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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः उत्तराखंड से निकलकर हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से होकर गुजरने वाली यमुना नदी उत्तर भारत में लगभग 1,376 किलोमीटर तक फैली हुई है। यह भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है। न केवल अपने आकार के कारण बल्कि अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रासंगिकता के कारण भी।
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सूर्य देव की पुत्री और यमराज की बहन हैं यमुना देवी
नदी की अपनी एक गौरवगाथा है। यमुना नदी का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, जिसमें ऋग्वेद, महाभारत और पुराणों में इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बताया गया है। हिंदू मान्यता के अनुसार यमुना देवी सूर्य देव की पुत्री और यमराज की बहन हैं, इसलिए इसे मोक्षदायिनी नदी भी माना जाता है। इसने भारतीय इतिहास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2500 ईसा पूर्व में जब सिंधु घाटी सभ्यता फल-फूल रही थी तब यमुना के तट पर हड़प्पा के कुछ हिस्से फल-फूल रहे थे।
लेकिन यह यहीं नहीं रुका। सदियों से यमुना नदी के किनारे विभिन्न राजवंश और राज्य फले-फूले। इनमें मौर्य साम्राज्य, कुषाण साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य और बाद में मुगल साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी शामिल थे। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य के मौर्य साम्राज्य ने गंगा और यमुना नदियों के संगम के पास पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) में अपनी राजधानी स्थापित की। बाद में पहली और दूसरी शताब्दी के दौरान कुषाण साम्राज्य ने इसका अनुसरण किया, जो मध्य एशिया से उत्पन्न हुआ था। मुगल साम्राज्य में शाहजहां ने दिल्ली की यमुना के किनारे लालकिले का निर्माण कराया था।
गर्मी में हो जाता है पानी का अकाल, बारिश के दौरान ये तबाही
दिल्ली के परिपेक्ष्य में देखें तो जब गर्मी होती है तो नदी में पानी का अकाल हो जाता है वहीं बारिश के दौरान ये तबाही मचा देती है। यमुना की बदहाली ब्रिटिश शासन के दौरान (1857-1947) शुरू हुई। अंग्रेजों ने औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दिया, जिससे यमुना के जल में प्रदूषण बढ़ने लगा। दिल्ली में बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण नदी के किनारों पर अतिक्रमण शुरू हुआ, जिससे इसकी प्राकृतिक धारा बाधित होने लगी। आज दिल्ली में यमुना नदी की स्थिति भयावह हो चुकी है। दिल्ली में यमुना का प्रवाह कुल 2 फीसदी ही है, लेकिन इसमें तकरीबन 90 फीसदी प्रदूषण है। इसका जल काला और बदबूदार हो गया है, और कई जगहों पर झाग की मोटी परत दिखाई देती है। यमुना में ऑक्सीजन स्तर खतरनाक रूप से कम हो गया है, जिसके कारण मछलियां और अन्य जलीय जीव बड़ी संख्या में मर रहे हैं। दिल्ली के लोग नदी के जल को छूने से भी कतराते हैं।
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ओखला बैराज तक 22 किलोमीटर का हिस्सा सबसे अधिक प्रदूषित
राजधानी में यमुना का वजीराबाद बैराज से ओखला बैराज तक 22 किलोमीटर का हिस्सा सबसे अधिक प्रदूषित है। इसी छोटे से हिस्से में 90 फीसदी से अधिक गंदगी और अपशिष्ट नदी में छोड़ा जाता है। हालांकि नदी की सेहत को दुरुस्त करने का वायदा बीजेपी के साथ कांग्रेस और आप के अरविंद केजरीवाल ने भी किया। जब भी चुनाव आते हैं राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में जिक्र होता है कि वो इसे कैसे दुरुस्त करेंगे। लेकिन इसकी बदहाली दिन ब दिन बढ़ती जा रही है।
हरियाणा तय करता है यमुना के पानी का फ्लो
लेकिन सबसे बड़ी चिंता पानी के फ्लो की है। कम पानी वाले मौसम में पानी की उपलब्धता बहुत अनिश्चित होती है, क्योंकि पेयजल आपूर्ति हरियाणा द्वारा छोड़े जाने वाले पानी पर निर्भर करती है। जल बंटवारे के समझौतों में अक्सर पारदर्शिता की कमी होती है। हरियाणा से सीमित मात्रा में पानी छोड़े जाने के कारण दिल्ली को नियमित रूप से पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। जबकि बारिश के दौरान हरियाणा अपना अतिरिक्त पानी दिल्ली की तरफ धकेल देता है, जिससे यमुना ओवर फ्लो होने लग जाती है। यमुना दिल्ली के लिए पेयजल का एक प्रमुख स्रोत है। इसका अधिकांश पानी हरियाणा से आता है। खास तौर पर वजीराबाद बैराज से।
