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नई दिल्ली, वीबीएन डेस्क। सोशल मीडिया पर पीएम मोदीऔर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं के ‘आपत्तिजनक’ कार्टून अपलोड करने के आरोपी इंदौर के कार्टूनिस्ट की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए शुक्रवार, 11 जुलाई कोसुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया। बता दें, इसको लेकर कार्टूनिस्ट ने कोर्ट का रूख किया था। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने हेमंत मालवीय द्वारा दायर उस याचिका पर 14 जुलाई को सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उन्हें राहत देने से इनकार करने के आदेश को चुनौती दी गयी है। वकील वृंदा ग्रोवर ने इस मामले पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया है। उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का घोर दुरुपयोग है।
अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान
ग्रोवर ने कहा कि यह मामला मालवीय द्वारा 2021 में कोविड के दौरान बनाए गए एक कार्टून से संबंधित है और उच्च न्यायालय ने कहा कि इसमें अर्नेश कुमार और इमरान प्रतापगढ़ी जैसे जीवन व स्वतंत्रता से जुड़े ऐतिहासिक मामलों का अनुसरण नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने कार्टूनिस्ट की निंदा की है। ग्रोवर ने कहा, ‘‘यह अपराध भारतीय न्याय संहिता के तहत आता है जिसके लिए अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है।’’ न्यायमूर्ति धूलिया ने आदेश दिया कि मामले को 14 जुलाई को उपयुक्त पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा। उच्च न्यायालय ने तीन जुलाई को मालवीय को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सरासर दुरुपयोग
इंदौर में स्थानीय वकील और आरएसएस कार्यकर्ता विनय जोशी की शिकायत पर मई में लसूड़िया पुलिस थाने में मालवीय के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि मालवीय ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री अपलोड करके हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ा। प्राथमिकी में विभिन्न ‘‘आपत्तिजनक’’ पोस्ट का उल्लेख किया गया है, जिनमें भगवान शिव पर कथित रूप से अनुचित टिप्पणियों के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी, आरएसएस कार्यकर्ताओं और अन्य के संबंध में कार्टून, वीडियो, तस्वीरें और टिप्पणियां शामिल हैं। उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘पहली नजर में, आवेदक द्वारा उपरोक्त व्यंग्यचित्र में देश के प्रधानमंत्री के साथ ही हिंदू संगठन आरएसएस को चित्रित करने का आचरण, साथ ही एक अपमानजनक टिप्पणी का समर्थन, अनावश्यक रूप से भगवान शिव का नाम उससे जुड़ी टिप्पणियों में घसीटना, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सरासर दुरुपयोग है।’’
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा का उल्लंघन
उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह स्पष्ट है कि यह धार्मिक भावनाओं को आहत करने का एक जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण प्रयास था और मालवीय ने ‘‘स्पष्ट रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा का उल्लंघन किया।’’ अदालत ने कहा था, ‘‘इसके मद्देनजर, इस न्यायालय का विचार है कि आवेदक से हिरासत में पूछताछ आवश्यक होगी।’’ मालवीय के वकील ने उच्च न्यायालय में दलील दी थी कि उन्होंने केवल एक कार्टून पोस्ट किया था, लेकिन अन्य फेसबुक उपयोगकर्ताओं द्वारा उस पोस्ट पर की गई टिप्पणियों के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
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