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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों के ऐलान के साथ ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई थी। सबसे पहला और अहम मुद्दा था NDA में सीटों का बंटवारा। इस कवायद के केंद्र में रहे भाजपा के बिहार प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और LJP (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान।
शुरू से ही सीटों के लिए दवाब बना रहे थे चिराग
चुनाव अधिसूचना जारी होते ही चिराग पासवान के खेमे ने बीजेपी पर अधिक सीटों के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। एलजेपी (R) ने 40 से अधिक सीटों की मांग रखी और अपने रुख पर अड़ी रही। कई दौर की बातचीत के बाद धर्मेंद्र प्रधान और भाजपा महासचिव विनोद तावड़े चिराग पासवान के आवास पहुंचे, लेकिन बैठक तुरंत बेनतीजा रही। इसके बाद चिराग ने अपने करीबी सांसद को वार्ता का आधिकारिक प्रतिनिधि नियुक्त किया।
नित्यानंद राय का हस्तक्षेप भी रहा अहम
केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय के हस्तक्षेप के बाद ही चिराग पासवान ने आखिरकार 29 सीटों पर सहमति जताई। बैठक समाप्त होते ही दोनों नेता मुस्कुराते और हाथ मिलाते देखे गए, जो एनडीए के लिए बड़े चुनावी समझौते का संकेत था।
धर्मेंद्र प्रधान की भूमिका और अनुभव
धर्मेंद्र प्रधान ने बिहार चुनाव में सिर्फ समन्वय ही नहीं किया, बल्कि रणनीतिक फैसलों से एनडीए को मजबूत किया। उनके शांत स्वभाव, राजनीतिक सूझबूझ और संगठन-निर्माण कौशल ने कई राज्यों में बीजेपी की जीत सुनिश्चित की है।
धर्मेंद्र प्रधान की प्रमुख उपलब्धियां भी जानें
- बिहार (2010): NDA की 206 सीटों से बड़ी जीत
- लोकसभा चुनाव (2014): BJP का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन (31/40 सीटें)
- उत्तर प्रदेश (2022), हरियाणा (2024), उत्तराखंड (2017) और पश्चिम बंगाल (2021) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
- ओडिशा में संगठन मजबूत कर भविष्य की जीत की नींव रखी
भाजपा के भरोसेमंद रणनीतिकार बने
धर्मेंद्र प्रधान की प्रभावी रणनीति और संगठन कौशल ने उन्हें भाजपा का भरोसेमंद रणनीतिकार साबित कर दिया। बिहार चुनाव 2025 में ‘डबल इंजन सरकार’ को एकजुट रखने और एनडीए को दिशा देने में उनकी भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है।
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