लखनऊ, वाईबीएन नेटवर्क।
Milkipur By-Election: मिल्कीपुर उपचुनाव के नतीजों से उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की सेहत पर कोई भी असर नहीं पड़ने वाला है। इसके बावजूद भी चाहे भाजपा हो या फिर विरोधी खेमा, दोनों ही अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों मिल्कीपुर उपचुनाव जीतना भाजपा के लिए इतना अहम है। समाजवादी पार्टी ने पहले ही अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है, लेकिन भाजपा ने अभी तक अपने प्रत्याशी के नाम का ऐलान नहीं किया है। आइए जानते हैं कि मिल्कीपुर से भारतीय जनता पार्टी किसे टिकट देगी।
मिल्कीपुर उपचुनाव की जीत भाजपा के लिये मरहम होगी
भलें ही मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गये हों, लेकिन फैज़ाबाद संसदीय सीट की हार भाजपा के लिये कभी भी ना भुला पाने वाली हार साबित हुई है। भाजपा का आलाकमान हो या फिर भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता, सभी के लिये फैज़ाबाद सीट पर अवधेश प्रसाद की जीत किसी बुरे सपने की तरह ही है। क्योंकि फैज़ाबाद संसदीय सीट में अयोध्या आती है और अयोध्या में है भव्य राम मंदिर। वो राम मंदिर जिसने भाजपा के सियासी वजूद को संवारा। 2024 की शुरुआत में मंदिर राम भक्तों और भाजपा को आनन्दित कर गया, लेकिन चंद महीनों बाद ही भाजपा को अपने सियासी इतिहास की सबसे शर्मनाक हार फैज़ाबाद संसदीय सीट पर ही देखने को मिली। गोरखपुर के जिस गोरखनाथ मठ का योदगान राम मंदिर आंदोलन में बेहद अहम रहा, उसी मठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम हैं। इस लिहाज़ से योगी को ये हार और अधिक तकलीफ पहुंचा रही है। यही वजह है कि सीएम योगी लगातार मिल्कीपुर का दौरा कर रहे हैं और भाजपा की जीत की ज़मीन को पुख्ता भी कर रहे हैं।
कौन होगा भाजपा का उम्मीदवार?
मिल्कीपुर जो कि एक सुरक्षित सीट है, वहां 5 फरवरी को उपचुनाव होना है। जाहिर है भाजपा ये चुनाव जीतकर लोकसभा चुनाव का जख्म भरना चाहेगी, लेकिन भाजपा किसको चुनावी मैदान में उतारेगी? ये सवाल लगातार यूपी के सियासी गलियारे में तैर रहा है। भाजपा में टिकट को लेकर एक दर्जन से अधिक लोगों ने दावेदारी की है। पार्टी नेतृत्व और जिला प्रभारी मंत्री के अलावा उपचुनाव में लगाए गए मंत्रियों के बीच मंथन हो रहा है। पार्टी स्तर पर ऐसे प्रत्याशियों के चयन को लेकर मंथन किया जा रहा है, जिसकी जीत पर संशय न हो। पूर्व विधायक गोरखनाथ बाबा भी रेस में है। गोरखनाथ 2017 में इस सीट से विधायक रह चुके हैं। हालांकि, 2022 में वह हार गए थे। दावेदारों में पूर्व विधायक रामू प्रियदर्शी भी हैं। ये 1991 में सोहवल से विधायक रहे हैं और 2012 में भाजपा ने इन्हें मिल्कीपुर से चुनाव लड़ाया था, लेकिन हार गए थे। लगातार तीन बार से जिला संगठन में महामंत्री रहे राधेश्याम त्यागी भी दावेदारों में हैं। अन्य दावेदारों में भाजपा के प्रदेश अनुसूचित मोर्चा के कोषाध्यक्ष चंद्रकेश रावत के नाम की भी चर्चा है। उपचुनाव के लिए भाजपा के कई स्थानीय पदाधिकारियों ने दावेदारी की है। हालांकि चंद्रभानु पासवान, पूर्व ब्लाक प्रमुख विनय कुमार रावत, सियाराम रावत, विजय बहादुर फौजी, काशीराम पासी, शांति पासी और बाराबंकी की जिला पंचायत सदस्य नेहा आनंद सिंह ने भी टिकट के लिए दावेदारी कर रखी है।
क्या भाजपा एक नौकरशाह को देगी मिल्कीपुर से मौका?
भाजपा चौकाना जानती है। पार्टी में ये भी चर्चा है कि इस बार भाजपा एक और नौकरशाह को सियासत में ला सकती है। नाम है सुरेन्द्र रावत। उप परिवाहन आयुक्त रावत वीआरएस के लिये अर्ज़ी दे चुके हैं। शासन को भेजे अपने पत्र में रावत नें पारिवारिक कारणों का हावाला दिया है, लेकिन चर्चा है कि असल वजह चुनावी है। सुरेंद्र रावत मिल्कीपुर सीट पर जातिगत समीकरण के आधार पर बीजेपी की पसंद हो सकते हैं। योगी सरकार के एक कैबिनेट मंत्री की नज़दीकियां भी इस बात की ओर इशारा कर रही है, लेकिन यहां भी एक पेच हैं। मिल्कीपुर में होने वाले चुनाव को लेकर नामांकन की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। नामंकन की आखिरी तारीख 17 जनवरी है। ऐसे में शासन अगर सुरेंद्र रावत की अर्जी पर जल्द निर्णय नहीं लेता है तो फिर उनकी राजनीतिक पारी पर ग्रहण भी लग सकता है।
जातिगत समीकरण बदलेंगे चुनावी दिशा?
मिल्कीपुर में भाजपा की जीत का सपना सामाजिक समीकरणों को हल करने से ही सधेगा। 3.50 लाख से अधिक वोटरों वाली इस सीट पर सर्वाधिक आबादी दलितों की है। इस सीट पर 1.30 लाख से अधिक दलित वोटर हैं, तो वहीं यहां 55 हजार यादव और 30 हजार से अधिक मुस्लिम, 60 हजार से अधिक ब्राह्मण, 30 हजार क्षत्रिय, 50 हजार से अधिक कोरी, चौरसिया, पाल और मौर्य आदि बिरादरी के वोटर हैं।
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