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Mistake- इतिहास की अज्ञानता "HRD" ने बहादुर शाह जफर को औरंगजेब बना दिया!

अब समय है कि हम इतिहास की किताबें फिर से खोलें, तथ्यों को समझें, और अफवाहों के बजाय संवाद पर भरोसा करें। हिंदू रक्षा दल की इस गलती से हमें सीख लेनी चाहिए कि नफरत और अज्ञानता हमें केवल गलत राह पर ले जाती है।

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Kapil Mehra
फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

गलतफहमी के शिकार हुए हिंदू रक्षा दल के कार्यकरता

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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता 

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गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश का वो शहर, जो दिल्ली की सरहद से सटा होने के बावजूद अपनी अलग पहचान रखता है, एक बार फिर सुर्खियों में है। लेकिन इस बार वजह न तो कोई औद्योगिक तरक्की है, न ही कोई अपराध की खबर। बल्कि, एक ऐसी घटना है, जो इतिहास की अज्ञानता, गलतफहमी, और भावनाओं के उबाल का अनोखा संगम है। 

18 अप्रैल 2025 को गाजियाबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर चार पर हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं ने एक पेंटिंग पर कालिख पोत दी, जिसे वे मुगल शासक औरंगजेब की तस्वीर समझ रहे थे। लेकिन ट्विस्ट तब आया, जब रेलवे प्रशासन ने साफ किया कि यह पेंटिंग औरंगजेब की नहीं, बल्कि 1857 की क्रांति के नायक और अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की थी! 

क्या हुआ गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर?

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शुक्रवार की सुबह, जब गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की भीड़ अपने रोजमर्रा के सफर में व्यस्त थी, तभी करीब 18-20 युवकों का एक समूह प्लेटफॉर्म नंबर चार पर पहुंचा। इन युवकों ने खुद को हिंदू रक्षा दल का कार्यकर्ता बताया। उनके हाथों में भगवा झंडे थे और चेहरों पर गुस्सा

निशाने पर थी प्लेटफॉर्म की दीवार पर बनी एक पेंटिंग, जिसे वे औरंगजेब की तस्वीर समझ रहे थे।बिना देर किए, कार्यकर्ताओं ने स्प्रे पेंट और कालिख निकाली, और पेंटिंग पर कालिख पोत दी,और दीवार पर ‘HRD’ लिखकर संगठन ने अपनी मौजूदगी दर्ज की।

उनका कहना था कि औरंगजेब, जिसे वे ‘मुस्लिम आक्रांता’ और ‘मंदिर तोड़ने वाला’ मानते हैं, उसकी तस्वीर रेलवे स्टेशन जैसे सार्वजनिक स्थान पर नहीं होनी चाहिए।

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 हिंदू रक्षा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी उर्फ पिंकी भैया ने कहा कि ऐसी तस्वीरें भारत की पवित्र धरती से हटानी होंगी।लेकिन कहानी में असली मसाला तब आया, जब रेलवे प्रशासन ने बयान जारी किया। दिल्ली डिवीजन पुष्पेश रमन त्रिपाठी ने साफ किया कि जिस पेंटिंग पर कालिख पोती गई, वह औरंगजेब की नहीं, बल्कि बहादुर शाह जफर की थी।यानी, जिस शख्स को कार्यकर्ता ‘आक्रांता’ समझकर निशाना बना रहे थे।

क्रांति का नायक था ज़फ़र 

वह दरअसल 1857 की क्रांति का वो नायक था, जिसने अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय क्रांतिकारियों की अगुवाई की थी। यह सुनकर न केवल सोशल मीडिया पर हंसी के ठहाके गूंजे, बल्कि इतिहास की किताबों को फिर से खोलने की जरूरत भी महसूस हुई।

