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गोपाष्टमी पर गोसेवा का महत्त्व: गोशाला में दान से प्राप्त होती है श्रीकृष्ण की कृपा

गोपाष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्णऔर गोमाता की आराधना का दिन है। इस दिन गोशालाओं में दान करने और गायों की सेवा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि गोसेवा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति मिलती है।

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YBN News
GOPAASTAMI

GOPAASTAMI Photograph: (AI)

नई दिल्ली। गोपाष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्णऔर गोमाता की आराधना का दिन है। इस दिन गोशालाओं में दान करने और गायों की सेवा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि गोसेवा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति मिलती है। श्रीकृष्ण ने स्वयं गोपाल के रूप में गायों की सेवा की थी, इसलिए यह दिन भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। भक्त इस अवसर पर गायों को गुड़, हरा चारा, रोटी और जल अर्पित करते हैं। गोमाता की सेवा करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा सदैव बनी रहती है।

आडल योग का संयोग

जानकारी हो कि कल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथिके दिन गोपाष्टमी और आडल योग का संयोग है। आडल योग, ज्योतिष में एक अशुभ योग माना जाता है। इसका निर्माण नवरात्रि के पहले दिन साल 2022 में हुआ था। इसे शुभ कार्यों के लिए अच्छा नहीं माना जाता, साथ ही इस दिन शुभ कार्य करना भी वर्जित हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गो माता की एक साथ पूजा की जाती है। ब्रज में इस तिथि को गायों को स्नान कराया जाता है, उन्हें सजाया जाता है। गोपाष्टमी पर किसी गोशाला में गायों की देखभाल के लिए धन का दान किया जाता है और उन्हें गुड़- चारा खिलाया जाता है और उनके प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त की जाती है।

द्रिक पंचांग के अनुसार

द्रिक पंचांग के अनुसार, बुधवार के दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे। अभिजीत मुहूर्त नहीं है और राहुकाल का समय दोपहर 12 बजकर 5 मिनट से शुरू होकर 1 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।

भागवत पुराण के अनुसार

गोपाष्टमी का उल्लेख पद्म और भागवत पुराण में मिलता है, जिसके अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री कृष्ण ने पहली बार गाय चराने का कार्य संभाला था। यह पर्व मुख्य रूप से मथुरा, वृंदावन और ब्रज में मनाया जाता है, जहां पर मुख्य रूप से गायों और बछड़ों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि वे श्री कृष्ण के बेहद प्रिय हैं।

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पूजन विधि

यह पर्व हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इसका महत्व भगवान श्री कृष्ण के गो चरण की शुरुआत से जुड़ा है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने के लिए जातक सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजन का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थल को गाय के गोबर, फूलों, दीपक और रंगोली से सजाएं। भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा स्थापित करें और उन्हें गौमाता को स्नान आदि करवाकर उनके सींगों पर हल्दी, कुमकुम और फूलों की माला पहनाएं और भोग में गुड़, हरा चारा, गेहूं, फल अर्पित करें। इसके बाद अंत में उनकी आरती और परिक्रमा करें। आप चाहें तो 'गोमाता की जय' और 'गोपाल गोविंद जय जय' जैसे मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं।

(इनपुट-आईएएनएस)

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