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क्यों ट्रेंड में है : ‘3 Idiots’ वाले फुंसुक वांगडू की रियल लाइफ स्टोरी और उनका भूख हड़ताल अभियान चर्चा में | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । लद्दाख की बर्फीली वादियों से निकलकर वैश्विक मंच पर पर्यावरण और शिक्षा सुधार की अलख जगाने वाले सोनम वांगचुक आज फिर सुर्खियों में हैं। हाल ही में लद्दाख में राज्यहुड और संविधान की छठी अनुसूची की मांग को लेकर भड़की हिंसा में चार लोगों की मौत और दर्जनों घायलों के बीच वांगचुक का नाम फिर से उभरा है।
24 सितंबर को उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो संदेश जारी कर युवाओं से शांति की अपील की। हालांकि, गृह मंत्रालय ने लद्दाख आंदोलन में जो कुछ भी हिंसा हुई इसके पीछे सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया है। साथ ही इनके एक एनजीओ की CBI जांच भी शुरू कर दी गई है।
VERY SAD EVENTS IN LEH
— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) September 24, 2025
My message of peaceful path failed today. I appeal to youth to please stop this nonsense. This only damages our cause.#LadakhAnshanpic.twitter.com/CzTNHoUkoC
हालांकि जब मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाया था तब सोनम वांगचुक ने इसका स्वागत किया था। यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
आइए इस न्यूज एक्सप्लेनर में जानते हैं कि कैसे एक साधारण इंजीनियर ने आइस स्टूपा जैसी क्रांतिकारी तकनीकें गढ़ीं और लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी को बचाने के लिए अनशन तक चले गए साथ ही तमाम आरोपों से भी घिरे रहे?
बर्फीले पहाड़ों की गोद में एक संघर्षपूर्ण शुरुआत
फिल्म '3 इडियट्स' में आमिर खान का किरदार 'फुंगसुक वांगडू' असल ज़िंदगी के इंजीनियर और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक से प्रेरित था। सोनम वांगचुक ने लद्दाख में शिक्षा प्रणाली को बदलने, नवाचार को बढ़ावा देने और छात्रों को रटने की बजाय व्यावहारिक ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करने के लिए काम किया है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और पानी के लिए 'आइस स्तूप' जैसी तकनीक भी विकसित की है।
सोनम वांगचुक का जन्म 1 सितंबर 1966 को लद्दाख के लेह जिले के अल्ची गांव के निकट एक छोटे से परिवार में हुआ। उनके पिता सोनम वांगयाल एक किसान थे, जबकि मां त्सेरिंग वांगमो ने घर पर ही बच्चों को मां की भाषा में प्रारंभिक शिक्षा दी। उस समय लद्दाख के दूरस्थ गांवों में स्कूलों की कमी थी, इसलिए वांगचुक को नौ वर्ष की आयु तक औपचारिक शिक्षा से वंचित रहना पड़ा। उनकी मां ने ही उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया।
नौ साल की उम्र में वे पहली बार स्कूल पहुंचे, जहां लंबी पैदल यात्रा और कठोर मौसम ने उनके चरित्र को निखारा। यह प्रारंभिक संघर्ष ही बाद में उनकी पर्यावरण जागरूकता का आधार बना, क्योंकि उन्होंने जल्दी ही महसूस किया कि हिमालयी क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी शिक्षा और विकास के अभाव में कैसे नष्ट हो रही है।
