पुलिस द्वारा एक आपातकालीन नंबर उपलब्ध कराया जाए ताकि किसी भी प्रकार की धमकी या उत्पीड़न की सूचना तुरंत दी जा सके और पुलिस समय रहते कार्रवाई कर सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में जब दो वयस्क अपनी मर्जी से शादी करते हैं, तो कानून को उनकी निजता, स्वतंत्रता और सुरक्षा की रक्षा करनी चाहिए, न कि समाज या परिवार के दबाव में उनके फैसले को गलत ठहराना चाहिए। यह फैसला न सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विवाह की आजादी की पुष्टि करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका सामाजिक दबावों के आगे झुकने के बजाय संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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