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यूपी में एक समय पर दो सीएम, राज्यपाल की 'अनुकंपा' से जगदंबिका पाल ने किया था कल्याण सिंह का तख्तापलट

साल 1998 में एक ऐसा मौका आया था जब उत्तर प्रदेश में एक ही समय पर दो लोग मुख्यमंत्री होने का दावा कर रहे थे। इसका कारण यह था कि राज्यपाल ने जल्दबाजी में एक मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर दूसरे को शपथ दिला दी थी।

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Aditya Pujan
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लखनऊ, वाईबीएन नेटवर्क।

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देश में सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश। सियासी गतिविधियों के लिहाज से भी यूपी देश का सबसे महत्वपूर्ण राज्य है। यह लाजिमी भी है क्योंकि देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री यूपी ने ही दिए हैं। लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें भी यहीं हैं। एक समय ऐसा भी था जब इस राज्य में एक साथ दो-दो मुख्यमंत्री बन गए थे। एक जिसके पास विधानसभा में बहुमत था और दूसरा जो बहुमत होने का दावा कर रहा था। राज्यपाल इतनी जल्दबाजी में थे कि विधानसभा में शक्ति परीक्षण के बिना ही उन्होंने नए मुख्यमंत्री को शपथ दिला दी थी। हालांकि, 31 घंटे बाद ही कोर्ट का फैसला आ गया और नए सीएम को इस्तीफा देना पड़ा।

साल 1998 का वाकया

यह वाकया साल 1998 का है। तब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। 21 फरवरी, 1998 को बीएसपी नेता मायावती ने लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर घोषणा कर दी कि वे हर हाल में कल्याण सिंह सरकार को गिराकर ही दम लेंगी। इसके बाद वे अपनी पार्टी के साथ अजीत सिंह की किसान कामगार पार्टी, जनता दल और सरकार का समर्थन कर रहे लोकतांत्रिक कांग्रेस के विधायकों को लेकर राजभवन पहुंच गईं। मायावती ने राज्यपाल रोमेश भंडारी के सामने दावा किया कि कल्याण सिंह सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो चुकी है। उन्होंने राज्यपाल से जगदंबिका पाल को नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाने की मांग की जो कल्याण सिंह की कैबिनेट में मंत्री थे।

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कल्याण सिंह से नाराज थे राज्यपाल

लखनऊ में जब ये सब हो रहा था, कल्याण सिंह गोरखपुर में थे। वे एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे। उन्हें जब इसकी खबर मिली तो भागे-भागे लखनऊ आए। उन्होंने राज्यपाल को समझाने की कोशिश की कि उन्हें विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का मौका दिया जाए, लेकिन रोमेश भंडारी तो पहले ही उन्हें बर्खास्त करने का मन बना चुके थे। इसके पीछे भी एक वजह थी। करीब पांच महीने पहले यूपी विधानसभा में एक अभूतपूर्व घटना हुई थी। 21 अक्टूबर, 1997 को कांग्रेस के विधायक स्पीकर के आसन के पास पहुंचकर अपना विरोध प्रकट कर रहे थे। थोड़ी देर में एसपी और बीएसपी के विधायक भी वहां पहुंच गए और सदन में हिंसा शुरू हो गई। हालात इतने खराब हो गए कि विधायक एक-दूसरे पर माइक और कुर्सियों से हमला करने लगे। अफरातफरी के बीच मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को सुरक्षा बलों के संरक्षण में सदन से बाहर निकालना पड़ा। विधानसभा में हुई इस घटना से राज्यपाल बेहद नाराज थे। वो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना चाहते थे, लेकिन केंद्र में सत्तारूढ राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार ने उनकी सिफारिश नहीं मानी। राज्यपाल तब से ही कल्याण सिंह से खार खाए बैठे थे।

रात 10 बजे नए सीएम को दिलाई शपथ

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मायावती से मुलाकात के कुछ घंटे बाद राज्यपाल ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। 21 फरवरी की रात के 10 बजे उन्होंने नाटकीय तरीके से जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। राज्यपाल को जगदंबिका पाल को शपथ दिलाने की इतनी जल्दी थी कि राजभवन का स्टाफ शपथ ग्रहण समारोह के बाद राष्ट्रगान बजाना ही भूल गया। जगदंबिका पाल पहले कांग्रेस में थे। फिर वो तिवारी कांग्रेस में चले गए थे। 1997 में उन्होंने नरेश अग्रवाल के साथ मिलकर लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाई और कल्याण सिंह सरकार में शामिल हो गए थे। कल्याण सिंह की बर्खास्तगी के बाद राज्यपाल की अनुकंपा से वे सीएम तो बन गए, लेकिन उनकी यह खुशी कुछ घंटे तक ही बनी रह सकी।

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सीएम की कुर्सी के दो दावेदार

