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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। राहुल गांधी... देश की राजनीति में जीरो फीसदी रुचि रखने वाला शख्स भी उन्हें अच्छी तरह जानता है। वह देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं । देश के सबसे बड़े राजनीतिक ‘गांधी परिवार’ के ‘राजकुमार’हैं। पिछले 21 सालों से देश की राजनीति में सक्रिय हैं । कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद लगातार मोदी सरकार और भाजपा की नीतियों पर सवाल उठाते रहना, उनकी सियासी रणनीति का हिस्सा बन गया है। पिछले कुछ सालों में उन्होंने अपनी छवि को सुधारने के लिए सड़कों पर उतरकर कई बड़े अभियान चलाए , लेकिन कोई भी अभियान, उनकी कमजोर नजर आती नेतृत्व क्षमता और संगठन की कमजोर पकड़ के चलते, कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाने में कामयाब नहीं हो सका है। शायद इसका एक कारण ये हो कि उनकी राजनीति, आरोप-प्रत्यारोप के इर्द-गिर्द ही ज्यादा नजर आती है।
पिछले 21 वर्ष से राजनीति में सक्रिय
केंद्र सरकार की योजनाओं पर सवाल उठाना, कई अहम मौकों पर अरिपक्व बयानबाजी , राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई बार अपनी राजनीतिक नेतृत्व क्षमता का दमखम दिखाने में चूक जाना, कभी-कभी सशक्त विचारों के बावजूद , उसे सशक्त माध्यम से धरातल पर जाने से चूक जाना, या उस पर तेजी से काम न करना या यूं कहें कि उसमें निरंतरता न दिखना, उनकी बड़ी चूक कही जाती हैं। इसके साथ ही पार्टी के भीतर जारी गतिरोध भी उनके काम को सीमित करता है। देश के कई राजनीतिक विचारकों का भी कुछ ऐसा ही मानना है। अब ऐसे में सवाल उठता है, क्या राहुल गांधी इस आरोप –प्रत्यारोप की राजनीति और कमजोर होते संगठन को फिर से सत्ता की चाबी दिला पाएंगे। असल में, ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि कुछ दिनों पहले एक बार फिर राहुल गांधी ने अपने आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के तहत महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में धांधली का आरोप लगाया है । उनका कहना है कि एक सुनियोजित साजिश के तहत महाराष्ट्र चुनावों में हेराफेरी की गई और अब आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के लिए भी भाजपा ऐसी ही साजिश करती नजर आएगी।
जानें राहुल का राजनीतिक सफरनामा
वर्ष 1970 , 19 जून, यानी आज ही के दिन पैदा हुए राहुल गांधी ने अपने परिवार में देश के दो प्रधानमंत्रियों को देखा। पहले दादी इंदिरा गांधी और फिर पिता राजीव गांधी । यह उनके लिए बहुत ही दुखद ही था कि देश के दोनों ही बहुचर्चित प्रधानमंत्रियों को उग्रवाद के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी । राजनीतिक घराने में पैदा हुए राहुल गांधी ने अपनी दादी- पिता के बाद अपनी मां को राजनीति की धुरी बनते देखा । उन्होंने पिता के जाने के बाद भी अपनी मां के नेतृत्व में कांग्रेस को मजबूती से खड़े देखा। शुरुआती दौर में विदेश में पढ़ने के बाद भी उन्होंने राजनीति से दूरी ही बनाए रखी , लेकिन उन्होंने राजनीति में कदम वर्ष 2002-03 के करीब रखा और वर्ष 2008 में वह सियासत का हिस्सा बन गए, जब वह अमेठी से सांसद चुने गए ।
कांग्रेस में युवा चेहरा बनकर उभरे
सियासत में कदम रखने के बाद कांग्रेस ने राहुल गांधी को राजनीति का युवा चेहरा बनाकर पेश किया। वर्ष 2007 में कांग्रेस ने उन्हें भारतीय युवा कांग्रेस और एनएसयूआई का प्रभारी बनाया गया। इसके बाद उन्होंने संगठन में सुधार और युवाओं को मौका देने पर जोर दिया। राहुल के जुड़ने से मानों कांग्रेस में नई जान आ गई । वर्ष 2009 के चुनावों में कांग्रेस ने उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन मिला। राहुल गांधी ने अपनी राजनीति में ‘आम आदमी’ को जोड़ने और जमीनी राजनीति को मजबूत करने की बात की।
बयानबाजियां भारी पड़ी
