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दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर
गाजियाबाद, दिल्ली की सीमा से सटा एक शहर, जो अपने औद्योगिक विकास और तेज रफ्तार जिंदगी के लिए जाना जाता है, लेकिन इस शहर की आत्मा में बसती है एक ऐसी आध्यात्मिक कहानी, जो हजारों साल पुरानी है।
ये कहानी है श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर की, जो न केवल भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि इतिहास और पौराणिक कथाओं का एक अनमोल खजाना भी है। अब इस प्राचीन मंदिर को काशी विश्वनाथ और महाकालेश्वर कॉरिडोर की तर्ज पर एक भव्य गलियारे के रूप में नया स्वरूप मिलने जा रहा है, जिसकी घोषणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक चुनावी जनसभा के दौरान की थी। आइए, इस मंदिर के इतिहास और इसके बदलते भविष्य की एक हटके यात्रा पर चलें!
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रावण के समय से एक चमत्कारिक सिद्धपीठ
कहते हैं कि दूधेश्वर नाथ मंदिर की नींव उस समय पड़ी, जब धरती पर रावण का युग था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना रावण के पिता, ऋषि विश्वश्रवा ने की थी। उस समय इसे 'हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग' के नाम से जाना जाता था। मान्यता है कि स्वयं रावण ने भी इस पवित्र स्थल पर भगवान शिव की तपस्या की थी और अपना दसवां शीश भोलेनाथ को अर्पित किया था। ये मंदिर हिंडन नदी के तट पर बसा है, जिसे कभी हिरण्यदा नदी कहा जाता था।
लेकिन इस मंदिर का नाम 'दूधेश्वर' कैसे पड़ा? इसके पीछे की कहानी और भी रोचक है। इतिहासकारों के अनुसार, मुगल काल में इस मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। कई सालों तक ये स्थान गुमनामी में खो गया। फिर एक चमत्कार हुआ। पास के गांव कैला की गायें जब उस टीले पर चरने आतीं, जहां कभी मंदिर था, तो उनके थनों से अपने आप दूध टपकने लगता। ग्रामीणों ने जब उस टीले की खुदाई की, तो वहां एक स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ। गायों के दूध से इसका अभिषेक होने के कारण इसे 'दूधेश्वर नाथ' नाम मिला। ये शिवलिंग आज भी मंदिर में तीन फीट नीचे स्थापित है, जो भक्तों के लिए एक रहस्यमयी आकर्षण है।
आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र
दूधेश्वर नाथ मंदिर को सिद्धपीठ माना जाता है, जहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। महाशिवरात्रि और सावन के महीने में यहां लाखों कांवड़िए जलाभिषेक के लिए उमड़ते हैं। मंदिर के महंत नारायण गिरी बताते हैं कि इस स्थान पर कई ऋषियों और साधकों ने तपस्या की है, जिसके कारण यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा अनूठी है। मंदिर परिसर में एक वेद विद्यापीठ भी है, जहां देशभर से छात्र वेद और शास्त्रों का अध्ययन करने आते हैं।
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इस मंदिर की खासियत सिर्फ इसकी प्राचीनता तक सीमित नहीं है। ये वो जगह है, जहां हर भक्त को सकारात्मकता और शांति का अनुभव होता है। चाहे वो स्थानीय निवासी हों या दूर-दराज से आए यात्री, सभी को लगता है कि बाबा दूधेश्वर का आशीर्वाद उनके जीवन में नई रोशनी लाता है।
काशी की तर्ज पर दूधेश्वर कॉरिडोर
2024 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गाजियाबाद के एक कार्यक्रम में दूधेश्वर नाथ मंदिर कॉरिडोर की घोषणा की, जिसने इस प्राचीन धरोहर को एक नई पहचान देने का रास्ता खोल दिया। काशी विश्वनाथ और उज्जैन के महाकालेश्वर कॉरिडोर की तरह ही, दूधेश्वर नाथ कॉरिडोर का उद्देश्य मंदिर को भव्यता और सुगमता के साथ जोड़ना है। इस परियोजना के पहले चरण में मुख्य द्वार और यात्री निवास का निर्माण शुरू हो चुका है। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने इसके लिए 6 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है जिसके बाद मंदिर में कॉरिडोर का कार्य शुरू हो चुका है
इस कॉरिडोर से न केवल मंदिर की सुंदरता बढ़ेगी, बल्कि भक्तों के लिए सुविधाएं भी बेहतर होंगी। जस्सीपुरा मोड़ से मंदिर तक सड़क को चौड़ा किया जाएगा, पार्किंग की व्यवस्था होगी और आसपास की दुकानों को व्यवस्थित रूप से स्थानांतरित किया जाएगा। गाजियाबाद की मेयर सुनीता दयाल का कहना है कि इस कॉरिडोर को भव्य बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी जाएगी। स्थानीय लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि वे भी इस प्रोजेक्ट के लिए हर संभव योगदान देने को तैयार हैं।
क्यों खास है ये कॉरिडोर?
दूधेश्वर नाथ कॉरिडोर सिर्फ एक निर्माण परियोजना नहीं है, बल्कि ये गाजियाबाद की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान को नया आयाम देने का प्रयास है। ये कॉरिडोर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देगा, जिससे स्थानीय व्यापार और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। काशी और महाकाल कॉरिडोर की तरह ही, यहां भी मंदिर के आसपास का क्षेत्र एक आध्यात्मिक और सौंदर्यपूर्ण केंद्र बन जाएगा।
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इसके अलावा, ये परियोजना योगी सरकार की उस सोच को दर्शाती है, जो प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करते हुए उन्हें आधुनिकता के साथ जोड़ना चाहती है। अयोध्या में राम मंदिर, काशी में विश्वनाथ धाम और अब गाजियाबाद में दूधेश्वर नाथ कॉरिडोर ये सभी प्रयास एक ऐसी भारत की तस्वीर पेश करते हैं, जो अपनी जड़ों से जुड़ा है और भविष्य की ओर बढ़ रहा है।
दूधेश्वर नाथ का नया युग
सोचिए, एक ऐसा मंदिर जहां रावण ने तप किया, जहां गायों के दूध से शिवलिंग प्रकट हुआ, और जहां अब काशी जैसा भव्य कॉरिडोर बनने जा रहा है। ये सिर्फ एक मंदिर की कहानी नहीं है, बल्कि समय के साथ बदलते भारत की कहानी है। दूधेश्वर नाथ मंदिर हमें सिखाता है कि आस्था कभी पुरानी नहीं पड़ती, बल्कि वो नए रंगों में ढलकर और मजबूत होती है।
जैसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर ने वाराणसी को वैश्विक मंच पर ला खड़ा किया, वैसे ही दूधेश्वर नाथ कॉरिडोर गाजियाबाद को एक नई आध्यात्मिक पहचान देगा। ये कॉरिडोर सिर्फ भक्तों के लिए नहीं, बल्कि उन सभी के लिए होगा, जो इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिकता के इस अनोखे संगम को महसूस करना चाहते हैं।
तो अगली बार जब आप गाजियाबाद में हों, तो दूधेश्वर नाथ मंदिर जरूर जाएं। वहां की शांति, वहां का इतिहास और अब बन रहा नया कॉरिडोर आपको एक ऐसी यात्रा पर ले जाएगा, जो न सिर्फ मन को सुकून देगी, बल्कि आपको भारत की उस आत्मा से जोड़ेगी, जो कभी नहीं बदलती। हर हर महादेव!
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