नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐसे जज को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है जिस पर अपने स्टाफ के साथ अभद्रता करने का आरोप था। यहां तक कि जज छोटी सी गलती पर पुलिस वालों और वकीलों से कोर्ट में उठक बैठक भी लगवा देता था। हाईकोर्ट का कहना था कि सारे केस पर गौर करने के बाद लगता है कि जज के सुधरने के चांस न के बराबार हैं। लिहाजा उसे हमेशा के लिए नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। हालांकि आरोपी जज ने दरख्वास्त की कि उसे कम से कम एक चांस तो दिया जाए लेकिन हाईकोर्ट फैसला बदलने को तैयार नहीं हुआ।
हाईकोर्ट ने कहा- परफारमेंस नहीं कर सका प्रोबेशनरी जज
प्रोबेशनरी जज कौश्तभ खेड़ा को पिछले साल मध्य प्रदेश सरकार ने नौकरी से हटा दिया था। उसने सरकार के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जज का कहना था कि उसने जो कुछ भी किया वो कानून की पालना कराने के लिए किया था। अगर सामने वाली पार्टी ने माफी मांगी तो उसके खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई को वापस भी कर लिया गया था। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैथ और जस्टिस विवेक जैन ने अपने फैसले में कहा कि कौश्तभ को नौकरी से केवल इस वजह से नहीं हटाया जा रहा है क्योंकि उसके खिलाफ शिकायतें मिलीं बल्कि उसे हमेशा के लिए जूडिशिरी से बाहर करने की एक वजह ये भी है कि वो परफार्म नहीं कर सका। madhya pradesh | न्यायपालिका भारत | Judiciary | Indian Judiciary
2019 में जूडिशियल सर्विस में आया था कौश्तभ खेड़ा
खेड़ा को 2019 में न्यायिक सेवा में भरती किया गया था। वो बतौर सिविल जज काम कर रहा था। मध्य प्रदेश सरकार ने उसे नौकरी से हटाने का फैसला तब लिया जब हाईकोर्ट की एडमिनिस्ट्रेटिव कमेटी के साथ फुल कोर्ट ने उसके खिलाफ फैसला दिया। खेड़ा का कहना था कि उसके खिलाफ आदेश महज इस वजह से पारित किया गया क्योंकि 7 शिकायतों में उस पर आरोप लगाए गए थे।
सीट छोड़कर कोर्ट स्टाफ को मारने दौड़ा था जज
शिकायतों में कहा गया था कि खेड़ा ने वकीलों व पुलिस वालों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की थी। वो हेडक्वार्टर को बताए बगैर अपना स्टेशन छोड़ देता था। उसने अपने चपरासी को दो माह के लिए जेल भिजवा दिया क्योंकि उसने कोर्ट के दूसरे स्टाफ के साथ अभद्रता की थी। उसके खिलाफ जो गंभीर आरोप लगाए गए उसमें ये भी शामिल था कि एक बार वो अपनी सीट को छोड़कर कोर्ट स्टाफ को मारने दौड़ा और काफी दूर तक उसका पीछा दिया। फुल कोर्ट ने माना था कि जज का ये बर्ताव किसी भी तरीके से ठीक नहीं कहा जा सकता।
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