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कालिख का खेल

गलतफहमी या नफरत की आग? तो आखिर यह गलतफहमी हुई कैसे? गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर कई साल पहले सौंदर्यीकरण के लिए दीवारों पर स्वतंत्रता सेनानियों और ऐतिहासिक हस्तियों की पेंटिंग्स बनाई गई थीं। इनमें रानी लक्ष्मी बाई, मंगल पांडे, महाराणा प्रताप, और बहादुर शाह जफर जैसी शख्सियतें शामिल थीं।

लेकिन किसी ने अफवाह फैलाई कि इनमें औरंगजेब की तस्वीर भी है।हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं ने बिना तथ्य जांचे इस अफवाह पर भरोसा कर लिया। औरंगजेब का नाम सुनते ही उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। संगठन का कहना था कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़े, हिंदुओं पर अत्याचार किए, और उसकी तस्वीर सरकारी संपत्ति पर लगाना अपमानजनक है। लेकिन इस जल्दबाजी में उन्होंने इतिहास का एक पन्ना पढ़ना भूल गए, औरंगजेब और बहादुर शाह जफर न केवल अलग-अलग युगों के शासक थे, बल्कि उनकी विचारधारा और कर्म भी बिल्कुल जुदा थे।

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में कार्यकर्ताओं को कालिख पोतते और नारेबाजी करते देखा जा सकता है। लेकिन जब सच सामने आया, तो कई लोगों ने इसे ‘इतिहास की अनपढ़ता’ का नमूना करार दिया।

बहादुर शाह जफर

वो शायर-बादशाह, जिसे भूल गएतो कौन थे बहादुर शाह जफर, जिनकी तस्वीर को इस गलतफहमी का शिकार होना पड़ा? बहादुर शाह जफर 1775-1862 मुगल साम्राज्य के आखिरी बादशाह थे, जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया।

वे न केवल एक शासक थे, बल्कि उर्दू के मशहूर शायर भी थे, जिनकी गजलें आज भी रेख्ता जैसी वेबसाइट्स पर पढ़ी और सुनी जाती हैं 1857 की क्रांति में, जब भारतीय सैनिकों और राजा-महाराजाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की, तब बहादुर शाह जफर को ‘हिंदुस्तान का सम्राट’ मानकर उनके नेतृत्व में लड़ा गया। उन्होंने दिल्ली में अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी, लेकिन छल-कपट और सैन्य शक्ति के आगे हार गए।

अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार किया, उनके बेटों और पोतों को गोलियों से भून डाला, और उन्हें रंगून जो अब म्यांमार निर्वासित कर दिया वहां, अपनी मातृभूमि से दूर, उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।

उनकी मशहूर पंक्तियां

“कितना है बदनसीब ज़फर दफ़्न के लिए,

दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में।”आज भी हर देशभक्त के दिल को छूती हैं। ऐसे शख्स की तस्वीर पर कालिख पोतना, भले ही गलतफहमी में, इतिहास के साथ मजाक नहीं तो और क्या है?

औरंगजेब बनाम बहादुर शाह जफरकहां हुई चूक?

औरंगजेब (1618-1707) और बहादुर शाह जफर (1775-1862) के बीच न केवल डेढ़ सदी का फासला है, बल्कि उनके शासन और व्यक्तित्व में भी जमीन-आसमान का अंतर है। औरंगजेब, मुगल साम्राज्य के छठे शासक, अपने कट्टर धार्मिक रवैये और कुछ मंदिरों को तोड़ने जैसे फैसलों के कारण विवादास्पद रहे। हालांकि, इतिहासकारों में उनके शासन के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर बहस जारी है।

वहीं, बहादुर शाह जफर एक नाममात्र के बादशाह थे, जिनका शासन पुरानी दिल्ली की दीवारों तक सीमित था। वे एक शायर, संवेदनशील इंसान, और 1857 की क्रांति के प्रतीक थे। उनकी तस्वीरों में वे अक्सर शाही पोशाक में, बुजुर्ग चेहरों के साथ, किताब या कलम लिए दिखते हैं, जबकि औरंगजेब की तस्वीरें सादगी और गंभीर चेहरों के साथ होती हैं।