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राहुल गांधी के कांग्रेस में सक्रिय होने के साथ-साथ युवाओं का रुझान पार्टी की ओर नजर आ रहा था, लेकिन जैसे-जैसे राहुल ने राजनीति में समय बिताया , उनकी राजनीतिक परिपक्व होती नजर नहीं आईं। इसके बाद वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में राहुल की साख लगातार खराब होती चली गई । इसके कुछ कारण रहे। असल में राहुल कभी पीएम मोदी पर तंज कसते हुए चौकीदार चोर है, तो कभी पुलवामा हमले और भारतीय वायुसेना की एयरस्ट्राइक को लेकर, अटपटे बयान दे बैठे। इतना ही नहीं सार्वजनिक मंचों से अपने भाषणों में कुछ ऐसे बयान भी राहुल की छवि पर भारे पड़े , जो उनकी कमजोर राजनीतिक समझ को दर्शाने लगे थे।
उनके इन बयानों और कमजोर नजर आती नेतृत्व क्षमता के चलते राहुल को 14 और 19 के लोकसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि कुछ विधानसभा चुनावों में राहुल के नेतृत्व में प्रदर्शन मिश्रित नजर आया। असल में कांग्रेस इन दौरान पार्टी के नेतृत्व और पार्टी के भीतर पनप चुके असंतोष से जूझ रही थी। राहुल गांधी इस संकट को अपने नेतृत्व से सुलझा नहीं पाए। हालात ऐसे हो गए कि उस दौरान पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ने लगा। हालात इतने खराब नजर आने लगे कि विरोधी सुरों ने एकजुट होकर गांधी परिवार पर भी निशाना साधना शुरू कर दिया था। इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। लोकसभा चुनावों में हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया, हालांकि पार्टी में उनकी भूमिका बनी रही।
भारत जोड़ो यात्रा रहा अहम पड़ाव
बहरहाल , विपक्ष का चेहरा बनने के बाद राहुल गांधी ने कई मुद्दों को उठाया , लेकिन बहुत दमदार तरीके से अपनी बात को रखने से वह हर बार चूकते नजर आए। इस दौरान कांग्रेस में उनके कई करीबी, राहुल को छोड़ गए। कुछ ने कांग्रेस में रहते हुए पार्टी को अपनी नाराजगी जाहिर कर दी। इसके बाद राहुल ने अकेले ही कांग्रेस को उठाने की जुगत लगाई और मोदी सरकार के खिलाफ भारत जोड़ो यात्रा पर निकले। 7 सितंबर 2022 से शुरू हुई इस यात्रा में उन्होंने कन्याकुमारी से लेकर जम्मू-कश्मीर तक लगभग 3,570 किलोमीटर की दूरी तय की। राहुल गांधी और उनके सहयोगी 12 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों से होते हुए पैदल चले।
उन्होंने इस यात्रा का उद्देश्य देश से नफरत की राजनीति को दूर करना और लोगों को अपने विचारों से जोड़ना बताया। उस दौरान देश में मोदी सरकार के खिलाफ एक माहौल नजर आने लगा था। मसलन, दिसंबर 2022 में कांग्रेस ने हिमाचल में दमदार प्रदर्शन किया और भाजपा से सत्ता छीन ली। इसी क्रम में मई 2023 में कांग्रेस ने कर्नाटक में भी उम्दा प्रदर्शन किया । भाजपा को करारी हार देते हुए कांग्रेस ने सिद्दरमैया को मुख्यमंत्री बनाया। वहीं तेलंगाना में भी कांग्रेस ने दमदार प्रदर्शन किया। इन राज्यों में हुई जीत को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के असर के रूप में देखा गया।
हरियाणा की हार ले डूबी
भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी की व्यक्तिगत छवि को मज़बूत किया और कांग्रेस को कर्नाटक, हिमाचल और तेलंगाना जैसे राज्यों में सत्ता दिलाने में मदद की। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को अभी भी चुनौतियाँ हैं, लेकिन इस यात्रा ने कांग्रेस को एक नई ऊर्जा दी थी। जिससे वह कई राज्यों में भाजपा को कड़ी टक्कर दे पा रही थी , लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनावों में मिली हार ने एक बार फिर से कांग्रेस को करार झटका लगा । इसके बाद महाराष्ट्र में भी कांग्रेस का प्रदर्शन गिर गया ।
आलोचक मानते हैं अपरिपक्व नेता
राहुल गांधी अक्सर अपनी राजनीति में गरीबी, रोजगार, किसान और युवाओं के मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं। भाजपा पर सीधा हमला बोलना, संसद में मुखर रहना और हालिया दौर में भारत जोड़ो यात्रा जैसे अभियानों से उन्होंने फिर से सक्रियता दिखाई। उनके समर्थक मानते हैं कि राहुल गांधी एक सरल और ईमानदार नेता हैं, जो नई राजनीति का चेहरा बन सकते हैं। वहीं, उनके आलोचक उन्हें राजनीतिक रूप से अपरिपक्व बताते हैं। राहुल गांधी का सफर लगातार आलोचनाओं, आत्ममंथन और प्रयोगों से गुजरता रहा है। आज भी वह कांग्रेस के प्रमुख चेहरे और देश की सबसे पुरानी पार्टी के सबसे चर्चित नेता बने हुए हैं। Rahul Gandhi 2025 | rahul gandhi america visit | Rahul Gandhi Bihar Rally. Congress