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Supreme Court की सख्त टिप्पणी, -"चुनावों में क्षेत्रवाद सांप्रदायिकता जितना ही खतरनाक"

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों में क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने को सांप्रदायिकता जितना ही खतरनाक बताया है। अदालत ने AIMIM के पंजीकरण रद्द करने की याचिका खारिज करते हुए कहा कि केवल एक पार्टी को निशाना नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि कई दल ऐसी राजनीति करते हैं।

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Jyoti Yadav
SUPREME COURT 19 august 2025

Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क | सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 15 जुलाई को चुनाव और राजनीति पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि चुनावी राजनीति में क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना, देश की एकता और अखंडता के लिए सांप्रदायिक राजनीति जितना ही खतरनाक है। अदालत ने इस प्रवृत्ति पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि कई राजनीतिक दल चुनावों में वोट पाने के लिए क्षेत्रीय भावनाएं भड़काते हैं, जो राष्ट्रहित के खिलाफ है।

AIMIM पंजीकरण रद्द करने की मांग 

टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दी, जिसमेंAIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) का पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए साफ किया कि वह किसी एक दल को चुनिंदा रूप से निशाना नहीं बना सकती, क्योंकि ऐसी राजनीति अन्य कई दलों द्वारा भी की जाती है।

“क्या यह देश की अखंडता के खिलाफ नहीं?” 

पीठ ने सवाल उठाया, “क्या यह पूछना गलत होगा कि चुनावों में क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना भारत की अखंडता के खिलाफ नहीं है?” अदालत ने कहा कि इस तरह की राजनीति न केवल संविधान की भावना को ठेस पहुंचाती है, बल्कि राष्ट्र की साझा पहचान को भी नुकसान पहुंचाती है।

AIMIM को मिली राहत, कोर्ट की अहम सलाह

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने AIMIM के संविधान का अध्ययन करने के बाद कहा कि उसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन करता हो। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई धार्मिक या सांस्कृतिक कानून संविधान द्वारा संरक्षित है, तो किसी भी राजनीतिक दल को उसका समर्थन करने का अधिकार है। साथ ही, अदालत ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह किसी एक दल पर केंद्रित याचिका की बजाय, चुनाव सुधारों से जुड़े बड़े मुद्दों पर एक व्यापक और तटस्थ याचिका दाखिल करे। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी क्षेत्रीय और सांप्रदायिक भावनाओं के इस्तेमाल से जुड़ी राजनीति को लेकर एक स्पष्ट और मजबूत संकेत मानी जा रही है। यह फैसला इस बात पर भी जोर देता है कि चुनावी राजनीति में राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा सर्वोपरि है। 

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