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न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की याचिका पर तत्काल सुनवाई से Supreme Court का इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ नकदी बरामदगी मामले में FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है। याचिका वकील मैथ्यूज नेदुम्परा और तीन अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी।

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Ranjana Sharma
Supreme Court 
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नई दिल्‍ली, वाईबीएन डेस्‍क: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ नकदी बरामदगी मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध वाली याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से बुधवार को इनकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने वकील और याचिकाकर्ता मैथ्यूज नेदुम्परा से उल्लेख करने की प्रक्रिया का पालन करने को कहा। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कृपया उल्लेख करने की प्रक्रिया का पालन करें।

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मौखिक उल्लेख से इनकार कर दिया

पूर्व प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मामलों को तत्काल सूचीबद्ध करने और सुनवाई के लिए मौखिक उल्लेख से इनकार कर दिया था और कहा था कि वकीलों या वादियों को पहले ईमेल लिखना होगा और सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री में जाना होगा। न्यायमूर्ति वर्मा को आंतरिक जांच आयोग द्वारा अभ्यारोपित किए जाने के बाद, पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा था। न्यायमूर्ति वर्मा के इस्तीफा देने से इनकार करने के बाद पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा था। नेदुम्परा और तीन अन्य लोगों द्वारा दायर याचिका में तत्काल आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई थी, जिसमें कहा गया था कि आंतरिक समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोपों को प्रथम दृष्टया सही पाया है।

आंतरिक जांच से न्यायिक अनुशासनात्मक कार्रवाई हो

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याचिका में इस बात पर जोर दिया गया कि आंतरिक जांच से न्यायिक अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है, लेकिन यह लागू कानूनों के तहत आपराधिक जांच का विकल्प नहीं है। मार्च में, इन्हीं याचिकाकर्ताओं ने आंतरिक जांच को चुनौती देते हुए और औपचारिक पुलिस जांच की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने आंतरिक कार्यवाही की लंबित प्रकृति का हवाला देते हुए, याचिका को अपरिपक्व मानते हुए खारिज कर दिया था। अब जांच पूरी हो जाने के बाद, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि आपराधिक कार्रवाई में देरी अब उचित नहीं है।

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