नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र की नरेंद्र मोदी कैबिनेट में नागरिक उड्डयन मंत्री हैं। उनके पिता माधवराव सिंधिया भी ये मंत्रालय संभाल चुके हैं। माधवराव वर्ष 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की कैबिनेट में नागरिक उड्डयन मंत्री बने थे। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Former PM Rajiv Gandhi) ने भी माधवराव सिंधिया को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी थी। लेकिन एक बात शायद कम ही लोगों को पता हो कि राजीव की मां इंदिरा गांधी ने उन्हें ऐसा नहीं करने की सलाह दी थी। इंदिरा ने राजीव से साफ कहा था कि माधवराव सिंधिया को अपनी कैबिनेट में शामिल मत करना। इंदिरा ने अमिताभ बच्चन को भी चुनाव लड़ाने से सख्त मना किया था। आपको बता दें कि अमिताभ और माधवराव, दोनों ही राजीव गांधी के दोस्त थे। ये बात और है कि राजीव ने अपनी मां की ये दोनों सलाह नहीं मानी।
किताब में जिक्र
पत्रकार राशिद किदवई ने अपनी किताब में इस वाकये के बारे में बताया है। किदवई ने दिवंगत कांग्रेस नेता और गांधी परिवार के बेहद करीबी रहे माखनलाल फोतेदार के हवाले से यह खुलासा किया है। राशिद किदवई ने लिखा है कि 31 अक्टूबर, 1984 को अपनी हत्या से कुछ दिन पहले इंदिरा ने एक दिन अचानक बेटे राजीव गांधी और अरुण नेहरू को बुलाया। राजीव उस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव थे जबकि अरुण नेहरू पार्टी के ताकतवर नेताओं में शामिल थे।
फोतेदार ने किया दावा
इंदिरा (Indira’s advise to Rajiv Gandhi) ने बातचीत के दौरान राजीव से कहा कि तुम दो काम बिलकुल मत करना। पहला अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) को कभी चुनावी राजनीति में मत लाना। दूसरा यदि तुम कभी प्रधानमंत्री बनो तो माधवराव सिंधिया को अपनी कैबिनेट में मंत्री मत बनाना। माखनलाल फोतेदार ने अपनी आत्मकथा में भी इस वाकये का जिक्र किया है। हालांकि, उन्होंने इसके पक्ष में कोई सबूत नहीं दिए हैं।
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राजीव ने नहीं मानी सलाह
फोतेदार ने कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी से प्रभावित होकर यह बात लिखी या ऐसा वास्तव में हुआ था, इस बारे में दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता। इतना जरूर है कि राजीव गांधी ने अपनी मां की दोनों में से कोई सलाह नहीं मानी। इंदिरा की हत्या के बाद लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के कहने पर अमिताभ बच्चन न केवल चुनावी दंगल में कूदे, बल्कि हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे दिग्गज को पटखनी भी दी। चुनाव के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने माधवराव सिंधिया को मंत्री बनाकर रेल मंत्रालय जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी। यहीं से माधवराव की पूरे देश में लोकप्रियता बढ़ने लगी। उन्होंने शताब्दी एक्सप्रेस जैसी तेज रफ्तार ट्रेनें और कंप्यूटराइज्ड टिकट प्रणाली की शुरुआत कर मिड्ल क्लास को अपना मुरीद बना लिया।
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सियासत से दूर हुए अमिताभ
अमिताभ बच्चन का सियासी सफर हालांकि ज्यादा लंबा नहीं चल सका। करीब तीन साल बाद बोफोर्स घोटाले में अमिताभ के छोटे भाई अजिताभ का नाम सामने आया। अजिताभ उस समय तक स्विट्जरलैंड शिफ्ट कर चुके थे। बदनामी होते देख करीब तीन साल बाद ही 1987 में अमिताभ ने सांसद पद छोड़ दिया और राजनीति से भी दूर हो गए।
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फिर टूट गई दोस्ती
राजनीति से दूर होने के बाद भी राजीव और अमिताभ के परिवारों के बीच नजदीकियां बनी रहीं। 1989 में राजीव गांधी की हत्या के बाद अमिताभ उनके परिवार के साथ खड़े रहे, लेकिन आगे चलकर उनके रिश्तों में खटास आने लगी। एक समय ऐसा भी आया जब अमिताभ ने गांधी परिवार को बड़ा आदमी करार दिया। अब दोनों परिवारों के बीच रिश्ते करीब-करीब पूरी तरह टूट चुके हैं। माधवराव सिंधिया जब तक जिंदा रहे, राजीव के परिवार के करीबी बने रहे। राजीव की मौत के बाद माधवराव ने उनके परिवार को सहारा दिया। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में एंट्री हुई, तो राजीव के बेटे राहुल गांधी के साथ उनकी दोस्ती भी काफी परवान चढ़ी। ज्योतिरादित्य, राहुल की कोर टीम का हिस्सा थे। फिर 2019 का लोकसभा चुनाव आया और ज्योतिरादित्य अपनी परंपरागत सीट गुना-शिवपुरी से हार गए। इसके बाद राहुल और ज्योतिरादित्य के रिश्ते खराब होने लगे। मार्च, 2020 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए।
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