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तिहाड़ जेल में बनी है अफ़ज़ल गुरु और मक़बूल भट्ट की कब्र, जनहित याचिका पर Delhi High Court ने क्या कहा? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए परिवारिक विवादों में बुजुर्ग माता-पिता के घर में शांति और गरिमा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की बात कही है। अदालत ने स्पष्ट किया कि बुजुर्गों को अपने घर में शांतिपूर्ण और गरिमापूर्ण जीवन जीने का पूरा अधिकार है, और यह हक किसी भी परिवारिक झगड़े में छीना नहीं जा सकता।
निवास या कब्जे का हक है, मालिकाना नहीं
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें बहू को सास-ससुर के स्व-अर्जित घर से बाहर निकालने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने पीडब्ल्यूडीवी एक्ट (घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा कानून) के तहत बहू के रहने के अधिकार को मान्यता दी, लेकिन यह अधिकार केवल निवास या कब्जे का हक है, मालिकाना हक नहीं। जजों ने टिप्पणी की, "कानून ऐसा होना चाहिए कि सुरक्षा भी बनी रहे और शांति भी। विवादित संपत्ति एक ही मकान थी, जिसमें सीढ़ियां और रसोई साझा थीं। अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में अलग रहना व्यावहारिक नहीं है। बुजुर्ग दंपति ने बहू के लिए वैकल्पिक घर का प्रस्ताव रखा, जिसमें 65,000 रुपये मासिक किराया, मेंटेनेंस, बिजली-पानी बिल और सिक्योरिटी डिपॉजिट शामिल थे, और यह खर्च वे स्वयं वहन करेंगे।
हक टकराने पर नाजुक संतुलन बनाए रखना जरूरी
कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा कि हक टकराने पर नाजुक संतुलन बनाए रखना जरूरी है, ताकि किसी की गरिमा या सुरक्षा प्रभावित न हो। अदालत ने निर्देश दिया कि चार हफ्तों के भीतर बहू के लिए दो कमरों वाला फ्लैट तलाशा जाए, जो पुराने घर के आसपास का क्षेत्र हो। इसके दो हफ्ते बाद बहू को विवादित घर खाली करना होगा। यह फैसला बुजुर्गों के जीवन के अंतिम वर्षों में शांति सुनिश्चित करने के साथ-साथ महिलाओं के बेघर होने से बचाव को भी संतुलित तरीके से ध्यान में रखता है।
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