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ममता कुलकर्णी ने सुनाया बचपन से जुड़ा किस्सा, आचार्य प्रमोद कृष्णम का जताया आभार

कभी बड़े पर्दे पर चर्चा में रहने वाली अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने आजकल भगवा बाना धारण कर लिया है। प्रयाग राज में कुंभ स्‍नान के दौरान साध्‍वी का वेश धारण कर सनसनी पैदा करने वाली अभिनेत्री इन दिनों कल्कि धाम की यात्रा को लेकर सुर्खियों में हैं।

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Narendra Aniket
Mamta Kulkarni

मुंबई, आईएएनएस। अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस के साथ बातचीत के दौरान बचपन से जुड़े किस्से को साझा किया, जिसमें उन्होंने बताया कि ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका उनकी दादी के सपने में आई थीं और उन्हें लेकर विशेष बात रखी थी।

ऋषि जमदग्नि की पत्‍नी ने दादी को स्‍वप्‍न में बताया था मेरा नाम

ममता कुलकर्णी ने बताया, 'मेरा जन्म जमदग्नि गोत्र में हुआ है। मेरी दादी को ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका ने स्वप्न दिया था कि मैं इस बच्ची के रूप में यमाई नाम से आ रही हूं, इस लड़की को मेरा नाम दो। फिर मेरा नाम यमाई पड़ा।'

कल्कि अवतार के गुरु हैं परशुराम

उन्होंने आगे बताया, 'संयोग देखिए कि कल्कि अवतार के गुरु भी परशुराम हैं, जो रेणुका के पुत्र और कलियुग के गुरु हैं। मैं आई तो किसी और काम के लिए, मगर खुद-ब-खुद दूसरे काम होते रहे। ईश्वर ने मुझसे जो करवाना चाहा, वो मेरे साथ हो गया।'

12 वर्ष कठोर तपस्‍या की और 12 कुंडली जागृत हो गई

ममता कुलकर्णी ने बताया कि उन्होंने 12 साल कठोर तपस्या की है। उन्होंने बताया, 'मैंने 12 साल कठोर तप किया, मेरी 12 कुंडली जागृत हो गईं। प्रत्येक चक्र पर भगवान स्थापित होते हैं। अंतिम सूर्य चक्र होता है। जब भगवान परीक्षा लेते हैं, तब जाकर आप सूर्य चक्र तक पहुंच पाते हैं। आचार्य प्रमोद कृष्णम का मैं आभार जताती हूं कि उन्होंने मुझे कल्कि धाम के समारोह में निमंत्रण दिया। इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।'

अपना सबकुछ ईश्‍वर पर छोड़ चुकी हैं ममता

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इससे पहले ममता कुलकर्णी ने बताया था कि उनका मानना है कि ईश्वर हर किसी को एक प्रयोजन के साथ धरती पर भेजते हैं। जगत जननी ने उन्हें भी पुण्य कर्मों के लिए भेजा है और वह अपना सब कुछ ईश्वर पर छोड़ चुकी हैं।
ममता कुलकर्णी ने बताया था कि जगत जननी ने उन्हें पुण्य कर्मों के लिए भेजा है। वह पहले महाकुंभ में स्नान करने गई थीं। लेकिन, वहां से महामंडलेश्वर बनकर लौटीं। अभिनेत्री का मानना है कि यह समझना मुश्किल है कि भगवान किस उद्देश्य से और कहां जाने का आदेश देते हैं। वह इसे भगवान की इच्छा पर छोड़ देती हैं, यह विश्वास रखते हुए कि श्री कल्किधाम की यात्रा और शिला दान का कार्य भी भगवती की इच्छा या किसी विशेष प्रयोजन से प्रेरित है। यह आध्यात्मिकता और भगवान के प्रति समर्पण को दिखाता है।

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