नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
मोदी सरकार ने अपने हर कार्यकाल में एक से बढ़कर एक फैसले लिए हैं, और हर फैसला पूरी मजबूती के साथ लिया है। ढुलमुल रवैये से मोदी सरकार का कभी ताल्लुक रहा ही नहीं। यही कारण है कि सरकार 2014 से अब तक निरंतर सुधारात्मक फैसले लेने और उन पर अमल करवाने में कामयाब रही है। वक्फ संसोधन विधेयक को लेकर भी सरकार का यही रुख है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विधेयक लोकसभा में पास होने पर देश भर में विरोध प्रदर्शन और अदालत जाने की धमकी दी है, लेकिन इस धमकी से सरकार की सेहत पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। सरकार का स्पष्ट कहना है कि यह विधेयक वक्फ के संपत्तियों के बेहतर रखरखाव और सभी मुसलमानों को एक समान अधिकार के लिए जरूरी है।
जीएसटी और नोटबंदी का फैसला
मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में नोटबंदी और जीएसटी से जैसे आम मुद्दों पर सुधारात्मक प्रस्ताव लेकर आई और उन्हें कानून का अमलीजामा पहनाया। हालांकि दोनों ही मुद्दे बिल्कुल नए नहीं थे। कांग्रेस सरकार भी इन मुद्दों पर विचार कर चुकी थी, लेकिन ढुलमुल रवैये और विरोध के डर से अमल नहीं हुआ। कांग्रेस की सरकारों और मौजूदा सरकार में यही बुनियादी अंतर है। सरकार उस पैटर्न पर चलती है कि समय के साथ हम खुद को नहीं बदलेंगे तो दौड़ में खुद ही पिछड़ जाएंगे। सरकार यह भी जानती है कि तमाम सुधारात्मक परिवर्तन सख्ती की दरकार रखते हैं।
तीन तलाक पर क्या हुआ
मुद्दा तीन तलाक का रहा हो, यूसीसी का रहा हो, या फिर अब वक्फ ससोधन विधेयक का। केंद्र सरकार ने हर मामले में बड़ी मजबूती के साथ निर्णय लिए और अपने निर्णय पर डटकर खड़ी रही। 2017 में तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 पेश किया था। इस बिल का उद्देश्य तीन तलाक जैसी कुप्रथा को समाप्त करना था ताकि मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा की सुरक्षा हो सके। तीन तलाक के मामले में शौहर को तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त, 2015 को तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था और सरकार ने इसे आपराधिक बनाने के लिए कानून बनाया जो जुलाई, 2019 को कानून बन गया।
मुस्लिम संगठनों ने किया था विरोध
तीन तलाक के खिलाफ कानून का मुस्लिम संगठनों ने कड़ा विरोध किया था, लेकिन सरकार अपनी बात पर अडिग थी, और रही। एआईएमआईएम प्रमुख असदद्दीन ओवैसी ने तो तीन तलाक के खिलाफ कानून का विरोध करने के संसद के बाहर प्रदर्शन भी किया था। दारूल उलूम देवबंद भी सरकार के इस फैसले के खिलाफ था। मुस्लिम छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किए। ऑल इंडिया मजलिस-ए- मुशावरात ने विरोध किया और पुरुषों पर हमला तक करार दे दिया, लेकिन सरकार नहीं डिगी।
नागरिकता संसोधन होने पर भी यही हुआ
केंद्र सरकार नागरिकता संसोधन बिल लेकर आई तो देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। दिल्ली के शाहीन बाग में लंबा विरोध प्रदर्शन था। सरकार बराबर कह रही थी कि कानून में बदलाव का उद्देश्य पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों को नागरिकता देना है लेकिन विरोध करने वाले कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। यह कानून शरणार्थी हिंदू, सिख, पारसी जैन और ईसाईयों के लिए था लेकिन मुस्लिम विरोध में उतर आए, लेकिन सरका ने 11 दिसंबर, 2019 को इस विधेयक को पास कर कानून बना दिया। इस मामले का उदाहरण संसदीय कार्यमंत्री और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने वक्फ संसोधन विधेयक पेश करते समय पूछा कि नागरिकता संसोधन के चलते किसी की नागरिकता गई, तो विपक्ष से जवाब नहीं पड़ा।
यूसीसी पर को भी एजेंडा बताकर विरोध किया
विपक्ष ने मुस्लिम संगठनों के साथ मिलकर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर भी ऐसा ही माहौल तैयार कर दिया था। कहा गया है कि यह भाजपा का बड़ा पुराना एजेंडा है। केंद्र सरकार इसे अभी कानून नहीं बना सकी है लेकिन उत्तराखंड में यूसीसी लागू करने के साथ ही इसकी शुरूआत हो चुकी है। अब वक्फ संसोधन विधेयक पर सरकार ठीक उसी तरह अडिग है जैसे अब ऐसे तमाम मामलों में रही है।