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आग सुरक्षा पर उठे सवाल
गाजियाबाद के राजनगर डिस्ट्रिक्ट सेंटर (आरडीसी) में आज दोपहर एक दिल दहला देने वाला हादसा हुआ, जब आदित्य बिल्डिंग, एक व्यस्त कमर्शियल कॉम्प्लेक्स, आग की लपटों में घिर गया। आग इतनी भयावह थी कि इसकी तस्वीरें और वीडियो देखकर हर कोई सिहर उठा।
सैकड़ों लोग बिल्डिंग में फंस गए, और मौत का तांडव उनकी आँखों के सामने नाचने लगा। इस हादसे ने न केवल जिंदगियों को खतरे में डाला, बल्कि एक बार फिर फायर सेफ्टी के खोखले दावों और लापरवाही की पोल भी खोल दी।
आग का कहर और फंसे लोगआदित्य बिल्डिंग में दोपहर के समय अचानक आग लगी, जो देखते ही देखते पूरी इमारत को अपनी चपेट में ले लिया। प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट को आग का कारण बताया जा रहा है, लेकिन इसकी तीव्रता ने सभी को हैरान कर दिया। बिल्डिंग की निचली मंजिलों से शुरू हुई आग तेजी से ऊपरी मंजिलों तक फैल गई।
घने काले धुएं ने पूरे कॉम्प्लेक्स को ढक लिया, जिससे लोगों का दम घुटने लगा।बिल्डिंग में मौजूद ज्यादातर लोग नौजवान थे दुकानों में काम करने वाले कर्मचारी, ऑफिस में जॉब करने वाले युवा, और ग्राहक।
इनमें से कई लोग अपनी जान बचाने के लिए खिड़कियों पर लटकते दिखे, क्योंकि इमरजेंसी निकास मार्ग का कोई इंतजाम नहीं था। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, "लोग चीख रहे थे, धुआँ इतना था कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। कुछ लोग खिड़कियों से कूदने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन नीचे कोई सुरक्षित रास्ता नहीं था।"
रेस्क्यू ऑपरेशन
जिंदगी और मौत की जंगहादसे की सूचना मिलते ही दमकल विभाग, पुलिस, और एनडीआरएफ की टीमें मौके पर पहुँचीं। दमकल की 15 गाड़ियाँ, एक क्रेन, और 20 से अधिक एंबुलेंस ने रेस्क्यू ऑपरेशन में हिस्सा लिया। घंटों की कड़ी मशक्कत के बाद, करीब 100 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाला गया।
कुछ घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया।रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान दमकल कर्मियों और पुलिस की बहादुरी की हर तरफ तारीफ हुई। लेकिन सवाल यह है कि अगर बिल्डिंग में फायर सेफ्टी के पर्याप्त इंतजाम होते, तो क्या इतने बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन की जरूरत पड़ती?
कौन है जिम्मेदार?
यह हादसा सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि सिस्टम की लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी का नतीजा है। आदित्य बिल्डिंग में इमरजेंसी निकास मार्ग का अभाव, फायर अलार्म सिस्टम की कमी, और अग्निशमन उपकरणों की अनुपस्थिति ने इस हादसे को और भयावह बना दिया। आखिर, इस लापरवाही का जिम्मेदार कौन है?बिल्डिंग
मालिक और बिल्डर
क्या बिल्डिंग बनाते समय फायर सेफ्टी नियमों का पालन किया गया? क्या नियमित ऑडिट और मेंटेनेंस पर ध्यान दिया गया?
स्थानीय प्रशासन
बिल्डिंग को मंजूरी देने से पहले क्या फायर सेफ्टी मानकों की जाँच की गई? क्या अवैध निर्माण या नियमों की अनदेखी को नजरअंदाज किया गया?
नगर निगम और फायर डिपार्टमेंट
क्या व्यस्त कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में नियमित फायर सेफ्टी ऑडिट किए जाते हैं? क्या दमकल विभाग के पास पर्याप्त संसाधन और ट्रेनिंग है?
हर बार की तरह, इस हादसे के बाद भी प्रशासन ने "जाँच" का वादा किया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जाँच दोषियों को सजा दिलाएगी, या फिर फाइलों में दबकर रह जाएगी?
बार-बार वही कहानी
गाजियाबाद में यह कोई पहला अग्निकांड नहीं है। इससे पहले भी कई इमारतें आग की चपेट में आ चुकी हैं, और हर बार यही सवाल उठते हैं आखिर फायर सेफ्टी के नियमों का पालन क्यों नहीं होता? क्यों हर हादसे के बाद लोग खिड़कियों पर लटकते दिखते हैं? क्यों इमरजेंसी निकास मार्ग सिर्फ कागजों पर होते हैं?स्थानीय निवासियों और दुकानदारों में गुस्सा है। एक दुकानदार ने कहा, "हम हर महीने भारी किराया देते हैं, लेकिन बिल्डिंग में बेसिक सेफ्टी तक नहीं है। अगर आज कोई बड़ा हादसा हो जाता, तो इसका जिम्मेदार कौन होता?"
आगे की राह
आदित्य बिल्डिंग अग्निकांड एक चेतावनी है। अगर अब भी नहीं जागे, तो अगला हादसा और भयावह हो सकता है। इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे
कड़े नियम और उनका पालन
बिल्डिंग को मंजूरी देने से पहले फायर सेफ्टी मानकों की कड़ाई से जाँच होनी चाहिए।
नियमित ऑडिट
सभी कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में सालाना फायर सेफ्टी ऑडिट अनिवार्य करना होगा।
जागरूकता और ट्रेनिंग
बिल्डिंग में काम करने वालों को फायर सेफ्टी ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।
दोषियों को सजा
लापरवाही बरतने वालों चाहे बिल्डर हों, मालिक हों, या अधिकारी उन्हें सख्त सजा मिलनी चाहिए।
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