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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। ऑपरेशन सिंदूर पर पार्टी स्टैंड को लेकर कांग्रेस का अंतर्कलह अब खुलकर सामने रहा है। लोकसभा के इस मानसून सत्र में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा से वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने खुद को अलग कर लिया। संसद परिसर में पहुंचे, लेकिन चर्चा में भाग लेने के सवाल पर मौनव्रत का हवाला देकर खुद को अलग कर दिया। अब उनकी राह पर ही वरिष्ठ नेता और आनंदपुर साहिब से सांसद मनीष तिवारी भी चल पड़े हैं। मनीष ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट लिखा-इसमें मशहूर फिल्म पूरब और पश्चिम का गाना- है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं। भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं। इस पोस्ट यह स्पष्ट हो गया है कि मनीष अपनी पार्टी की विचारधारा से संतुष्ट नहीं हैं। वह ऑपरेशन सिंदूर के खिलाफ कोई भी बयान नहीं देना चाहते।
थरूर पहले ही कह चुके हैं राष्ट्र प्रथम
वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर काफी पहले कह चुके हैं कि उनके लिए राष्ट्र प्रथम है। देश के लिए पहला दायित्व है। यह भी कहा था कि पार्टी देश को बेहतर बनाने का जरिया है, इसलिए जो भी पार्टी हो, उसका लक्ष्य होना चाहिए देश को बेहतर बनाना। यह बयान पार्टी नेतृत्व से मतभेद का संकेत माना जा रहा। विशेषकर पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद उनके सार्वजनिक बयानों के बाद से यह स्पष्ट हो चुका है।
कांग्रेस के 3 और नेता पार्टी की सोच से अलग
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत सरकार की वैश्विक कूटनीतिक पहल के तहत शशि थरूर और मनीष तिवारी ने विभिन्न देशों में जाकर देश के स्टैंड को स्पष्ट किया था। इन दोनों के अलावा इसी मिशन का हिस्सा रह चुके फतेहगढ़ साहिब से कांग्रेस सांसद अमर सिंह भी लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा में शामिल नहीं हो रहे हैं। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा और सलमान खुर्शीद भी वैश्विक भारतीय प्रतिनिधिमंडल में थे, लेकिन वे सांसद नहीं हैं।
भाजपा ने उठाया सवाल
मनीष तिवारी के पोस्ट के बाद वरिष्ठ भाजपा नेता बैजयंत जय पांडा ने कांग्रेस पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि आपके पास अच्छे वक्ता हैं, लेकिन पार्टी उन्हें बोलने नहीं दे रही। मेरे मित्र शशि थरूर बहुत अच्छे वक्ता हैं, लेकिन उन्हें पार्टी बोलने नहीं दे रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा के दौरान पार्टी के कुछ सबसे विश्वसनीय और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण वाले नेताओं को मंच से दूर रखने पर कांग्रेस की रणनीति पर सवाल खड़े हो रहे। यह भी दिखाता है कि पार्टी भीतर से एकमत नहीं है। पार्टी में नेतृत्व के फैसलों को लेकर असंतोष है।
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