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तरनतारन Fake Encounter Case: 32 साल बाद मिला न्याय, पांच पूर्व पुलिसकर्मियों को उम्रकैद

पंजाब के तरनतारन में 1993 में हुए फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने सोमवार को पंजाब पुलिस के 5 पूर्व अधिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इन पुलिसकर्मियों ने रानी वल्लाह गांव के सात युवकों को अवैध हिरासत में लेकर हत्या कर दी थी ।

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Ranjana Sharma
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कोर्ट की डीएम को चेतावनी Photograph: (YBN)

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पंजाब, वाईबीएन डेस्क: पंजाब के तरनतारन में 1993 में हुए फर्जी मुठभेड़ मामले पर बड़ी कार्रवाई हुई है। सीबीआई की मोहाली स्थित विशेष अदालत ने सोमवार को इस मामले में दोषी पाए गए पंजाब पुलिस के पांच पूर्व अधिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इनमें पूर्व एसएसपी भूपिंदरजीत सिंह, डीएसपी दविंदर सिंह, इंस्पेक्टर सूबा सिंह, एएसआई गुलबर्ग सिंह और एएसआई रघुबीर सिंह शामिल हैं। सभी दोषी अधिकारी अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला 1993 में तरनतारन जिले में हुई दो कथित मुठभेड़ों से जुड़ा है, जिनमें एक ही गांव रानी वल्लाह के सात युवकों को झूठे मुठभेड़ों में मारने का आरोप है। पीड़ित परिवारों के वकील सरबजीत सिंह वेरका के मुताबिक, युवकों को पुलिस ने जबरन उनके घरों से उठाया, प्रताड़ित किया और फिर फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया। शवों को अज्ञात बताकर लावारिस के रूप में अंतिम संस्कार कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद CBI जांच

1996 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब में पुलिस की ओर से बड़े पैमाने पर किए गए कथित फर्जी एनकाउंटर और लावारिस शवों के अंतिम संस्कार की जांच के आदेश दिए थे। इसके बाद 1999 में सीबीआई ने शिंदर सिंह की पत्नी नरिंदर कौर के बयान पर मामला दर्ज किया।

कैसे हुआ खुलासा?

सीबीआई ने जांच में पाया कि पुलिस ने झूठी FIR दर्ज कर फर्जी मुठभेड़ का पूरा ड्रामा रचा। शवों के पास से बरामद दिखाए गए हथियारों और घटनास्थल से मिले कारतूसों में कोई मेल नहीं था। पीएम रिपोर्ट में भी यह स्पष्ट हुआ कि मारे गए युवकों को पहले बुरी तरह पीटा गया था।

वर्षों की देरी और गवाहों की मौत

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इस मामले की सुनवाई कई साल तक रुकी रही, जिसके चलते 5 आरोपियों और 36 गवाहों की मौत हो गई। बावजूद इसके 28 गवाहों के बयान और CBI की जांच के आधार पर अदालत ने दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई।

क्या कहा पीड़ित परिवारों ने?

अदालत के फैसले के बाद पीड़ित परिवारों ने कहा कि 32 साल बाद न्याय मिला है। यह फैसला न केवल न्यायिक प्रणाली की ताकत को दिखाता है, बल्कि उन लोगों के लिए भी एक संदेश है जो कानून का दुरुपयोग करते हैं।

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