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इंजीनियरिंग से मिट्टी की वास्तुकला तक का सफर
वांगचुक की शिक्षा का सफर साधारण नहीं था। उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री स्वयं कमाकर हासिल की। 1983 में वे जम्मू-कश्मीर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, श्रीनगर में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लिए प्रवेशित हुए और 1987 में बी.टेक की उपाधि प्राप्त की। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने छात्रवृत्तियों और पार्ट-टाइम काम से पढ़ाई पूरी की। लेकिन इंजीनियरिंग के बाद उनका रुझान पारंपरिक शिक्षा से हटकर स्थानीय समस्याओं की ओर मुड़ गया। 2011 में उन्होंने फ्रांस के ग्रेनोबल स्थित क्रेटर शैक्षिक वास्तुकला स्कूल में दो वर्षीय उच्च अध्ययन किया, जहां उन्होंने मिट्टी-आधारित वास्तुकला पर विशेषज्ञता हासिल की। यह शिक्षा उनके नवाचारों का आधार बनी, जैसे कि पैसिव सोलर मड बिल्डिंग्स, जो ऊर्जा संरक्षण पर आधारित हैं।
शिक्षा सुधार से जल संरक्षण तक
ग्रेजुएशन के तुरंत बाद, 1988 में वांगचुक ने अपने भाई और पांच साथियों के साथ स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख की स्थापना की। यह संस्था लद्दाख के सरकारी स्कूलों की खराब स्थिति सुधारने पर केंद्रित थी, जहां पास प्रतिशत मात्र 25 फीसदी था।
स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख ने छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा दी, सोलर एनर्जी पर आधारित कैंपस बनाया और जीवाश्म ईंधन का उपयोग समाप्त किया। 1994 में उन्होंने ऑपरेशन न्यू होप लॉन्च किया, जो सरकार और गांवों के सहयोग से स्कूल सुधार पर था। 1993 से 2005 तक उन्होंने लद्दाख का एकमात्र प्रिंट मैगजीन 'लडाग्स मेलोंग' संपादित किया।
वांगचुक के नवाचार पर्यावरण-केंद्रित हैं। 2013 में उन्होंने 'आइस स्टूपा' तकनीक विकसित की – एक कृत्रिम हिमनद जो सर्दियों के पानी को शंकु-आकार के बर्फ के ढेर में संग्रहीत करता है, जिससे वसंत में किसानों को पानी मिलता है। यह तकनीक लद्दाख, सिक्किम और नेपाल में लागू हुई। 2016 में उन्होंने यूरोप के स्विस आल्प्स में पहला आइस स्टूपा बनाया।
2021 में भारतीय सेना के लिए सोलर-पावर्ड टेंट डिजाइन किए, जो सैनिकों को गर्मी प्रदान करते हैं। इसके अलावा, उन्होंने हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स की स्थापना 2015 में की, जो वैकल्पिक शिक्षा और विकास पर फोकस करता है। 2016 में फार्मस्टेज लद्दाख शुरू किया, जो पर्यटकों को स्थानीय परिवारों के साथ रहने का अवसर देता है।
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ANSHAN STARTS AGAIN IN LADAKH
— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) September 10, 2025
Day 1
One year after Leh- Delhi Padyatra & 16 day fast... talks between Ladakh & Centre fail miserably again.
