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निर्वाचन आयोग को ‘अनियंत्रित’ शक्तियां देना उचित नहीं, एक्स चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने चेताया

निर्वाचन आयोग को किसी अप्रत्याशित कारण से तब राज्य विधानसभा चुनाव स्थगित करने की सिफारिश करने की अनुमति देता है। जब यह चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ संभव न हो सके।

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Mukesh Pandit
Ex Cji Sanjiv khanna
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नई दिल्ली, वाईबीएन ड़ेस्क।चुनाव आयोग की कार्यशैली को लेकर उठ रहे सवालों के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना का बड़ा बयान आया है। जस्टिस खन्ना ने देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव वाले विधेयक में निर्वाचन आयोग को दिए गए अनियंत्रित विवेकाधिकार पर सवाल उठाया और कहा कि चुनावों की आवृत्ति कम करने के प्रस्तावित कानून का उद्देश्य व्यावहारिक रूप से हमेशा पूरा नहीं हो सकता। 

संसद की संयुक्त समिति के समक्ष पेश हुए एक्स चीफ जस्टिस

भाजपा सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली संसद की संयुक्त समिति के समक्ष पेश हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने सुझाव दिया कि विधेयक में धारा 82ए(5) के तहत प्रावधान के दुरुपयोग के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा उपाय होने चाहिए, जो निर्वाचन आयोग को किसी अप्रत्याशित कारण से तब राज्य विधानसभा चुनाव स्थगित करने की सिफारिश करने की अनुमति देता है। जब यह चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ संभव न हो सके। बैठक के बाद चौधरी ने पत्रकारों से कहा कि यह सवाल उठाया गया कि क्या यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। 

एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर दिए समिति को सुझाव

उन्होंने कहा, ‘‘यह व्यापक रूप से स्वीकार किया गया कि विधेयक मूल ढांचे के विरुद्ध नहीं है।’ सूत्रों ने बताया कि खन्ना ने विधेयक के बारे में अपना आकलन ‘संतुलित’ रखा और सदस्यों के प्रश्नों के उत्तर में कई कानूनी बिंदु रखे। समिति को पूर्व में ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ अवधारणा के रूप में ज्ञात अपने लिखित नोट में उन्होंने कहा था कि किसी प्रस्ताव की संवैधानिक वैधता किसी भी तरह से उसके प्रावधानों की वांछनीयता या आवश्यकता पर घोषणा नहीं है। 

कुछ खतरों की ओर किया इशारा

खन्ना ने कहा था कि संविधान संशोधन विधेयक के बारे में देश के संघीय ढांचे को कमजोर करने से संबंधित तर्क उठाए जा सकते हैं, क्योंकि उन्होंने इस अवधारणा का समर्थन और आलोचना करने वाले विभिन्न दावों को सूचीबद्ध किया था। उन्होंने कहा कि विधेयक का घोषित उद्देश्य चुनावों की आवृत्ति को कम करना है, लेकिन जब विधानमंडलों को उनके पूर्ण कार्यकाल से पहले ही भंग कर दिया जाए, तो यह हमेशा साकार नहीं हो पाएगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि मध्यावधि चुनाव दुर्लभ हैं, जो बढ़ती राजनीतिक स्थिरता और संस्थागत लचीलेपन का प्रतिबिंब है। 

विधेयक के क्रियान्वयन की एक निश्चित तिथि हो

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सूत्रों ने बताया कि उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि विधेयक के क्रियान्वयन की एक निश्चित तिथि होनी चाहिए, न कि वर्तमान प्रस्ताव के अनुसार, जो इसे संसद में पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित कानून को मंजूरी दिए जाने के बाद नयी लोकसभा की पहली बैठक से जोड़ता है। बैठक में भाजपा के रविशंकर प्रसाद, अनुराग ठाकुर, संजय जायसवाल और संबित पात्रा, कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाद्रा, मनीष तिवारी और मुकुल वासनिक, तेदेपा के जीएम हरीश बालयोगी, द्रमुक के पी विल्सन और वाईएसआर कांग्रेस के वाई वी सुब्बा रेड्डी शामिल थे।  : Election Commission Action | Election Commission criticism | Election Commission protest | Election Commission India not present in content



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