गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
"योगी नहीं तुमसा" विषय पर गोष्ठी का समापन हुआ
गाजियाबाद केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में "योगी नहीं तुमसा" विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी के 701वे वेबीनार का आयोजन किया गया।
वैदिक आचार्या विमलेश बंसल ने कहा कि महर्षि देव दयानंद सरस्वती वास्तव में योगियों में योगी, ऋषियों में ऋषि,संतों में संत,गुरुओं में गुरु,शिष्यों में शिष्य,तपस्वियों में तपस्वी,वैराग्यवानों में वैराग्य वान, ज्ञानियों में ज्ञानी इत्यादि विलक्षण प्रतिभाओं को लिए बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे।
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महर्षि देव दयानंद सरस्वती
उनका पूरा जीवन हमारे लिए संजीवनी बूटी का काम करता है।दूसरे शब्दों में कहें तो महर्षि देव दयानंद सरस्वती का पूरा जीवन हमें ऐसे दिव्य चक्षु प्रदान करता है जिनको प्राप्त कर हम अपने जीवन को धन्य कर अन्यों के भी प्रेरक बन सकते हैं उनका व्यक्तित्व और कृतित्व चुंबकीय था।
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जिधर भी दृष्टि जाती उधर की ही धारा बदल जाती।जिसने भी एक बार उन्हें देखा सुना उनका दीवाना हो गया।चाहे गुरुदत्त हो या मुंशीराम या फिर अमीचंद मेहता न जाने कितनों का भी जीवन हीरा बन गया। इसके लिए उन्होंने न जाने कितने पत्थर खाए विष पिया किंतु समस्त मानव जाति को अमृत पिलाया। जिधर भी मुड़े उधर से ही ढोंग पाखंड अंधविश्वास कुरीतियां रूढ़ियां छुआछूत मिटता चला गया।
न आंधी देखी न तूफान सबको चीरता हुआ एकमेव लक्ष्य-सत्य की खोज कर ईश्वर की ओर बढ़ते और बढ़ाते चले गए।सत्य में जिए,सत्य ही परोसा,सत्य के ही प्रेरक बन सत्य में मिल गए।
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जन्मोत्सव और बोधोत्सव दोनों ही नजदीक हैं उनकी समस्त कृतियों-अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश, संस्कार विधि,ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका आदि बहुमूल्य पुस्तकों से अपने जीवन को रंग अन्यों के कल्याणार्थ आर्ष वैदिक पुस्तकें वितरित करते हुए सच्चे रूप में श्रद्धा सुमन अर्पित करने चाहिएं।