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नई दिल्ली। हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। मान्यता है कि इस व्रत को विधि-विधान से करने पर सभी कष्ट दूर होते हैं, पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
हिंदू पंचांग
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का समय 2 दिसंबर दोपहर 3 बजकर 57 मिनट से शुरू होकर 3 दिसंबर दोपहर 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। इसके बाद चतुर्दशी शुरू हो जाएगी।
'प्रदोष काल'
व्रती को इस दिन निराहार (या फलाहार) रहकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। मुख्य पूजा संध्याकाल (सूर्यास्त के ठीक बाद का समय) में की जाती है, जिसे 'प्रदोष काल' कहते हैं। इस समय शिव परिवार की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें बेलपत्र, गंगाजल, धूप, दीप और भोग अर्पित करें। 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करें और प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कर्ज मुक्ति में सहायक माना जाता है।
द्रिक पंचांग
द्रिक पंचांग के अनुसार, बुधवार को सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा 11 बजकर 14 मिनट तक मेष राशि में रहेगा। इसके बाद वृषभ राशि में गोचर करेंगे। इस दिन अभिजीत मुहूर्त नहीं है और राहुकाल का समय दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर दोपहर 1 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि प्रदोष व्रत रखने से सभी पाप और कष्ट दूर होते हैं और शिव धाम की प्राप्ति होती है। साथ ही यह जीवन में सुख-समृद्धि लाता है। शिव पुराण के अनुसार, सोमवार का दिन चंद्र देव (सोम) से भी जुड़ा है, जिन्होंने भगवान शिव की आराधना करके क्षय रोग से मुक्ति पाई थी।
सोलह सोमवार का व्रत
एक अन्य कथा में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए सोलह सोमवार का व्रत रखा था। इसलिए इस दिन पूजा-पाठ करने से जीवन में सुख-शांति के साथ सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। इस तिथि पर भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा करने के लिए जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म स्नान आदि करने के बाद मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछा लें। उस पर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित करें, और भोलेनाथ का अभिषेक करें। उन पर बिल्वपत्र, चंदन, अक्षत, फल और फूल अर्पित करें। भोलेनाथ की पूजा के साथ ही माता पार्वती की भी पूजा करनी चाहिए। माता को शृंगार की सोलह वस्तुएं चढ़ानी चाहिए। इसके साथ ही भगवान शिव का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें और सोमवार व्रत कथा पढ़ें या सुनें और अंत में दीपक जलाकर भगवान शिव की आरती करें और "ओम नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें। --
(इनपुट-आईएएनएस)
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