नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क अमेरिका ने अवैध प्रवासियों पर एक्शन लेते हुए, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। अमेरिका ने अपने इमीग्रेशन कानून को सख्त को करते हुए अवैध नागरिकों को भले डिपोर्ट किया हो, लेकिन अमेरिकी सरकार के इस फैसले से सैकड़ों युवाओं का एक अच्छी जिंदगी का सपना जरूर टूटा है। लंबी दूरी तय करके, खतरनाक इलाकों को रास्ता बनाकर अपने सपनों को पूरा करने के लिए लोगों ने जोखिम उठाए, कुछ ने जिंदगी को बेहतर करने का ख्वाब देखा और घर से निकल गए। कइयों को तो मालूम भी नहीं कि वह अमेरिका पहुंच कैसे गए। कुछ फर्जी एजेंट का शिकार हुए। लेकिन सभी का अंत एक है, कि सपना सबका टूटा, धोखा सभी के साथ हुआ है। सपनों के पीछे भागते हुए अमेरिका पहुंचने की कहानियां लोगों की अलग-अलग है, आइए, उन्हीं में से कुछ कहानी आज आपको बताते हैं...!
हरविंदर सिंह की कहानी
होशियारपुर जिले के पंजाब के ताहली गांव के मूल निवासी हरविंदर सिंह ने मीडिया को अपनी कहानी सुनाते हुए, बताया कि उन्हें एजेंट ने अमेरिका में वर्क वीजा देने का वादा किया था, जिसके लिए उनसे 42 लाख रुपये भी लिए गए। आखिरी समय में एजेंट ने बताया कि वीजा नहीं मिला फिर उन्हें दिल्ली से कतर और फिर ब्राजील तक लगातार उड़ानों में बिठाया गया। टैक्सियों ने हमें कोलंबिया और आगे पनामा की शुरुआत तक पहुंचाया। यहीं से हमारा गधा मार्ग शुरू हुआ। जिसमें वह चावल के मामूली हिस्से पर जीवित रहे।
सुखपाल सिंह की कहानी
दारापुर गांव के सुखपाल सिंह ने बताया कि उन्हें समुद्री मार्ग से 15 घंटे की यात्रा करनी पड़ी और गहरी-दुर्गम घाटियों से घिरी पहाड़ियों से 40-45 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। उन्होंने कहा, "अगर कोई घायल हो जाता था, तो उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। 14 दिनों तक एक अंधेरी कोठरी में रखा गया था, और हमने कभी सूरज नहीं देखा।
जसपाल सिंह की कहानी
अमेरिका जाने की कहानी का संघर्षों और खतरनाक तो है ही लेकिन वापस आने की कहानी भी इससे कुछ कम नहीं। जसपाल सिंह ने दावा किया कि पूरी यात्रा के दौरान उनके हाथ-पैर बेड़ियों में जकड़े रहे और अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरने के बाद ही उन्हें खोला गया।अमेरिका पहुंचने की कहानी का जिक्र करते हुए जसपाल ने कहा, उन्हें एक ट्रैवल एजेंट ने भरोसा दिलाया था कि उन्हें कानूनी तरीके से अमेरिका भेजा जाएगा, जिसकी कीमत 30 लाख रुपये भी लिए।
कनुभाई पटेल की बेटी
निर्वासित लोगों में से एक कनुभाई पटेल की बेटी ने दावा किया कि वह एक महीने पहले अपने दोस्तों के साथ छुट्टियां मनाने यूरोप गई थी। गुजरात के मेहसाणा जिले के चंदन नगर-दभला गांव के निवासी पटेल ने कहा, "मुझे नहीं पता कि यूरोप पहुंचने के बाद उसने क्या योजना बनाई। आखिरी बार हमने उससे 14 जनवरी को बात की थी। हमें नहीं पता कि वह अमेरिका कैसे पहुंची।"
भारी कर्ज का सामना कर रहे अप्रवासियों ने की कार्रवाई की मांग
अप्रवासियों के परिवार के सदस्यों ने बताया कि, उन्होंने अमेरिका जाने के लिए भारी कर्ज लिया था, ताकि भविष्य उज्ज्वल हो, लेकिन अब उन्हें भारी कर्ज का सामना करना पड़ रहा है। अब वे उन एजेंटों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। वहीं कुलजिंदर कौर ने कहा, "हमारे पास जो कुछ भी था, उसे बेच दिया और एजेंट को भुगतान करने के लिए उच्च ब्याज पर पैसे उधार लिए। लेकिन एजेंट ने हमें धोखा दिया। अब, न केवल मेरे पति को निर्वासित कर दिया गया है, बल्कि हम पर भारी कर्ज भी है।" गुरप्रीत सिंह के परिवार ने उन्हें विदेश भेजने के लिए अपना घर गिरवी रख दिया और पैसे उधार लिए। जसविंदर सिंह के परिवार ने उन्हें विदेश भेजने के लिए 50 लाख रुपये खर्च किए, अब उन्हें उच्च ब्याज दरों पर लिए गए कर्ज का भुगतान करना है।
104 भारतीय को दिखाया बाहर का रास्ता
अमेरिकी सेना का एक विमान 104 भारतीयों को लेकर 5 फरवरी को पंजाब के अमृतसर पहुंचा। इनमें गुजरात के 33, हरियाणा के 34, पंजाब के 30, महाराष्ट्र के तीन, उत्तर प्रदेश-चंडीगढ़ के 2-2 लोग शामिल हैं। इनमें आठ से दस साल के कुछ बच्चे भी शामिल हैं।