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Varuthini Ekadashi: वरुथिनी एकादशी को बरुथिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक शुभ दिन है जहां भक्त भगवान विष्णु के वामन या बौने रूप (अवतार) की पूजा और पूजा करते हैं। वरुथिनी का अर्थ है ‘संरक्षित’और इस प्रकार एक धार्मिक मान्यता है कि इस दिन उपवास और तपस्या करने से व्यक्ति को अपने सभी अतीत और भविष्य के पापों से मुक्त होने और मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिलती है। यह दिन महिलाओं के लिए बेहद शुभ होता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से भविष्य सुखी हो सकता है। वरुथिनी एकादशी की तिथि, इसके धार्मिक महत्व, व्रत की विधि, मंत्र और कथाओं के बारे में जानते हैं।
वरुथिनी एकादशी कब मनाई जाती है?
hindu religion वरुथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह सामान्यतः अप्रैल या मई माह में पड़ती है। 2025 में वरुथिनी एकादशी गुरुवार, 24 अप्रैल को पड़ेगी। एकादशी तिथि की शुरुआत और समाप्ति का समय पंचांग के आधार पर निर्धारित होता है। उदाहरण के लिए, तिथि प्रारंभ होने पर व्रत शुरू होता है और द्वादशी को पारण (व्रत खोलना) किया जाता है। भक्तों को सूर्योदय से पहले उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
एकादशी का महत्व
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। वरुथिनी एकादशी का विशेष महत्व इसलिए है, क्योंकि यह भक्तों को पापों से मुक्ति, सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति में सहायता करता है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और मन शुद्ध होता है।
पुराणों के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से दस हजार वर्षों तक तपस्या करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो अपने जीवन में कठिनाइयों, आर्थिक समस्याओं या स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। स्कंद पुराण और भविष्योत्तर पुराण में इस व्रत की महिमा का वर्णन मिलता है।
वरुथिनी एकादशी का नाम "वरुथिनी" शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है "रक्षा करने वाली"। यह एकादशी भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा से जीवन के सभी कष्टों से रक्षा करती है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए बल्कि भौतिक सुखों जैसे धन, संतान और समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।
वरुथिनी एकादशी की कथा
वरुथिनी एकादशी से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा भगवान कृष्ण और पांडवों के बीच संवाद के रूप में मिलती है। इस कथा के अनुसार, एक बार युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से वरुथिनी एकादशी के महत्व के बारे में पूछा। तब श्रीकृष्ण ने बताया कि प्राचीन काल में मांधाता नामक एक राजा ने इस व्रत का पालन किया था। राजा मांधाता बहुत धर्मी और दयालु थे, लेकिन एक बार उनके राज्य में अकाल पड़ गया। उन्होंने कई यज्ञ और पूजा-पाठ किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। तब एक ऋषि ने उन्हें वरुथिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा ने पूरे विधि-विधान के साथ इस व्रत को किया और भगवान विष्णु की कृपा से उनके राज्य में फिर से सुख-समृद्धि लौट आई। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि यह व्रत न केवल व्यक्तिगत कल्याण के लिए बल्कि सामाजिक और सामुदायिक कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है।
व्रत की विधि
वरुथिनी एकादशी का व्रत करने के लिए विधि का पालन करना चाहिए
- संकल्प: प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के समक्ष बैठकर व्रत का संकल्प लें।
- पूजा: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। उन्हें फूल, तुलसी पत्र, चंदन, धूप, दीप और नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित करें।
- उपवास: इस दिन पूर्ण उपवास रखना चाहिए। यदि पूर्ण उपवास संभव न हो तो फलाहार या हल्का भोजन ग्रहण किया जा सकता है। नमक, अनाज और तामसिक भोजन से बचें।
- जागरण और भक्ति: रात में भगवान विष्णु के भजन, कीर्तन और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। विष्णु पुराण या भगवद्गीता का पाठ भी लाभकारी होता है।
- पारण: द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद पंचांग में बताए गए समय पर व्रत का पारण करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
इस मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। यह मंत्र भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने में सहायक है।ॐ ह्रीं नारायणाय नमः
इस मंत्र का जाप व्रत के दौरान विशेष रूप से किया जाता है। यह मन को शांत करता है और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है।ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्मी महाविष्णवे नमः
यह मंत्र धन, समृद्धि और सुख की प्राप्ति के लिए जप किया जाता है।
वरुथिनी एकादशी के लाभ
- पापों से मुक्ति: यह व्रत पिछले जन्मों के पापों को नष्ट करता है और आत्मा को शुद्ध करता है।
- सुख-समृद्धि: इस व्रत से धन, संपत्ति और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है।
- स्वास्थ्य लाभ: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत भक्तों को भगवान विष्णु के धाम वैकुंठ की ओर ले जाता है।