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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क | सदन में जारी मानसून सत्रविपक्ष के लगातार हंगामे और नारेबीजी के कारण बार -बार स्थगित हो रहा है। पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, ट्रंप के दावे और बिहार में जारी वोटरलिस्ट अपडेट जैसे कई मुद्दों को लेकर विपक्ष लगातार सरकार से सवाल-जबाव और चर्चा की मांग कर रहा है। सत्र के तीसरे दिन भी विपक्षी सांसदों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि सरकार की तरफ से पहले की चर्ची की मांग स्वीकार की जा चुकी है, बावजूद इसके विपक्ष नारेबाजी पर अड़ा है।
मौजूद हालातों को देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि संसद का यह मानसून सत्र अब तक लगातार राजनीतिक टकराव और विपक्ष के विरोध की भेंट चढ़ता दिख रहा है। पहले दो दिनों में भी कार्यवाही बाधित रही और तीसरे दिन भी गतिरोध के चलते कोई ठोस कार्य नहीं हो सका।
आपरेशन सिंदूर पर 16 घंटे की चर्चा
बता दें, सत्ता पक्ष द्वारा चर्चा का प्रस्ताव स्वीकार किए जाने के बाद अब तारीख भी सामने आ गई है।ऑपरेशन सिंदूर पर 29 जुलाई, मंगलवार को 16 घंटे की चर्चा होगी। सत्र के पहले दिन ही विपक्ष के जोरदार हंगामे के बाद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि हम ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा को तैयार हैं। विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने यह भी कहा था कि बिना पीएम मोदी के हम चर्चा नहीं करेंगे। मालूम हो पीएम मोदी 23 जुलाई से 26 जुलाई तक ब्रिटेन और मालदीव की यात्रा पर हैं, ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा सदन में 29 जुलाई को होगी।
सभी प्रश्नों का जवाब देगी सरकार
भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “सरकार विपक्ष के सभी प्रश्नों का जवाब देना चाहती है। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कहा है कि यह सदन चर्चा के लिए है। ऑपरेशन सिंदूर हमारे देश की सेना की वीरता का प्रतीक है, जिसे पूरे विश्व ने सराहा है। इसलिए यह चर्चा एक ‘विजय उत्सव’ के रूप में होनी चाहिए।” उन्होंने सभी दलों से आग्रह किया कि सदन को शांतिपूर्वक और सकारात्मक तरीके से चलने दिया जाए। ऑपरेशन सिंदूर पर 16 घंटे की चर्चा पर कहा, "सरकार विपक्ष के सभी प्रश्नों का जवाब देना चाहती है। 16 घंटे लोकसभा में और 9 घंटे राज्यसभा में दिया जाएगा।
बिना प्रधानमंत्री के किससे बात करें?
समाजवादी पार्टी के सांसद अखिलेश यादव ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि चर्चा तभी सार्थक होगी जब प्रधानमंत्री स्वयं सदन में मौजूद होंगे। उन्होंने कहा, “हम भी चर्चा के लिए तैयार हैं, लेकिन बिना प्रधानमंत्री के किससे बात करें? किससे सवाल करें? आखिर चूक कहां हुई? इंटेलिजेंस फेलियर था क्या? ये कोई पहली बार नहीं हुआ है, पुलवामा हुआ, फिर पहलगाम में हुआ। इन सवालों के जवाब कौन देगा?”
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