फिर भी, हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं ने इस अंतर को नजरअंदाज कर दिया।यह पहली बार नहीं है जब औरंगजेब और बहादुर शाह जफर को लेकर कन्फ्यूजन हुआ। पिछले महीने महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में औरंगजेब की कब्र हटाने के विरोध प्रदर्शन के दौरान, कुछ लोगों ने गलती से बहादुर शाह जफर का पोस्टर जला दिया था। लगता है, इतिहास की किताबें धूल खा रही हैं, और गुस्सा तथ्यों पर भारी पड़ रहा है

रेलवे का रुख और कानूनी कार्रवाई

रेलवे प्रशासन ने इस घटना को गंभीरता से लिया। डीआरएम पुष्पेश रमन त्रिपाठी ने कहा, यह पेंटिंग बहादुर शाह जफर की थी, जिन्होंने 1857 की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना गलत है। रेलवे सुरक्षा बल ने अज्ञात लोगों के खिलाफ रेलवे एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है। RPF और GRP की संयुक्त टीमें कालिख पोतने वालों की तलाश में छापेमारी कर रही हैं। हैरानी की बात यह है कि घटना के दौरान न तो RPF और न ही GRP ने कार्यकर्ताओं को रोकने की कोशिश की, जबकि उनके थाने पेंटिंग से कुछ ही मीटर की दूरी पर हैं। इस लापरवाही ने भी सवाल खड़े किए हैं। सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने इसे सुरक्षा व्यवस्था की नाकामी बताया।

हिंदू रक्षा दल का रुख: गलती मानी या अड़े रहे?

हिंदू रक्षा दल ने इस गलतफहमी के बाद भी अपने रुख पर कायम रहने का दावा किया। संगठन ने कहा कि वे रेलवे अधिकारियों को ज्ञापन सौंपकर ‘मुगल आक्रांताओं’ की तस्वीरों का विरोध जारी रखेंगे। हालांकि, उनकी इस कार्रवाई की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हुई।

एक यूजर ने लिखा, “आजादी के नायक बहादुर शाह जफर की तस्वीर पर कालिख पोतना शर्मनाक है। नफरत ने इनका दिमाग अंधा कर दिया।”संगठन के अध्यक्ष पिंकी चौधरी ने औरंगजेब के खिलाफ अपनी बात दोहराई, लेकिन बहादुर शाह जफर की तस्वीर पर कालिख पोतने की गलती पर कोई माफी या स्पष्टीकरण नहीं दिया।

यह रवैया दर्शाता है कि संगठन अपनी छवि को ‘हिंदू रक्षक’ के रूप में मजबूत करने की कोशिश में है, भले ही इसके लिए तथ्यों की अनदेखी करनी पड़े।

सोशल मीडिया पर मीम और ट्रोलिंग का तूफान

जैसे ही यह खबर सोशल मीडिया पर फैली, मीम्स और ट्रोल्स की बाढ़ आ गई। एक यूजर ने लिखा, “हिंदू रक्षा दल को इतिहास की कोचिंग क्लास की जरूरत है। औरंगजेब और बहादुर शाह जफर में 150 साल का फर्क है, भाई! एक अन्य ने तंज कसा, रेलवे स्टेशन पर पेंटिंग देखकर गुस्सा आ गया, लेकिन इतिहास की किताब खोलने की जहमत नहीं उठाई।

कई लोगों ने इस घटना को देश में बढ़ती नफरत और धार्मिक उन्माद से जोड़ा। एक यूजर ने लिखा, 1857 के नायक को अपमानित करना शर्मनाक है। यह नफरत का नतीजा है, जो तथ्यों को दरकिनार कर देता है। दूसरी ओर, कुछ यूजर्स ने हिंदू रक्षा दल का समर्थन करते हुए कहा कि औरंगजेब की तस्वीरें हटाने की मांग जायज है, भले ही इस बार गलती हो गई।

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