नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
लोकसभा 2024 का चुनाव साथ मिलकर लड़ने वाली कांग्रेस और आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ रहे हैं और एक दूसरे को खुलकर चुनौती दे रहे हैं। आम आदमी पार्टी के लिए चौथी बार सरकार बनाने की कठिन चुनौती है, कांग्रेस इस चुनाव में अपनी खोई साख हासिल करने के लिए लोकलुभावन योजनाओं का पिटारा खोल रही है। इंडिया गठबंधन में बिखराव की कीमत पर कांग्रेस 'ऐकला चलो' के रास्ते पर कदम बढ़ा चुकी है और पूरी कोशिश है कि वह इस चुनाव में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराए। पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस का वोट बैंक लगातार सिकुड़ता चला गया है। वर्ष 2003 में 48.1 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 47 सीटें जीतने वाली कांग्रेस वर्ष 2020 के चुनाव में रसातल में चली गई और उसे मात्र 4.3 प्रतिशत ही वोट मिले। वह दो चुनावों में अपना खाता तक नहीं खोल सकी है। इसलिए कांग्रेस के लिए चुनौती काफी बड़ी है।
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कांग्रेस ने वर्ष 2008 में जीती थीं 43 सीटें
वर्ष 2003 के दिल्ली के चुनाव में 48.1 फीसदी वोट शेयर के साथ 47 सीटें जीतकर सरकार बनाने वाली कांग्रेस वर्ष 2008 में अपनी सत्ता बचाने में सफल रही थी। हालांकि वोट शेयर और सीटों के तौर पर नुकसान उठाना पड़ा। कांग्रेस को 2008 में 8 प्रतिशत वोटों का नुकसान हुआ और उसे 40.3 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस को इस चुनाव में 43 सीटें ही मिलीं। इस चुनाव में भाजपा को मामूली लाभ हुआ। भाजपा का वोट शेयर वर्ष 2003 के चुनाव की तुलना में 35.2 प्रतिशत के मुकाबले 36.3 प्रतिशत वोट मिले। सीटें भी 20 से बढ़कर भी 23 हो गईं। वर्ष 2008 में 14 फीसदी वोट शेयर के साथ बसपा भी तीन सीटें जीतने में सफल रही। रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी 1.3 प्रतिशत वोटों के साथ एक जीत सीट जीतने में कामयाब रही।
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आप के उभार से शुरू हुआ कांग्रेस का पतन
दिल्ली में वर्ष 2013 में आम आदमी पार्टी के उभार के बाद कांग्रेस का जैसे पतन शुरू हो गया। वर्ष 2013 में अपने पहले चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 29.70 प्रतिशत वोट के साथ 28 सीटें जीतीं। 2008 में 43 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 24.70 प्रतिशत वोट शेयर के साथ आठ सीटों पर सिमट गई। इस चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 36.3 प्रतिशत तक गिरकर 33.3 प्रतिशत तक आ गया, लेकिन पार्टी 31 सीटें जीतने के बाद सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इस चुनाव में बसपा का वोट शेयर भी सिकुड़ कर 14 प्रतिशत से 5.4 प्रतिशत वोट शेयर पर आ गया। इस चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला और नतीजे आ्ने के बाद कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया और कांग्रेस के समर्थन से अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। लेकिन दो धुरविरोधी दलों की गठबंधन सरकार मात्र 49 दिन ही चली।
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वर्ष 2015 और वर्ष 2020 में जीरो हो गई कांग्रेस
वर्ष 2015 के दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी की ऐसी झाड़ू चली कि कांग्रेस जीरों पर सिमट गई। भाजपा को भी इस चुनाव में मात्र तीन सीटों से संतोष करना पड़ा। आप 54.5 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 70 सीटों की विधानसभा में 67 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही। भाजपाको 32.3 प्रतिशत वोट मिला और तीन सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस का वोट शेयर 9.7 प्रतिशत मिला। वर्ष 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी 53 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 62सीटें जीतकर सत्ता में शानदार वापसी करने में सफल रही।इस चुनाव में भाजपा के वोट शेयर में छह प्रतिशत का फायदा हुआ। भाजपा को 38.7 प्रतिशत वोट मिले और आठ सीटें जीतने में सफल रही। कांग्रेस का इस बार भीखाता नहीं खुला और पार्टी के वोट शेयर में गिरावट जारी रही। कांग्रेस को4.3 प्रतिशत ही वोट मिले।
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