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BCI भी Sharmistha Panoli के साथ, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया

शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन मिश्रा ने की आलोचना। बोले- यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। जानें पूरा मामला।

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Dhiraj Dhillon
Advocate Manan Kumar Mishra- Sharmistha Panoly

Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के चेयरमैन और राज्यसभा सांसद मनन कुमार मिश्रा ने इंस्टाग्राम इनफ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया है। उन्होंने शर्मिष्ठा की तत्काल रिहाई और निष्पक्ष सुनवाई की मांग की है। 22 वर्षीय शर्मिष्ठा पुणे के विधि विश्वविद्यालय में कानून की छात्रा हैं और कोलकाता की रहने वाली हैं। उन्हें शुक्रवार रात गुरुग्राम से कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार किया था। शनिवार को अदालत में पेशी के बाद कोर्ट ने उन्हें 13 जून तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

“यह न्याय व्यवस्था की असफलता है” - मनन मिश्रा

मनन मिश्रा ने कहा कि, “एक युवा छात्रा को सिर्फ शब्दों की गलत अभिव्यक्ति के लिए बलि का बकरा बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है। वहीं, सरकार प्रायोजित घटनाओं पर कोई कार्रवाई नहीं होती। यह दोहरे मापदंड का जीता-जागता उदाहरण है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि जिस सरकार ने पहले ऑपरेशन सिंदूर का विरोध किया था, वही अब एक छात्रा की आवाज़ दबा रही है।

बंगाल सरकार से निष्पक्षता की मांग

मनन मिश्रा ने कोलकाता पुलिस और राज्य सरकार से आग्रह किया कि वे चुनिंदा आवाजों को निशाना बनाना बंद करें और कानून का समान रूप से पालन सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि एक लोकतांत्रिक समाज में अभिव्यक्ति की आजादी और निष्पक्ष न्याय सर्वोपरि होना चाहिए।

क्यों हुई शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी?

शर्मिष्ठा पनोली पर सांप्रदायिक टिप्पणियों से युक्त वीडियो पोस्ट करने का आरोप है, जिसमें उन्होंने बॉलीवुड की चुप्पी पर सवाल उठाए थे। वीडियो में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जिक्र किया गया था, जो हाल ही में आतंकवाद के खिलाफ भारतीय सुरक्षाबलों की कार्रवाई रही है। पुलिस ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153A, 295A, 504 और 505 के तहत मामला दर्ज किया है। इन धाराओं में धार्मिक भावनाएं आहत करना, शांति भंग करने के लिए उकसाना, और समूहों के बीच नफरत फैलाना शामिल है।

अभिव्यक्ति या अपराध?

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शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी ने सोशल मीडिया और कानूनी हलकों में एक नई बहस छेड़ दी है- क्या यह मामला अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में आता है या कानून के उल्लंघन का? इस पर आगामी सुनवाई में स्थिति और स्पष्ट हो सकती है।

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