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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सात साल पुराने उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारियों के निजी अस्पतालों में उपचार पर रोक लगा दी गई थी। हाईकोर्ट ने उस समय यह फैसला सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के उद्देश्य से दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा नीतिगत हस्तक्षेप ठीक नहीं
उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार के व्यापक प्रयास के तहत उपरोक्त निर्देश सहित कई निर्देश जारी किए थे। मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा है कि यह नीतिगत फैसला है और हाईकोर्ट नीतिगत फैसला कैसे दे सकता है, हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने इस आदेश के पीछे के मोटिव की सराहना भी की। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य बेहतर करने के उद्देश्य का हाईकोर्ट का इरादा सराहनीय है लेकिन अधिकारियों के उपचार के व्यक्तिगत विकल्प को सीमित नहीं किया जा सकता।
उपचार के विकल्प सीमित नहीं किए जा सकते
मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि इस तरह के निर्देश नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप हैं। नीतिगत हस्तक्षेप से कोर्ट को बचना चाहिए। उपचार के विकल्प को सीमित नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने उपचार के विकल्प सीमित करने के औचित्य पर भी सवाल किया। किसी व्यक्ति कहां उपचार करवाना है और कहां नहीं, ऐसा नीतिगत निर्णय हाईकोर्ट कैसे दे सकता है।
Supreme Court ने कहा, इंटरनेट की कीमतें निर्धारित करना कोर्ट का काम नहीं, याचिका खारिज