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AkshayaNavami Photograph: (IANS)
नई दिल्ली। देवउठनी एकादशी से दो दिन पहले मनाई जाने वाली अक्षय नवमी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा और आंवला भोजन का विधान होता है। मान्यता है कि इस दिन पूजन करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि और संतानों की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। इसे आंवला नवमी या कूष्मांड नवमी भी कहा जाता है। अक्षय नवमी को सत्ययुग की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसे अत्यंत शुभ दिन कहा गया है।
आंवला नवमी या कूष्मांड नवमी
मालूम हो कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि गुरुवार को (30 अक्टूबर) सुबह 10 बजकर 6 मिनट तक रहेगी। इसके बाद नवमी तिथि लग जाएगी। इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं और जगद्धात्री पूजा भी है।
पद्म पुराण और स्कंद पुराण
आंवला नवमी का उल्लेख पद्म पुराण और स्कंद पुराण दोनों में मिलता है। इन पुराणों के अनुसार, आंवले का पेड़ भगवान विष्णु का रूप है और इसकी पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
अभिजीत मुहूर्त
द्रिक पंचांग के अनुसार, गुरुवार के दिन सूर्य देव तुला राशि में और चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 42 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय दोपहर 1 बजकर 28 मिनट से शुरू होकर 2 बजकर 51 मिनट तक रहेगा।
देवउठनी एकादशी
यह पर्व देवउठनी एकादशी से दो दिन पहले मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सतयुग की शुरुआत हुई थी, जिस वजह से इस दिन किए गए कार्यों का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। इस दिन आंवला खाना और उसके पेड़ की पूजा करने का महत्व है। साथ ही, मथुरा-वृंदावन में भी इस दिन कई लोग परिक्रमा लगाने के लिए जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है। व्यक्ति साल भर सुखी और संपन्न रहता है। वहीं, इस दिन आंवला खाने से रोगों से मुक्ति और आरोग्य प्राप्त होता है। महिलाएं विशेष रूप से इस व्रत को रखती हैं।
पूजन- विधि
इस दिन विधि-विधान से पूजा करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर साफ वस्त्र पहनें और घर या मंदिर (आप चाहें तो दोनों जगह पूजन कर सकती हैं, वैसे खासकर महिलाएं घर में पूजन कर मंदिर जाती हैं) में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।इसके बाद उन्हें पीले पुष्प, तुलसी दल, दीपक, धूप और नैवेद्य अर्पित करें। फिर, 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें। फिर, इसके बाद आंवला वृक्ष की पूजा करें। उन्हें कच्चे सूत से वृक्ष की परिक्रमा करें और जल अर्पित करें। इसके बाद हल्दी, रोली, फूल और दीपक से पूजन करें। गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन तथा दान दें। आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करें।
(इनपुट-आईएएनएस)
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