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शारदीय नवरात्रिः द्वितीय माता ब्रह्मचारिणी की विधिपूर्वक पूजा से भक्तों में बढ़ता है आत्मबल और इच्छाशक्ति

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, जिनका स्वरूप तप, साधना, संयम और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है। विधिवत पूजा से साधक को तपस्या, धैर्य, आत्मबल, संयम, सच्चरित्रता और इच्छाशक्ति की वृद्धि होती है।

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Mukesh Pandit
Shardiya Navrateri

नवरात्रि में मातादुर्गा के नौ स्वरूपों (नवदुर्गा) की पूजा की जाती है, जिनमें प्रत्येक दिन एक विशेष रूप को समर्पित होता है। हर रूप का अलग धार्मिक महत्व है, और पूजा-विधि नियमपूर्वक पालन करने पर देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, जिनका स्वरूप तप, साधना, संयम और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है। विधिवत पूजा से साधक को तपस्या, धैर्य, आत्मबल, संयम, सच्चरित्रता और इच्छाशक्ति की वृद्धि होती है।

ब्रह्म का क्या अर्थ है?

वह जिसका कोई आदि या अंत न हो, वह जो सर्वव्याप्त, सर्वश्रेष्ठ है और जिसके परे कुछ भी नहीं। जब आप आंखे बंद कर के ध्यानमग्न होते हैं तब अनुभव करते हैं कि ऊर्जा अपनी चरम सीमा या शिखर पर पहुँच जाती है। तब वह देवी माँ के साथ एक हो गई है और उसी में ही लिप्त हो गई है। दिव्यता, ईश्वर आपके भीतर ही है, कहीं बाहर नहीं। आप यह नहीं कह सकते कि मैं इसे जानता हूँ, क्योंकि यह असीम है; जिस क्षण ‘आप जान जाते हैं’, यह सीमित बन जाता है। और आप यह नहीं कह सकते कि मैं इसे नहीं जानता, क्योंकि यह वहीं है – तो आप कैसे नहीं जानते? क्या आप कह सकते हैं कि मैं अपने हाथ को नहीं जानता। आपका हाथ तो वहाँ है, है न? इसलिए, आप इसे जानते हैं। और साथ ही में यह अनंत है अतः आप इसे नहीं जानते। यह दोनों अभिव्यक्ति एक साथ चलती हैं।

अगर कोई आपसे पूछे कि क्या आप देवी मां को जानते हैं? तब आपको चुप रहना होगा क्योंकि अगर आपका उत्तर है कि “मैं नहीं जानता” तब यह असत्य होगा और अगर आपका उत्तर है कि हां मैं जानता हूँ तो तब आप अपनी सीमित बुद्धि से उस जानने को सीमा में बाँध रहे हैं। यह (देवी माँ) असीमित, अनन्त हैं जिसे न तो समझा जा सकता है न ही किसी सीमा में बाँध कर रखा जा सकता है। जानने का अर्थ है कि आप उसको सीमा में बाँध रहे हैं। क्या आप अनन्त को किसी सीमा में बाँध कर रख सकते हैं? अगर आप ऐसा कर सकते हैं तो फिर वह अनन्त नहीं।

ब्रह्मचारिणी का अर्थ

ब्रह्मचारिणी का अर्थ है वह जो असीम, अनन्त में विद्यमान, गतिमान है। एक ऊर्जा जो न तो जड़ न ही निष्क्रिय है, किन्तु वह जो अनन्त में विचरण करती है। यह बात समझना अति महत्वपूर्ण है –एक है गतिमान होना, दूसरा विद्यमान होना। यही ब्रह्मचर्य का अर्थ है। इसका अर्थ यह भी है कि तुच्छता और निम्नता में न रहना अपितु पूर्णता से रहना। कौमार्यावस्था ब्रह्मचर्य का पर्यायवाची है क्योंकि उसमें आप एक सम्पूर्णता के समक्ष हैं। वासना हमेशा सीमित बँटी हुई होती है, और चेतना का मात्र सीमित क्षेत्र में संचार होता है। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी सर्वव्यापक चेतना है।

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पूजा विधि

प्रातः स्नान कर स्वच्छ श्वेत/गुलाबी वस्त्र धारण करें।
पूजा-स्थल या मंदिर को साफ कर गंगाजल छिड़कें।
मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा/चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित करें।
देवी को अक्षत, सिंदूर, कुमकुम, सफेद या सुगंधित पुष्प अर्पित करें।
मां को बर्फी, चीनी, खीर या पंचामृत का भोग लगाएं।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम: और ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः मंत्र का जाप करें (कम-से-कम 108 बार)।
दुर्गा चालीसा, सप्तशती या मां की आरती का पाठ करें।
पूजा के अंत में सफेद पुष्प अर्पित कर प्रसाद वितरित करें.

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लाभ

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से साधक को मन की स्थिरता, एकाग्रता और संयम प्राप्त होता है> प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है एवं बाधाएं दूर होती हैं। जीवन में सदाचार, संतुलन, सच्चाई, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मानसिक तनाव व विघ्न भी कम होते हैं, और इच्छाओं की पूर्ति संभव होती है। तप, त्याग व वैराग्य के मार्ग की ओर प्रेरणा मिलती है, जिससे साधक का जीवन धन्य हो जाता है> मां ब्रह्मचारिणी की पूजा श्रद्धा एवं विधिपूर्वक करने पर साधक को जीवन में सर्वोच्च शांति, विजय और शक्ति की प्राप्ति होती। मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र एवं आरती का अत्यधिक महत्व है। उनका मंत्र और आरती साधक के मन में तप, संयम, आध्यात्मिक शक्ति और आत्मबल का संचार करते हैं।

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मंत्र का महत्व

मां ब्रह्मचारिणी का प्रमुख मंत्र है:
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:"

इस मंत्र का उच्चारण साधक को मां ब्रह्मचारिणी की दिव्य ऊर्जा से जोड़ता है। यह मंत्र जीवन में संयम, तपस्या, ज्ञान, सहनशीलता और आत्मबल प्रदान करता है। मंत्र जाप से मानसिक शांति, ध्यान की शक्ति, और कठिनाइयों का सामना करने की दृढ़ता मिलती है। यह मंत्र साधक को सम्पूर्ण सिद्धियों और विजय की प्राप्ति में समर्थ बनाता है।

आरती का महत्व

मां ब्रह्मचारिणी की आरती श्रद्धा और भक्ति से की जाती है, जिसमें उनके गुणों, तपस्या और ज्ञान की स्तुति की जाती है। आरती करने से साधक के मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। आरती के दौरान उर्जा और आनंद की अनुभूति होती है, और भक्तों को माँ की कृपा प्राप्त होती है। इसे नियमित अर्चना से जीवन में बाधाएं दूर होती हैं और सफलता मिलती है। shardiya navratri 2025 | hindu god | hindu guru | hindu festival

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