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नई दिल्ली, वाईबीएन न्यूज। क्या राहुल गांधी के नेतृत्व में बिहार में निकली वोटर अधिकार यात्रा ने कांग्रेस के सोचने के तरीके को बदल दिया है। क्या अब बिहार में कांग्रेस, तेजस्वी यादव की पिछलग्गू पार्टी के टैग से बाहर निकलने को बेताब दिख रही है । क्या बिहार में अब कांग्रेस, राजद के पीछे चलने के बजाय, महागठबंधन के नेतृत्व के मुद्दे पर राजद के साथ खड़ी नजर आ रही है। क्या तेजस्वी यादव की महागठबंधन के बिग बॉस वाली छवि से राहुल गांधी खुद को सहज नहीं पा रहे हैं, और क्या सीट शेयरिंग को लेकर अब कांग्रेस ने जो फॉर्मूला महागठबंधन के सामने रखा है, उससे तेजस्वी समेत सभी दल सहमत होंगे।
बिहार में सीट शेयरिंग अहम मुद्दा
इस समय बिहार में सियासी दलों के लिए जो अहम मुद्दा बना हुआ है, वह है सीट शेयरिंग का। असल में उस मुद्दे को लेकर मंगलवार देर रात तक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे व राहुल गांधी के साथ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की एक अहम बैठक हुई है। इस बैठक में यूं तो पार्टी के केंद्र से जुड़े बड़े नेता शामिल थे , साथ ही बिहार चुनावों के मद्देनजर बिहार कांग्रेस के भी नेता बैठक में शामिल होने दिल्ली पहुंचे थे। हालांकि इस बैठक में एक चेहरा ऐसा नजर आया , जो चौंकाने वाला था , और वो चेहरा कोई और नहीं बल्कि पप्पू यादव हैं, जिन्हें बिहार में महागठबंधन की SIR के विरोध में निकाली गई रैली में महागठबंधन के नेताओं वाले वाहन पर चढ़ने तक नहीं दिया गया था।
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सिंगल लाइनर फार्मूले पर हो रही चर्चा
बहरहाल, इससे इतर एक अहम जानकारी सामने आई है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के अंदर सीट शेयरिंग को लेकर एक सिंगल लाइनर फॉर्मूले पर चर्चा हो रही है, जो आने वाले दिनों में महागठबंधन की सीट शेयरिंग का निर्णायक फॉर्मूला बनने जा रहा है। लेकिन सियासी गलियारों में सवाल भी उठ रहे हैं कि आखिर क्यों महागठबंधन में फिर से एआईएमआईएम के ओवैसी को जोड़ने की बात क्यों चली है। आखिर क्यों राजद कांग्रेस की इस पहल से सहमत नहीं है। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या ऐसा हुआ, जिसके बाद से कांग्रेसी नेता तेजस्वी यादव से नाराज भी बैठे हैं।
मंगलवार रात को दिल्ली में कांग्रेस की एक अहम बैठक हुई। असल में इस बैठक में बिहार चुनावों को लेकर चर्चा हुई । सूत्रों के अनुसार, बैठक में सबसे पहले SIR को लेकर राहुल गांधी के नेतृत्व में निकाली गई वोटर अधिकार यात्रा पर चर्चा हुई। पार्टी का मानना है कि इस यात्रा ने बिहार कांग्रेस में जान फूंक दी है। पिछले कुछ समय से निष्क्रिय अवस्था में पहुंच गए कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं में पार्टी को फिर से खड़ा करने की ललक जाग गई है। इतना ही नहीं कांग्रेस का पुराना वोटर भी अपनी पार्टी से आस लगा बैठा है।
पिछलग्गू नहीं, अब राजद के साथ खड़ी होगी कांग्रेस
