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Jagannath Rath Yatra 2025: रथ में लोहे की एक कील भी नहीं लगती, जानिए क्यों

पुरी में 27 जून 2025 को शुरू हो रही जगन्नाथ रथ यात्रा में लोहे के बिना बने विशाल रथों की भव्यता, लकड़ी के चयन की धार्मिक प्रक्रिया और यात्रा के बाद उनके उपयोग से जुड़ी परंपराओं की पूरी जानकारी।

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Dhiraj Dhillon
Jagannath rath yatra
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। Jagannath Rath Yatra 2025: ओडिशा के पुरी में हर साल होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा न सिर्फ आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय परंपरा, वास्तु-कला और पर्यावरण के प्रति सम्मान का अद्भुत उदाहरण भी है। इस वर्ष यह विश्वविख्यात उत्सव 27 जून 2025 को आरंभ हुआ, जो 5 अगस्त, 2025 को संपन्न होगा। यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के तीन विशाल रथ बनाकर उन्हें श्री जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक पहुंचे। इस रथ को खींचने का बड़ा पुण्य माना जाता है। जगन्नाथ रथ की पवित्रता बनाए रखने के लिए बिना लोहे के रथ निर्माण किया जाता है। रथ का निर्माण इस यात्रा दुनिया की सबसे अनूठी यात्राओं में शामिल करता है।

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रथ निर्माण: लोहे से नहीं, लकड़ी से बंधती भव्यता

Jagannath Rath Yatra: इस यात्रा की सबसे रोचक बात है कि रथ निर्माण में लोहे या किसी भी धातु का उपयोग नहीं किया जाता। न कील, न स्क्रू, सिर्फ लकड़ी के खूंटों और खांचों से जुड़ते हैं रथ के हिस्से। यह परंपरा रथ की पवित्रता और आध्यात्मिकता को बनाए रखने के लिए निभाई जाती है। कारीगर पीढ़ियों से इस पारंपरिक तकनीक को अपनाकर भव्य रथ तैयार करते हैं। रथों के निर्माण के लिए विशेष प्रकार की लकड़ी ओडिशा के मयूरभंज, गंजाम और क्योंझर जिलों के जंगलों से लाई जाती है। नीम, फासी, धौरा, सिमली जैसी प्रजातियों की लकड़ी का चयन धार्मिक अनुष्ठान के तहत किया जाता है। इन पेड़ों पर शंख, चक्र, गदा या पद्म जैसे चिह्न होने जरूरी होते हैं और पेड़ों की पूजा कर उन्हें काटा जाता है, सोने की कुल्हाड़ी से पहला वार किया जाता है। रथ बनाने की प्रक्रिया हर साल अक्षय तृतीया से आरंभ होती है। निर्माण में लगभग 1100 बड़े और 865 छोटे लकड़ी के लट्ठों की आवश्यकता होती है।

यात्रा के बाद रथों का क्या होता है?

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Jagannath Rath Yatra: रथ यात्रा करीब नौ दिनों तक चलती है। इस साल यह यात्रा 5 अगस्त 2025 को संपन्न होगी। उसके बाद रथों को तोड़ दिया जाता है। फिर उनकी लकड़ी का उपयोग जगन्नाथ मंदिर की रसोई में महाप्रसाद पकाने के लिए किया जाता है। यह रसोई दुनिया की सबसे बड़ी मंदिर रसोई मानी जाती है। रथों के पहिए भक्तों के बीच नीलाम किए जाते हैं, जिनकी शुरुआती कीमत ₹50,000 तक हो सकती है। इन पहियों को शुभ मानते हुए घरों में रखा जाता है। बची हुई लकड़ियों से पूजन सामग्री, ताबीज, और धार्मिक वस्तुएं बनाई जाती हैं।

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