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एक तरफ जगदंबिका पाल का शपथ ग्रहण हो रहा था तो दूसरी तरफ राज्यपाल के फैसले के खिलाफ बीजेपी विरोध जता रही थी। अगले दिन लखनऊ में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी थी, लेकिन विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी राज्यपाल के फैसले के खिलाफ स्टेट गेस्ट हाउस में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए। लखनऊ के राज्य सचिवालय में भी अजीब स्थिति थी। दो लोग राज्य का मुख्यमंत्री होने का दावा कर रहे थे। इधर, बीजेपी ने राज्यपाल के निर्णय की वैधता को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे डाली। 22 फरवरी को बीजेपी नेता नरेंद्र सिंह गौड़ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। अगले दिन तीन बजे हाईकोर्ट ने जगदंबिका पाल की नियुक्ति को गैरकानूनी करार देते हुए कल्याण सिंह सरकार को बहाल करने के आदेश दे दिए। कोर्ट ने कल्याण सिंह को तीन दिन के अंदर विधानसभा में बहुमत साबित करने का निर्देश भी दिया। कोर्ट का आदेश आने के बाद भी जगदंबिका पाल अपने पद से इस्तीफा देने को तैयार नहीं थे। वे अड़ गए कि जब तक उन्हें हाई कोर्ट के आदेश की कॉपी नहीं मिलेगी, वे इस्तीफा नहीं देंगे। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने बीच का रास्ता निकाला और कहा कि अगले 48 घंटे के भीतर विधानसभा में कैमरे की निगरानी में ‘कंपोजिट फ्लोर टेस्ट’ होगा। उसमें जो जीतेगा, उसे मुख्यमंत्री माना जाएगा। तब तक के लिए दोनों (जगदंबिका पाल और कल्याण सिंह) के साथ मुख्यमंत्री जैसा व्यवहार किया जाएगा। लेकिन कोई भी नीतिगत फैसला कंपोजिट फ्लोर टेस्ट के बाद ही होगा।

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फ्लोर टेस्ट में हार गए जगदंबिका पाल

26 फरवरी को विधानसभा में शक्ति परीक्षण हुआ। बहुमत के लिए कल्याण सिंह को 213 विधायकों के समर्थन की जरूरत थी। वोटिंग में उनके पक्ष में 225 विधायकों ने वोट डाला। जगदंबिका पाल को 196 विधायकों का समर्थन मिला। शक्ति परीक्षण की प्रक्रिया पर निगरानी के लिए सदन में 16 वीडियो कैमरे लगाए गए थे। शक्ति परीक्षण का नतीजा आने के बाद बीजेपी के कुछ विधायक जगदंबिका पाल को जबरदस्ती मुख्यमंत्री कार्यालय से बाहर निकालने पर आमादा थे। कुछ लोगों का मानना था कि कल्याण सिंह के दोबारा मुख्यमंत्री बनाए जाने के बारे में राजभवन से आदेश जारी होना चाहिए। इस बारे में कानूनविदों की राय ली गई। उन्होंने बताया कि हाई कोर्ट ने जगदंबिका पाल की नियुक्ति को ही अवैध ठहरा दिया है। इसका मतलब ये हुआ कि कल्याण सिंह का कार्यकाल बीच में टूटा ही नहीं था।

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आम लोग भी गफलत में

इधर, प्रदेश की जनता भी गफलत में थी। राज्य का मुख्यमंत्री कौन है, इसको लेकर भयंकर कंफ्यूजन था। सवाल उठा कि आम लोगों और मीडिया तक ये संदेश कैसे पहुंचाया जाए। काफी सोच-विचार के बाद इसका हल ये निकाला गया कि कल्याण सिंह अपनी कैबिनेट की बैठक बुलाएं और इसका एक प्रेस नोट जारी किया जाए। कल्याण सिंह इसके लिए तैयार हो गए और जगदंबिका पाल भी मुख्यमंत्री कार्यालय से बाहर आ गए।

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बढ़ गईं राज्यपाल की मुश्किलें

इस तरह मुख्यमंत्री का मसला तो हल हो गया, लेकिन राज्यपाल रोमेश भंडारी की मुश्किलें खत्म नहीं हुईं। कल्याण सिंह के दोबारा सीएम बनने के तीन-चार दिन बाद रोमेश भंडारी कार से प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी नैनीताल के लिए रवाना हो गए। नैनीताल की सीमा के पास बीजेपी के नाराज कार्यकर्ताओं ने उनकी कार को रोक दिया। स्थानीय प्रशासन ने यह कहकर अपने हाथ खड़े कर दिए कि उसके पास राज्यपाल के आने की पहले से सूचना नहीं थी। नाराज रोमेश भंडारी ने यूपी के चीफ सेक्रेटरी आरएस माथुर को फोन लगाया। इसी बीच कल्याण सिंह को भी पता चल गया कि राज्यपाल की गाड़ी को रोक दिया गया है। उन्होंने भी चीफ सेक्रेटरी को फोन किया और कहा कि राज्यपाल के पद की गरिमा का हर हाल में आदर किया जाना चाहिए। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और भंडारी के काफिले के आगे बढ़ने का रास्ता साफ कराया। राष्ट्रपति केआर नारायणन ने भी प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल को पत्र लिख कर राज्यपाल भंडारी पर आरोप लगाया कि उन्होंने उनकी इच्छा के विरुद्ध कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त किया था।

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