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Uttar Predesh: अधिकारियों को सुप्रीम राहत, अब निजी Hospital में भी करा सकेंगे इलाज

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सात साल पुराने उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारियों के निजी अस्पतालों में उपचार पर रोक लगा दी गई थी।

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Dhiraj Dhillon
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Supreme Court
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सात साल पुराने उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारियों के निजी अस्पतालों में उपचार पर रोक लगा दी गई थी। हाईकोर्ट ने उस समय यह फैसला सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के उद्देश्य से दिया था।  
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा नीतिगत हस्तक्षेप ठीक नहीं

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उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार के व्यापक प्रयास के तहत उपरोक्त निर्देश सहित कई निर्देश जारी किए थे। मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा है कि यह नीतिगत फैसला है और हाईकोर्ट नीतिगत फैसला कैसे दे सकता है, हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने इस आदेश के पीछे के मोटिव की सराह‌ना भी की। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य बेहतर करने के उद्देश्य का हाईकोर्ट का इरादा सराहनीय है लेकिन अधिकारियों के उपचार के व्यक्तिगत विकल्प को सीमित नहीं किया जा सकता।

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उपचार के विकल्प सीमित नहीं किए जा सकते

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मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि इस तरह के निर्देश नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप हैं। नीतिगत हस्तक्षेप से कोर्ट को बचना चाहिए। उपचार के विकल्प को सीमित नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने उपचार के विकल्प सीमित करने के औचित्य पर भी सवाल किया। किसी व्यक्ति कहां उपचार करवाना है और कहां नहीं, ऐसा नीतिगत निर्णय हाईकोर्ट कैसे दे सकता है।

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कहीं भी उपचार करा सकेंगे यूपी के अधिकारी

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बता दें कि 2018 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारियों को केवल सरकारी अस्पतालों में ही इलाज कराने की बात कही थी। हाईकोर्ट ने इसी के साथ यूपी के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में व्यवस्था सुधारने के लिए कई निर्देश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उक्त फैसले का खारिज कर दिया है। अब यूपी के सरकारी अधिकारी अपनी पसंद के मुताबिक कहीं भी उपचार करा सकेंगे।
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