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भाग्य और कर्म ये दो ऐसे शब्द हैं जो हमेशा से मानव जीवन के केंद्र में रहे हैं। जब भी जीवन में सफलता या असफलता आती है, तो हम अक्सर सोचते हैं यह कर्म का फल है या भाग्य का खेल? यह सवाल हर इंसान के मन में कभी न कभी ज़रूर आता है क्या भाग्य हमारे कर्म से बड़ा होता है?
भाग्य का अर्थ क्या है?
भाग्य यानी जो हमारे जीवन में पहले से तय है जिसे हम भाग्य भी कहते हैं। लोग मानते हैं कि जन्म, मृत्यु, सब कुछ पहले से लिखा हुआ होता है। इसी सोच के कारण कई बार व्यक्ति मेहनत करने की बजाय अपने भाग्य के भरोसे बैठ जाता है।
कर्म का महत्व
कर्म यानी हमारे द्वारा किया गया प्रयास। भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है, "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" इसका मतलब है कि इंसान को सिर्फ़ कर्म करने का अधिकार है, फल की चिंता मत करो। इसका सीधा संकेत यही है कि कर्म ही भाग्य को बदलने की शक्ति रखता है।
भाग्य और कर्म का संबंध
असल में भाग्य और कर्म एक ही सिक्के के दो पेहेलू है।भाग्य कोई जादू नहीं, बल्कि हमारे पूर्व जन्मों या वर्तमान जीवन के कर्मों का परिणाम होता है।
आज के युग में क्या जरूरी है?
आज के तेज़ भागते युग में केवल भाग्य पर बैठकर कुछ नहीं पाया जा सकता। मेहनत, लगन और धैर्य के साथ जब हम कर्म करते हैं, तो वही कर्म भविष्य का भाग्य बनाता है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक, खिलाड़ी, और कलाकारों की सफलता इसके उदाहरण हैं। अगर वे भाग्य के भरोसे रहते, तो इतिहास कभी नहीं बनता।