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वक्रतुण्ड संकष्टी व करवा चौथ पर ऐसा करना अत्यंत फलदायी, कार्तिक कृष्ण चतुर्थी पर बनेगा 'त्रिवेणी योग'!

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि इस बार शुक्रवार को पड़ रही है। इस दिन व्रत और पूजा का विशेष महत्व रहेगा, क्योंकि एक ही दिन मासिक कार्तिगाई, वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी और करवा चौथ का व्रत मनाया जाएगा।

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YBN News
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KartikKrishnaChaturt Photograph: (IANS)

नई दिल्ली। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि इस बार शुक्रवार को पड़ रही है। इस दिन व्रत और पूजा का विशेष महत्व रहेगा, क्योंकि एक ही दिन मासिक कार्तिगाई, वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी और करवा चौथ का व्रत मनाया जाएगा। यह संयोग कई वर्षों बाद बन रहा है, जिससे इसका धार्मिक महत्व और बढ़ गया है। महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला उपवास रखेंगी, वहीं गणेश भक्त वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी के अवसर परगणपति की पूजा कर मोक्ष और समृद्धि की कामना करेंगे। इस शुभ दिन पर चंद्र दर्शन और अर्घ्य देना भी अत्यंत फलदायी माना गया है। 


द्रिक पंचांग के अनुसार, शुक्रवार को सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा वृषभ राशि में रहेंगे। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 45 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 31 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह 10 बजकर 41 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 8 मिनट तक रहेगा।

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि शुक्रवार को है। इस दिन मासिक कार्तिगाई, वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी मनाने के साथ ही करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा। इस बार कार्तिक कृष्ण चतुर्थी पर यह योग बना रहा है। हालांकि, अमांत पंचांग का पालन करने वाले क्षेत्रों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में इसे आश्विन माह में मनाया जाता है। यह अंतर केवल माह के नाम का होता है, लेकिन तिथि सभी जगह एक ही रहती है।

करवा चौथ का व्रत

करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए सूर्योदय से चंद्र दर्शन तक निर्जला व्रत रखती हैं। भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है। व्रत का समापन चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करने और मिट्टी के करवा (करक) से जल चढ़ाने के बाद होता है। इस व्रत में करवा का महत्व विशेष होता है, जिसे पूजा के बाद ब्राह्मण या सुहागन को दान दिया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे करक चतुर्थी भी कहा जाता है।

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वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी

शुक्रवार के दिन वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी भी मनाई जाएगी, जिसमें भगवान गणेश के वक्रतुण्ड स्वरूप की आराधना की जाती है। वक्रतुण्ड, जिसका अर्थ है टेढ़ी सूंड वाले गणेश, गणपति के अष्टविनायक रूपों में प्रथम हैं।

मुद्गल पुराण के अनुसार

मुद्गल पुराण के अनुसार, गणपति ने मत्सरासुर नामक दैत्य का वध करने के लिए यह रूप धारण किया था। दैत्य के क्षमा मांगने पर गणेश जी ने उसे जीवन दान दिया। इस दिन भक्त गणेश जी की पूजा करते हैं और व्रत रखकर विघ्नहर्ता से आशीर्वाद मांगते हैं।

मासिक कार्तिगाई, जिसे कार्तिगाई दीपम भी कहते हैं, हर माह तब मनाया जाता है, जब कार्तिगाई नक्षत्र प्रबल होता है। यह पर्व भगवान शिव और उनके पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) को समर्पित है।

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कार्तिगाई दीपम विशेष महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु को अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए स्वयं को अनंत ज्योति में परिवर्तित किया था। कार्तिक माह में पड़ने वाला कार्तिगाई दीपम विशेष महत्व रखता है। तमिलनाडु के तिरुवन्नामलई में इस अवसर पर विशाल महादीपम जलाया जाता है, जो दूर-दूर तक दिखाई देता है। हजारों श्रद्धालु वहां एकत्र होकर भगवान शिव की पूजा करते हैं और दीप जलाकर अंधकार पर प्रकाश की विजय का उत्सव मनाते हैं।

(इनपुट-आईएएनएस)

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