प्रदूषण के लिए दिल्ली के साथ दूसरे भी जिम्मेदार
यमुना के प्रदूषकों में अनुपचारित सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और ठोस अपशिष्ट शामिल हैं। नदी में अनुपचारित पानी दिल्ली और अपस्ट्रीम दोनों राज्यों से आता है। नजफगढ़ और शाहदरा नाले जैसे कुछ नाले दिल्ली में प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। हालांकि एनजीटी ने प्रदूषण के स्तर की जांच के लिए यमुना निगरानी समिति का गठन किया था। लेकिन इसे सीमित सफलता मिली है। राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान ने अपस्ट्रीम जल रिलीज के बेहतर विनियमन और सख्त प्रदूषण नियंत्रण उपायों की आवश्यकता पर जोर दिया।
आपस में उलझे रह जाते हैं दिल्ली के सरकारी महकमे
दिल्ली की एक समस्या संस्थागत अक्षमताएं भी हैं। नगर निगम, राज्य सरकारें और केंद्रीय प्राधिकरण जैसी कई एजेंसियाँ प्रभावी ढंग से समन्वय करने में विफल रहती हैं। जब प्रदूषण नियंत्रण उपायों को अनिवार्य किया जाता है, तब भी संसाधनों या राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण उन्हें खराब तरीके से लागू किया जाता है। लंबे समय तक चलने वाले अदालती मामले और विवाद प्रभावी उपायों के कार्यान्वयन में देरी करते हैं। एनजीटी, दिल्ली जल बोर्ड और हरियाणा के जल प्राधिकरण जैसी एजेंसियों के क्षेत्राधिकारों का ओवरलैप होना भ्रम पैदा करता है। नागरिक नदी में अपशिष्ट डालकर या इसे सीवर के रूप में इस्तेमाल करके प्रदूषण में योगदान देते हैं।
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यमुना को दुरुस्त करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
इस मुद्दे पर राजनीतिक दोषारोपण के बजाय राज्यों और एजेंसियों के बीच सहयोग की आवश्यकता है। निष्पक्ष जल बंटवारे और प्रदूषण प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शी व्यवस्थाएं लागू की जानी चाहिए। सख्त प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करने के तंत्रों को सशक्त बनाने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना होगा कि अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों को नदी में छोड़े जाने से पहले संसाधित किया जाए।
दिल्ली की नई सीएम रेखा गुप्ता ने बनाया प्लान
फिलहाल बीजेपी की नई दिल्ली सरकार ने नदी को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से 500 करोड़ रुपये की पहल की घोषणा की है। इस योजना में क्लास 4 विकेंद्रीकृत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, ड्रेन-टैपिंग प्रोजेक्ट और उन्नत प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना शामिल है। इस महत्वाकांक्षी प्रस्ताव के तहत, सरकार पूरे शहर में 40 विकेंद्रीकृत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाने की योजना बना रही है। ये सामुदायिक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट केंद्रीय स्थानों पर स्थित हैं ताकि केंद्रीयकृत जल निकासी प्रणाली से जुड़ने से पहले अपशिष्ट जल का उपचार किया जा सके। बड़े नालों से निकलने वाले अपशिष्ट जल को नदी में सीधे प्रवाहित होने से पहले रोकने के लिए 250 करोड़ रुपये का अतिरिक्त फंड आवंटित किया गया है। बीजेपी सरकार की कोशिश क्या रंग लाती है इसका पता दो से तीन साल बाद ही लग सकेगा।
2017 से 21 के दौरान यमुना पर 6,500 करोड़ रुपये खर्च हुए
1993 में शुरू किए गए यमुना एक्शन प्लान के तहत पिछले कुछ सालों में इसी समस्या को रोकने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाने में भारी निवेश किया गया है। इस योजना के तहत अब तक दिल्ली में यमुना की सफाई पर ही करीब 8 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। दिल्ली के पर्यावरण विभाग के मार्च 2023 के नोट के मुताबिक 2017 से 2021 के बीच यमुना पर 65 सौ करोड़ रुपये खर्च किए गए। इसके अतिरिक्त नमामि गंगे प्रोजेक्ट के जरिये भी यमुना की सेहत सुधारने पर पैसा खर्च किया गया। लेकिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
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