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1985 Gandhi-Zia Nuclear Agreement: अमेरिका की भूमिका पर निशिकांत दुबे ने कांग्रेस को फिर घेरा

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने 1985 के राजीव गांधी-जिया उल हक न्यूक्लियर समझौते का दस्तावेज जारी कर कांग्रेस पर निशाना साधा। डीक्लासिफाइड अमेरिकी दस्तावेजों ने इस समझौते में अमेरिका की गुप्त भूमिका का खुलासा किया है।

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Dhiraj Dhillon
Rajiv Gandhi and Zia-ul-Haq - file photo

Photograph: (Google)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के क‌ांग्रेस पर हमले जारी ह‌ैं। अब उन्होंने 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और जिला- उल- हक के बीच हुई न्यूक्लियर डील का दस्तावेज सार्वजनिक कर कांग्रेस पर बम फोड़ने का प्रयास किया है। निशिकांत दुबे के द्वारा एक्स पर जारी किए गए दस्तावेज के मुताबिक 17 दिसंबर 1985 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे गांधी-जिया समझौते के नाम से जाना जाता है, समझौते के मुताबिक दोनों देशों के परमाणु सुविधाओं पर हमला न करने की प्रतिबद्धता जाहिर की गई। हाल ही में डीक्लासिफाइड अमेरिकी दस्तावेजों ने इस समझौते के पीछे की कूटनीतिक रणनीति और अमेरिका की भूमिका को उजागर किया है।
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क्या था 1985 का न्यूक्लियर समझौता?

1985 में दिल्ली में हुई मुलाकात के दौरान राजीव गांधी और जिया-उल-हक ने एक अनौपचारिक समझौते पर सहमति जताई, जिसके तहत दोनों देश एक-दूसरे की परमाणु सुविधाओं पर हमला न करने का वचन दे रहे थे। यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने और परमाणु युद्ध की आशंका को टालने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया गया था। डीक्लासिफाइड अमेरिकी दस्तावेजों के मुताबिक, इस समझौते को और मजबूत करने के लिए अमेरिका ने दोनों देशों को प्रोत्साहन प्रदान करने की रणनीति बनाई थी।

अमेरिका की भूमिका

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30 सितंबर, 1986 को व्हाइट हाउस में हुई एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) की बैठक के दस्तावेज बताते हैं कि अमेरिका दक्षिण एशिया में शांति को बढ़ावा देने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच एक औपचारिक शांति संधि चाहता था। दस्तावेज में कहा गया है कि अमेरिका दोनों देशों के परमाणु हथियारों के कार्यक्रमों पर सीमाएं लगाने की दिशा में काम कर रहा था, जिसमें परमाणु हथियारों का निर्माण, परीक्षण और हस्तांतरण न करने जैसे समझौते शामिल थे।

अमेरिका ने ये वादे किए थे

अमेरिका ने भारत को राजीव गांधी के तकनीकी प्रगति के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के लिए समर्थन का वादा किया, जबकि पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य सहायता का लालच दिया गया। यह रणनीति तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री मुहम्मद खान जुनेजो के लिए महत्वपूर्ण थी, जो अमेरिकी सहायता के जरिए अपनी घरेलू समृद्धि को बनाए रखना चाहते थे।
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