ऐसे में बिहार चुनावों में दमदार प्रदर्शन करने की रणनीति के साथ ही सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर चर्चाएं हुईं। असल में अभी जो समीकरण कांग्रेस के लिए बन रहे हैं, उसके अनुसार, कांग्रेस इस बार बिहार में राजद की पिछलग्गू पार्टी बनने को तैयार नहीं है। वह हर फैसले में राजद के साथ खड़ी होना चाहती है, लेकिन पार्टी यह भी जानती है कि पार्टी में जान आई है, अभी बिहार में अकेले ताकत के साथ खड़े होने वाली स्थिति कांग्रेस की नहीं है। इसी मुद्दों को लेकर कल की बैठक में चर्चाएं हुईं।
इतना ही नहीं बिहार कांग्रेस से जुड़े पार्टी सूत्रों का कहना है कि उन्हें आलाकमान की ओर से संकेत मिले हैं कि अब सीटों के बंटवारे को लेकर पार्टी ने एक फॉर्मूला बना लिया है और उसे लेकर ही अब राजद से अंतिम चर्चा होगी। असल में, 2020 के चुनावों में मुकेश सहनी को राजद ने अपने कोटे से सीट देने की बात कही थी और बाद में सीटों पर बात नहीं बनने की सूरत में वह महागठबंधन छोड़ एनडीए के पास चले गए थे। जहां एनडीए ने उन्हें 11 सीटें कर अपने साथ जोड़ लिया था।
मुकेश सहनी वाली सीटों पर कांग्रेस की नजर
अब कांग्रेस का कहना है कि ऐसी सूरत में राजद को चाहिए था कि वह मुकेश सहनी की पार्टी को नहीं दी गई सीटें कांग्रेस के साथ आधी- आधी बांटते , लेकिन उस दौरान राजद ने ऐसा नहीं किया। अब नए समीकरणों में मुकेश सहनी इस बार अभी तक महागठबंधन के ही साथ हैं और उनके अलावा पशुपति पारस और झामुमो को भी सीटें हम सबकी पिछली बार की सीटों में से ही दी जाएंगी। सूत्रों का कहना है कि ऐसी सूरत में कांग्रेस चाहती है कि राजद जितनी सीट मुकेश सहनी को अपने कोटे से देंगे , उसकी आधी सीट कांग्रेस अपने कोटे से देगी।
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अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ऐसा क्यों.... तो कांग्रेस का तर्क है क्योंकि पिछली बार भी और इस बार भी राजद कांग्रेस से लगभग दोगुनी सीटों पर चुनाव लड़ रही है, ऐसी सूरत में अगर वीआईपी पार्टी को 15 सीटें दी जानी हैं तो राजद अपने हिस्से की सीटों में से 10 सीटें वीआईपी को दे और वह 5 सीटें अपने हिस्से की देंगे। ऐसा ही लोजपा और झामुमो के साथ भी होगा।
सिंगल लाइन मैसेज पर राजद ने माथापच्ची शुरू की
अब इस सिंगल लाइन मैसेज के बाद राजद अपनी रणनीति बनाने में जुट गई है और संभावना जताई जा रही है कि इस मुद्दे पर जल्द सहमति बन जाएगी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि जिस दिन राजद इस फॉर्मूले पर मान जाएगी, राहुल गांधी या बिहार में कांग्रेस अध्यक्ष तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा घोषित कर देंगे। आने वाले 2-3 दिनों में आपको ये गतिविधियां दिख सकती हैं। संभावना जताई जा रही है कि 15 सितंबर से पहले महागठबंधन अपनी सीट शेयरिंग की रार को खत्म कर एनडीए के खिलाफ लड़ने की रणनीति पर काम करती नजर आएगी।
प्रेशर पॉलिटिक्स पर उतरी कांग्रेस
इसी बीच कांग्रेस राजद के साथ अपनी प्रेशर पॉलिटिक्स करती नजर आई। असल में कांग्रेस की मंगलवार रात हुई बैठक के बाद बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अलावरू ने AIMIM को महागठबंधन में जोड़े जाने के सवाल पर अपनी प्रतिक्रिया दी। वह बोले कि ओवैसी को महागठबंधन के शामिल किए जाने के फैसले का कांग्रेस का कोई लेना देना नहीं है। ओवैसी ने महागठबंधन में शामिल होने के लिए लालू जी को पत्र लिखा था। इसका फैसला पूरी तरह लालू यादव के पाले में है। असल में ऐसा कहकर कांग्रेस जताना चाह रही है कि ओवैसी कुछ सीटों पर प्रभावी हैं लेकिन महागठबंधन में राजद के MY फैक्टर के चलते , वह राजद की सियासी जमीं किसी के साथ बंटे इसपर तैयार नहीं है। इसलिए खुद लालू यादव इस पर फैसला लें कि वह ओवैसी के वोट कटुआ बनने का नुकसान सह सकेंगे या नहीं।
