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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। करीब 60 सेवानिवृत्त नौकरशाहों के समूह ने भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) को पत्र लिखकर गहरी चिंता जताई है। पत्र में उनका कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) में ‘‘हितों का टकराव’’ है, जो वन संरक्षण अधिनियम संशोधन 2023 (FCAA) से संबंधित मामलों में निष्पक्ष सलाह देने में बाधा बन सकता है। पत्र लिखने वाले अधिकारियों में पूर्व सचिव, राजदूत, पुलिस प्रमुख और वन सेवा अधिकारी शामिल हैं। 30 जून को लिखे गए इस खुले पत्र में कहा गया कि CEC में तीन पूर्व IFS अधिकारी और एक सेवानिवृत्त वैज्ञानिक शामिल हैं, जिन्होंने वर्षों तक पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के साथ काम किया है। पत्र में आरोप है कि समिति में कोई स्वतंत्र विशेषज्ञ नहीं है, जिससे उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
“दो सदस्य हाल में ही महत्वपूर्ण पदों से रिटायर हुए हैं”
सीजेआई को लिखे गए इस पत्र में आगे कहा गया है कि समिति के दो सदस्य हाल ही में वन महानिदेशक और पर्यावरण मंत्रालय में विशेष सचिव जैसे अहम पदों से रिटायर हुए हैं। ऐसे में उनसे यह अपेक्षा करना मुश्किल है कि वे न्यायालय को पूर्वाग्रह रहित और स्वतंत्र सलाह देंगे, खासकर जब वे स्वयं नीति निर्माण में शामिल रहे हों। पूर्व नौकरशाहों ने लिखा कि पहले की CEC में स्वतंत्र विशेषज्ञ, जैसे कि वन्यजीव विशेषज्ञ और सर्वोच्च न्यायालय के वकील भी शामिल होते थे, जो कभी किसी सरकारी नीति निर्माण में शामिल नहीं रहे थे। इससे समिति की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित होती थी।
सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं कई याचिकाएं
बता दें कि FCAA 2023 को लेकर Supreme Court में कई याचिकाएं लंबित हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नए संशोधन से वनों का दायरा घटेगा और पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा। अदालत ने अब तक चार आदेश जारी किए हैं, जिनमें से एक में 1996 के गोदावर्मन आदेश के अनुसार वनों की परिभाषा को कायम रखा गया है। अंतिम सुनवाई अभी लंबित है। पूर्व अधिकारियों ने CJI से आग्रह किया है कि वर्तमान CEC को FCAA 2023, वन्यजीव संरक्षण या पारिस्थितिकी से जुड़े अहम मामलों में अदालत को सलाह देने की अनुमति न दी जाए, क्योंकि समिति की मौजूदा संरचना तटस्थ नहीं है, ऐसे में निष्पक्ष राय की उम्मीद को धक्का लग सकता है।