Today after a huge inter faith prayer meeting at the Martyrs Park in Leh 15 people started a 35 day fast. Seven out of them are former… pic.twitter.com/Isnr8Qf6Ix
आंदोलन: पर्यावरण और सांस्कृतिक संरक्षण की लड़ाई
वांगचुक के आंदोलन लद्दाख की पहचान बचाने पर केंद्रित हैं। 2013 में उन्होंने न्यू लद्दाख मूवमेंट लॉन्च किया, जो टिकाऊ शिक्षा, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर जोर देता है। 2020 में भारत-चीन सीमा विवाद के दौरान उन्होंने चीनी उत्पादों का बहिष्कार अपील की, जो मीडिया में छाई रही।
2023 में खारदुंगला दर्रे पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के खिलाफ अनशन शुरू किया, लेकिन प्रशासन ने रोका। मार्च 2024 में उन्होंने लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत संरक्षण देने की मांग पर 21-दिवसीय जलवायु अनशन किया। सितंबर 2024 में दिल्ली मार्च के दौरान सिंघु बॉर्डर पर हिरासत में लिया गया, लेकिन 2 अक्टूबर को रिहा हुए।
2025 में संघर्ष चरम पर पहुंचा। 10 सितंबर को उन्होंने अनशन शुरू किया, जो 25 सितंबर तक चला। लद्दाख में राज्यहुड, स्थानीय लोकतंत्र और खनन-उद्योग से सुरक्षा की मांगें हिंसा में बदल गईं – चार मौतें, 80 घायल। वांगचुक ने 'जनरेशन जेड प्रोटेस्ट' का आह्वान किया, जिसे केंद्र ने हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। सीबीआई ने हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स पर विदेशी फंडिंग उल्लंघन की जांच शुरू की।
24 सितंबर को वांगचुक ने अनशन समाप्त किया, इसे 'लद्दाख का सबसे दुखद दिन' बताया। उनके एक्स पोस्ट्स में शांति की अपीलें हैं, जैसे 24 सितंबर का वीडियो— "मेरा शांतिपूर्ण संदेश विफल हो गया। युवाओं से अपील है कि यह बकवास बंद करें।"
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सोनम वांगचुक ने NDTV से कहा- धारा 370 हटने से लद्दाख को मिला हक
9 अक्टूबर 2019 से शिक्षक और समाजसेवी सोनम वांगचुक ने धारा 370 हटाए जाने और लद्दाख को केन्द्रशासित प्रदेश बनाए जाने का स्वागत किया था। लेकिन, साथ ही उन्होंने NDTV से ही बातचीत में आगाह भी किया कि विकास के नाम पर पर्यावरण को नुक़सान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए।
सोनम वांगचुक ने अपने एक्स हैंडल पर 5 अगस्त 2019 को लिखा है धन्यवाद प्रधानमंत्री लद्दाख धन्यवाद लद्दाख के लंबे समय से चले आ रहे सपने को पूरा करने के लिए। ठीक 30 साल पहले अगस्त 1989 में लद्दाखी नेताओं ने केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा पाने के लिए आंदोलन शुरू किया था। इस लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में मदद करने वाले सभी लोगों का धन्यवाद!
THANK YOU PRIME MINISTER
— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) August 5, 2019
Ladakh thanks @narendramodi@PMOIndia
for fulfilling Ladakh's longstanding dream.
It was exactly 30 years ago in August 1989 that Ladakhi leaders launched a movement for UT status. Thank you all who helped in this democratic decentralization! 🙏🙏🙏 pic.twitter.com/X7pmJ5zZin
सोनम वांगचुक ने अपने एक्स हैंडल पर 8 अगस्त 2019 में लिखा है कि पाकिस्तान का बाल्टिस्तान भी लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में शामिल होना चाहता है...
EVEN BALTISTAN IN PAK WANTS TO JOIN LADAKH UT ...
— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) August 8, 2019
Meanwhile some in Kargil seem confused. I request @PMOIndia@narendramodi ji to respect their voice n give them the option to join Jammu Kashmir. Only then wl the voice of those who r for Ladakh UT come outhttps://t.co/bh8JrCxZS1
इस बीच, कारगिल में कुछ लोग असमंजस में हैं। मैं @PMOIndia से अनुरोध करता हूं कि वे उनकी आवाज़ का सम्मान करें और उन्हें जम्मू-कश्मीर में शामिल होने का विकल्प दें। तभी लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के समर्थकों की आवाज़ सामने आएगी।
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उपलब्धियां और सम्मान: एशिया का नोबेल से हिमालय का तकनीकी योद्धा
वांगचुक की उपलब्धियां वैश्विक हैं। स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख कैंपस को 2016 में इंटरनेशनल टेरा अवार्ड मिला। आइस स्टूपा ने जल संकट से लाखों किसानों को राहत दी।
1996 में गवर्नर मेडल: फॉर एजुकेशनल रिफॉर्म (जम्मू-कश्मीर)
2001 में मैन ऑफ द ईयर (द वीक)
2004 में ग्रीन टीचर अवार्ड (सैंक्चुअरी एशिया)
2017 में ग्लोबल एजुकेशन अवार्ड
2018 में रामोन मैगसेसे अवार्ड (एशिया का नोबेल, प्रकृति-संस्कृति-शिक्षा के लिए)
2018 में ऑनरेरी डी. लिट (सिम्बायोसिस इंटरनेशनल)
2018 में इमिनेंट टेक्नोलॉजिस्ट ऑफ हिमालयन रीजन (आईआईटी मंडी)
2022 में डॉ. पॉलोस मार ग्रेगोरियस अवार्ड: ये सम्मान उनके कार्यों की मान्यता हैं, लेकिन वांगचुक कहते हैं कि असली उपलब्धि लद्दाख की युवा पीढ़ी है।
ये वांगचुक के जीवन की जन्म से लेकर संघर्षों तक की टाइमलान
1966: अल्ची, लद्दाख में जन्म।
1975: नौ वर्ष की आयु में पहली बार स्कूल प्रवेश।
1987: एनआईटी श्रीनगर से बी.टेक (मैकेनिकल इंजीनियरिंग)।
1988: स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख की स्थापना।
1993-2005: 'लडाग्स मेलोंग' मैगजीन संपादन।
1994: ऑपरेशन न्यू होप लॉन्च।
1996: गवर्नर मेडल।
2001: मैन ऑफ द ईयर अवार्ड; हिल काउंसिल में शिक्षा सलाहकार।
2002-2005: लद्दाख वॉलंटरी नेटवर्क के महासचिव।
2004: लद्दाख 2025 विजन डॉक्यूमेंट ड्राफ्टिंग।
2005: राष्ट्रीय प्राथमिक शिक्षा परिषद सदस्य।
2007-2010: एमएस (डेनिश एनजीओ) के लिए शिक्षा सलाहकार (नेपाल)।
2011: फ्रांस में अर्थेन आर्किटेक्चर अध्ययन।
2013: आइस स्टूपा इन्वेंशन, न्यू लद्दाख मूवमेंट, जेके स्टेट बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन सदस्य।
2014: जेके स्टेट एजुकेशन पॉलिसी एक्सपर्ट पैनल।
2015: हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स की शुरुआत।
2016: फार्मस्टेज लद्दाख, इंटरनेशनल टेरा अवार्ड, यूरोप में पहला आइस स्टूपा।
2020: चीनी उत्पाद बहिष्कार अपील।
2021: भारतीय सेना के लिए सोलर टेंट्स।
2023: खारदुंगला पर अनशन (जलवायु परिवर्तन के खिलाफ)।
2024: 21-दिवसीय जलवायु अनशन; दिल्ली मार्च और हिरासत (30 सितंबर-2 अक्टूबर)।
2025: 10 सितंबर से अनशन, हिंसा (चार मौतें), 24 सितंबर को अनशन समाप्त। सीबीआई जांच।
सोनम वांगचुक की कहानी हिमालय के संकट की प्रतिबिंब है – जलवायु परिवर्तन, सांस्कृतिक क्षरण और विकास के नाम पर विनाश। 3 इडियट्स फिल्म के फुंसुख वांगड़ू के प्रेरक के रूप में प्रसिद्धि पाने वाले यह इंजीनियर आज लद्दाख के भविष्य के लिए लड़ रहे हैं। उनके अनशन ने केंद्र को वार्ता के लिए मजबूर किया, लेकिन हिंसा ने सवाल उठाए: क्या लद्दाख को संरक्षण मिलेगा? वांगचुक की अपील स्पष्ट है – शांति और संवाद। जैसे उनके एक पोस्ट में कहा, "लद्दाख न केवल हमारा है, बल्कि मानवता और ग्रह का नुकसान होगा।"
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