सीमांचल में है ओवैसी का असर
इसके साथ ही वह ओवैसी को साथ न रखकर राजद पर एक अहसान भी जताना चाहते हैं। जबकि महागठबंधन का हर घटक दल जानता है कि सीमांचल में ओवैसी की दखल किस कदर है। असल में पिछले दिनों तेजस्वी ने अप्रत्यक्ष तौर पर ओवैसी की महागठबंधन में शामिल होने वाली मांग को खारिज कर दिया था। असल में वक्फ बोर्ड के मुद्दे को लेकर तेजस्वी मुसलमानों के गुस्से को अपने वोटों में ही तब्दील करना चाहते हैं। वह नहीं चाहते कि ओवैसी इस मुद्दे पर उनके वोट बांटें। यही कारण रहा था कि तेजस्वी ने वक्फ बोर्ड को लेकर मोदी सरकार की नीतियों की खिलाफ विरोध जताते हुए कई तीखे बयान दिए थे , ताकि मुसलमान राजद को ही अपनी रहनुमा पार्टी समझे।
कांग्रेस और राजद की अंदरूनी कहानी
हालांकि सूत्रों का कहना है कि कांग्रेसी नेता पिछले दिनों हुए एक घटनाक्रम के चलते भी तेजस्वी से काफी आहत हुए थे, जिसका आधार सीट शेयरिंग ही रहा। असल में पिछले दिनों मीडिया रिपोर्ट में प्रकाशित हुआ कि महागठबंधन की ओर से तेजस्वी ने सभी घटक दलों से उनकी संभावित जीत वाली सीटों की सूची मांगी थी, जहां उनकी तैयारियां अच्छी हैं। इस सबके बाद मीडिया में खबरें चली कि कांग्रेस ने भी एक लिस्ट राजद को इस संबंध में दी है, जिसमें 105 सीटों का जिक्र है। हालांकि कांग्रेस का कहना है कि उनकी ओर से ऐसी कोई सूची नहीं सौंपी गई थी। इतना ही नहीं कुछ कांग्रेसी नेताओं का दबी जुबां में कहना है कि यह सब तेजस्वी के इशारे पर हुआ था, उन्होंने ही इस तरह की बातों को लीक करने की जुगत लगाई और कुछ मीडिया हाउस में ऐसी खबरों को चलवाया था, जिससे कांग्रेस की साख खराब हुई और कांग्रेस राजद के कहे पर चलने वाली पार्टी साबित हुई। असल में राजनीति में कुछ भी पर्मानेंट नहीं होता। आज सुशासन की नीति नहीं बल्कि राज को पाने की नीतियां ही राजनीति कहलाने लगीं हैं।
सहमति बनी तो कुछ ऐसा होगा सीटों का गणित
बहरहाल, अगर हम बात करें कांग्रेस के सिंगल लाइनर फॉर्मूले की, तो इस पर सहमति बनने की स्थिति में जल्द महागठबंधन सीटों के बंटवारे का ऐलान कर सकता है। अगर राजद – कांग्रेस एक मंच पर एक साथ सीटों पर सहमति बना पाए तो इस फॉर्मूले के बाद 243 सीटों में से राजद 128-132 के बीच की सीटें, कांग्रेस 62-65 सीट, मुकेश सहनी 12-15 सीट, तीनों लेफ्ट की पार्टियां 28-30 सीट और 2-3 सीटें झामुमो और लोजपा को मिल सकती हैं।
बहरहाल आने वाला वक्त ही बताएगा कि महागठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग के मुद्दे पर क्या अंतिम फैसले लिये जा रहे हैं , लेकिन पार्टी सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार, यह बात तय है कि कांग्रेस अब राजद की पिछलग्गू पार्टी का तमगा लेकर आगे नहीं बढ़ना चाहेगी।
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